गाजा पर ट्रंप-नेतन्याहू की मुलाकात, इसमें है कई बातें खास
लाल सागर के मुहाने पर बैठे हूतियों के लिए ये मुलाकात खतरे की घंटी है, उन्होंने पहले ही साफ कर दिया था कि उन्हें ये मुलाकात कतई मंजूर नहीं है। वो काफी करीब से शांति समझौता ड्राफ्ट पर नज़रें बनाए हुए है। अगर किसी भी हालात में उनके ठिकानों पर हमले की योजना बनी तो वो इस्राइल पर हमले तेज कर सकते हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ इजराइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू
गाजा में हमास की गिरफ्त में कैद ज्यादा से ज्यादा इस्राइली बंधकों को रिहा कराने के मसले पर प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मुलाकात हुई। इस बैठक के दौरान नेतन्याहू ने ट्रंप को जमीनी हालातों से भी रूबरू कराया। मौके पर मौजूद खबरनवीसों से राब्ता करते हुए इस्राइली वज़ीर-ए-आला ने दावा किया कि वो बातचीत के नए दौर का खाका तैयार कर रहे है, जिसके पूरी तरह से कामयाब होने की उम्मीद है। कैद किए गए लोग काफी दिक्कतों में हैं, उन्हें उनकी फिक्र है उन सभी की सलामती को लेकर उन्होंने खुद को जवाबदेह बताया। साथ ही उन्होंने दम भरते हुए कहा कि वो सभी बंधकों की रिहाई कराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देगें। इस मौके पर अमेरिकी सदर ने कहा कि उन्हें सीज़फायर की उम्मीद है, साथ ही बंधकों की रिहाई के लिए वो हर मुमकिन कोशिश करेगें।
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टूटा संघर्ष विराम आक्रामक हुआ IDF
बता दें कि नेतन्याहू का अमेरिकी दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है, जब बीते मार्च महीने के दूसरे हफ्ते में छह हफ्ते तक चला सीज फायर समझौता टूटा। कथित संघर्ष विराम के टूटते ही हमास की सशस्त्र इकाईयों ने आईडीएफ पर भारी हथियारों से हमला बोला। यहीं वजह रही कि इस्राइल को फिर से गाजा में अपनी इंफैंट्री इकाइयों को मोबालाइज करना पड़ा। सामरिक हालातों को भांपते हुए एक फिर से इस्राइली जेट्स गाजा के आसमान पर मंडराने लगे। इस जवाबी कार्रवाई से पहले दोनों पक्षों ने बंधकों की अदला-बदली की थी। इस जंगी कवायद से ठीक पहले बंधकों के परिवार और इस्राइली हुक्मरानों का नजरिया नदी के दो किनारे की तरह था, बंधकों के परिजन उनकी सुरक्षित वापसी चाहते थे। वहीं दूसरी ओर नेतन्याहू सरकार का मानना था कि हमास पर सामरिक दबाव बनाना ही एकमात्र विकल्प है, ऐसे में बंधकों की वापसी जीवित या मृत हो इस्राइल हर सूरत के लिए तैयार है।
ट्रंप की मंशा फिलिस्तीनियों की रिहायश हो बहाल
ट्रंप और नेतन्याहू की हालिया मुलाकात इसलिए भी खास रही क्योंकि अमेरिकी सदर ने फिलिस्तीनियों के विस्थापन का मसला उठाया। इस मुद्दे पर उन्होंने लंबे समय से चुप्पी साध रखी थी। ट्रंप के मुताबिक गाजा मध्यपूर्व का अहम हिस्सा है, उसके पुर्नउत्थान में उनकी खासा दिलचस्पी है। वो चाहते है कि फिलिस्तीनियों की वापसी होने के साथ उनकी रिहायश सुनिश्चित की जाए। मिस्र और जॉर्डन ट्रंप के इस रूख़ से करीबी नहीं रखते है, इन दोनों मुल्कों का मानना है कि वहां पहले सीजफायर होने के साथ शांति कायम हो। कुछ ऐसा ही रवैया अरब मुल्कों का भी है, जिन्होनें जोरदार तरीके से ट्रंप की सोच को खारिज किया है।
ईरान और उसके समर्थक निशाने पर
