टैरिफ वाले 'तीर' से चीन पर कई निशाने साध रहे ट्रंप, बौखलाहट में 'ड्रैगन' दे रहा दूसरे देशों को धमकी

Trump Tarrif War : चीन के चिढ़ने और तिलमिलाने की एक बड़ी वजह यह है कि ट्रंप ने उसे छोड़कर बाकी देशों के लिए टैरिफ 90 दिनों के लिए टाल दिया है। यानी कि चीन को छोड़कर बाकी सभी देशों पर बेसिक 10 फीसदी ही टैरिफ लग रहा है। यह जुलाई तक चलेगा लेकिन इस दौरान चीनी सामानों पर टैरिफ 245 प्रतिशत तक लगता रहेगा। यानी चीनी सामान अमेरिका में इतने महंगे हो जाएंगे कि उसे कोई खरीदना नहीं चाहेगा।

Trump tarrif

टैरिफ की लड़ाई अमेरिका बनाम चीन हो गई है।

Trump Tarrif War : ट्रंप के टैरिफ की मार से चीन तिलमिला उठा है। वह अब देशों को खुले तौर पर धमका रहा है। उसने खुले तौर पर कहा है कि कोई देश उसके कारोबारी हितों के खिलाफ जाकर अमेरिका के साथ यदि कोई डील करता है तो वह इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। वह भी जवाबी कदम उठाएगा और कार्रवाई करेगा। दरअसल, बीते दो अप्रैल को ट्रंप ने देशों पर टैरिफ की नई दरें लगाईं। इसके बाद दुनिया के शेयर बाजारों में हाहाकार मच गया। शेयर धड़ाम से नीचे आ गए। लाखों-करोड़ों डॉलर का नुकसान हो गया। इससे देश डर गए। इस टैरिफ और भारी नुकसान से बचने और राहत पाने के लिए देश बैक चैनल से अमेरिका से बात करने लगे। रिपोर्टों की मानें तो करीब 70 देश हैं जो टैरिफ से राहत पाने और डील करने के लिए ट्रंप प्रशासन के साथ बातचीत और कर रहे हैं।

चीन पर लगा दिया 245% तक टैरिफ

चीन के चिढ़ने और तिलमिलाने की एक बड़ी वजह यह है कि ट्रंप ने उसे छोड़कर बाकी देशों के लिए टैरिफ 90 दिनों के लिए टाल दिया है। यानी कि चीन को छोड़कर बाकी सभी देशों पर बेसिक 10 फीसदी ही टैरिफ लग रहा है। यह जुलाई तक चलेगा लेकिन इस दौरान चीनी सामानों पर टैरिफ 245 प्रतिशत तक लगता रहेगा। यानी चीनी सामान अमेरिका में इतने महंगे हो जाएंगे कि उसे कोई खरीदना नहीं चाहेगा। दूसरा, कुछ दिन पहले द वॉल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिका के साथ व्यापार करने वाले देश चीन के साथ अपना कारोबार घटाएं। यदि वे ऐसा करते हैं तो वह टैरिफ में उन्हें छूट देंगे और कारोबारी बाधाओं को दूर करेंगे। यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि ट्रंप यह तो कह रहे हैं कि चीन से सामान कम खरीदो लेकिन यह नहीं कह रहे हैं कि इसके बदले वे अमेरिका से सामान खरीदें। उनका कहना है कि चीन को छोड़कर देश किसी से भी सामान खरीदें, इस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। उनकी शर्त बस इतनी है कि चीन से मत खरीदो।

टैरिफ से राहत के लिए ट्रंप ने दिया लुभावना ऑफर

जाहिर है कि टैरिफ की आंच महसूस कर रहे देशों के लिए यह एक लुभावना ऑफर है। वे इसे लपकने की कोशिश करेंगे। ट्रंप के ऑफर के चक्कर में आकर देश चीन के साथ अगर अपना व्यापार घटाते हैं तो यह चीन पर दोहरी मार होगी। यह बात सभी को पता है कि चीन आपूर्ति श्रृंखला का सबसे बड़ा खिलाड़ी है। पूरी दुनिया को वह अपना सामान बेचता है। जब देश ही उससे सामान लेना कम कर देंगे तो वह अपने यहां बनी सामग्रियों की खपत कहां करेगा। खुद उसके यहां इतना कंज्पशन की क्षमता नहीं है। उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से निर्यात आधारित है। यानी वह खरीदता बहुत कम बेचता बहुत ज्यादा है। चीन का सबसे बड़ा खरीदार तो अमेरिका ही है। इसके बाद यूरोपीय यूनियन भी उससे काफी काफी मात्रा में सामान आयात करता है। यूरोप और अमेरिका धनी देश हैं, सेवाओं और सुविधाओं के लिए ये आंख मूंदकर पैसा खर्च करते हैं। ट्रंप की नजर इसी व्यापार असंतुलन पर है।

टैरिफ पर अमेरिका बनाम चीन

इस ऑफर के बाद चीन को लगने लगा है कि वह सीधे तौर पर ट्रंप के निशाने पर है। टैरिफ पर सीधे अमेरिका बनाम चीन हो गया है। उसे लगता है कि ट्रंप अपने इरादे में अगर कामयाब हुए तो निर्यात आधारित उसकी अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ी चोट पड़ेगी। यह चोट और नुकसान इतना ज्यादा होगा कि उससे निपटना आसान नहीं होगा। दशकों से बनाया गया मैन्यूफैक्चरिंग का उसका इको-सिस्टम पूरी तरह से हिल जाएगा। अपनी आर्थिक चकाचौंध और पैसे के दम पर अपने आर्थिक साम्राज्य का जो वह विस्तार कर रहा था, उस पर ट्रंप ने बहुत बड़ा हथौड़ा मार दिया है। यह उसकी महात्वाकांक्षा पर भी कुठाराघात है। इससे चीन बौखला गया है और हताशा में आकर धमकी भरा बयान दे रहा है।

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भागे-भागे फिर रहे जिनपिंग

ट्रंप के इस टैरिफ ने उसके होश उड़ा दिए हैं। पड़ोसियों पर धौंस जमाने वाला और उनकी बाहें मरोड़ने वाले चीन के सुर बदल गए हैं। वह भारत के साथ मिलकर डांस करने की बात करने लगा है। उसके राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तीन-तीन देशों की यात्रा कर अमेरिका के खिलाफ गोलबंदी करने की कोशिश की। जिनपिंग बीते दिनों वियतनाम गए थे। अगर वह सोचते हैं कि वियतनाम चीन से सामान खरीदेगा तो वह गलत सोच रहे हैं क्योंकि वियतनाम खुद मैन्युफैक्चरिंग का बहुत बड़ा केंद्र है और अपना बहुत सारा सामान अमेरिका को बेचता है। बाकी मलेशिया और कंबोडिया ऐसे नहीं हैं कि वे उससे ज्यादा सामान आयात करें।

कारोबार, निर्यात में अमेरिका से चीन बहुत आगे

चीन दुनिया को जितना सामान बेचता है उस पर सिडनी के थिंक टैंक लोई इंस्टीट्यूट ने बीते जनवरी की अपनी रिपोर्ट में कहा कि साल 2023 में अमेरिका की तुलना में करीब 70 फीसदी अधिक देशों ने चीन से सामान खरीदा। इसी साल चीन दुनिया के कम से कम 60 देशों का सबसे बड़ा कारोबारी पार्टनर देश बन गया। जबकि अमेरिका जिन देशों के साथ सबसे ज्यादा व्यापार करता है उनकी संख्या केवल 33 है। यानी सबसे बड़ा कारोबारी पार्टनर के मामले में चीन, अमेरिका को काफी पीछे छोड़ चुका है। कारोबार और निर्यात के मामले में चीन लगातार अमेरिका को पछाड़ रहा है। अभी की अगर बात करें तो 2023 तक 145 ऐसे देश हैं जो अमेरिका से ज्यादा चीन के साथ व्यापार करते हैं। यह संख्या बढ़कर 70 प्रतिशत हो गई है। दुनिया में मात्र 15 प्रतिशत ही ऐसे देश हैं जिनके साथ अमेरिका का कारोबार चीन से ज्यादा होता है। ईयू भी चीन से खूब सामान का आयात करता है। यूरोपीय यूनियन जितना आयात करता है उसका करीब 20 फीसद केवल चीन से आता है। कुछ ऐसा ही हाल ब्रिटेन का भी है। ब्रिटेन के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत है।

चीन को कमजोर करेगी आर्थिक नाकेबंदी

दरअसल, ट्रंप अपने टैरिफ वाले तीर से चीन पर कई निशाने साध रहे हैं। उनका इरादा आर्थिक रूप से उसे कमजोर करने का है। उन्हें पता है कि चीन जब खुद अपने आर्थिक झंझावातों में फंसा रहेगा तो वह न तो ईरान और न ही रूस के पीछे खड़ा हो पाएगा। अर्थव्यवस्था पर लगने वाले झटके उसकी महात्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बनेंगे। इस आर्थिक नाकेबंदी का असर चीन के उन सभी रणनीतिक, महत्वाकांक्षी और विस्तारवादी एजेंडे पर होगा जिन्हें अमेरिका अपने हितों के लिए खतरा और चुनौती समझता है।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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