ट्रंप और नेतन्याहू की मुलाकात के दौरान गाजा का मुद्दा तो अहम रहा, साथ ही मध्य पूर्व में ईरान की घेरेबंदी पर भी वार्ता हुई। दोनों का ही मानना है कि गाजा में बिगड़े हालातों के पीछे तेहरान का सीधा हाथ है। जिस मसौदे को लेकर चर्चा की गयी उसका अहम बिंदु ये भी था कि फिलिस्तीनी संरक्षण में गाजा ईरान समर्थित आंतकी केंद्र ना बन जाए। इससे पहले तेल अवीव हमास, हिजबुल्लाह और हूतियों की जुगलबंदी कई मौके पर देख चुका है। इसलिए वाशिंगटन और तेल अवीव का संयुक्त रूप से मानना है कि गाजा पट्टी में हमास अपने जंगी तेवर छोड़े तभी अमन और शांति की पहल शुरू हो सकेगी। कथित मसौदे में मानवीय मदद के लिए महफूज़ गलियारा खोलना, सीजफायर, बंदियों की रिहाई और गाजा को फिर से खड़ा करने का पूरा ब्लू प्रिंट तैयार है। माना तो ये भी जा रहा है कि इस मसौदे के बिंदुओं पर बनी मिस्र, जॉर्डन और अरब मुल्कों की नाराजगी ट्रंप खत्म करवा सकते है। मामले का एक अन्य पक्ष ये भी है कि ट्रंप गाजा में रिहायश बहाली की जो योजना सोचकर बैठे है, उसे लागू करना लगभग मुश्किल है। कथित योजना फिलिस्तीनियों की सोच और स्थानीय पेचीदियों को नजरअंदाज करती है।
शांति समझौते पर कई पक्षों की निगाहें
इस्राइली और अमेरिकी हुक्मरानों की इस मुलाकात को हमास अपने हितों के खिलाफ देखता है। बता दे कि दोनों ही नेता हमास को कमजोर करने को लेकर साझा सहमति बना चुके है। हमास इस शांति समझौते को अपनी शर्तों पर मानने के लिए तैयार है। वो गाजा से इस्राइल की पूरी तरह से वापसी चाहता है, साथ ही उसने गाजा की आबादी को कहीं ओर रिहायश देने का विरोध किया। लाल सागर के मुहाने पर बैठे हूतियों के लिए ये मुलाकात खतरे की घंटी है, उन्होंने पहले ही साफ कर दिया था कि उन्हें ये मुलाकात कतई मंजूर नहीं है। वो काफी करीब से शांति समझौता ड्राफ्ट पर नज़रें बनाए हुए है। अगर किसी भी हालात में उनके ठिकानों पर हमले की योजना बनी तो वो इस्राइल पर हमले तेज कर सकते है। इस्राइल की उत्तरी सीमा पर बैठा हिजबुल्लाह इस शांति मसौदे को पश्चिमी ताकतों की साज़िश करार दे रहा है। मुमकिन तौर पर खतरा भांपते हुए वो अपनी सैन्य मुस्तैदी को बढ़ा सकता है। अपने न्यूक्लियर ठिकानों को महफूज़ करते हुए खामेनेई भी मध्य पूर्व में तनाव बढ़ाने के लिए अपने मुखौटा सहयोगियों (हमास, हिजबुल्लाह और हूती) को मोबालाइज़ करेगें। ओवल ऑफिस में हुई नेतन्याहू-ट्रंप की मुलाकात उन्हें गंवारा नहीं है। साथ ही IRGC नयी सामरिक रणनीतियों का खाका भी तैयार कर सकता है, गौरतलब है कि यूक्रेन जंग में रूस से करीबी होने के चलते ईरान को कई नयी जंगी तकनीकें और हथियार हासिल हुए है ऐसे में उसकी जरूरत से ज्यादा आक्रामकता इस्राइल के लिए खतरा बन सकती है। गाजा इस्राइल और हमास से ज्यादा ईरानी मगरूरियत की सरजमीं है, जिसे फिलिस्तीन प्रशासन संभाले हुए है। ऐसे में तेहरान अपने गुरूर पर किसी भी तरह की आंच नहीं आने देना चाहेगा।
मुस्लिम मुल्कों की सोच भी बंटी
सऊदी और यूएई ट्रंप के रूख का खैरोमक्दम कर रहे है, जिस तरह से उन्होंने तेहरान और हमास को लेकर अपना रवैया अख्तियार किया है। अमेरिका में हुई कथित मीटिंग के बाद अरब मुल्क ईरान से उठ रहे खतरे को लेकर आश्वस्त है, वो जानते है कि नेतन्याहू और ट्रंप मिलकर उनपर लगाम कसेगें। कयास लगाए जा रहे है कि अरब मुल्क औपचारिकता के लिए गाजा में इस्राइल को संयम बरतने की नसीहत जरूर देगें। कुल मिलाकर अरब मुल्कों का रवैया इस मुद्दे पर अभी तक संतुलित ही रहा है। दूसरी ओर कतर की सोच इससे थोड़ी अलग होती दिखाई दे रही है। वो लगातार इस पूरे संघर्ष के दौरान बेहतरीन मध्यस्थ की भूमिका में रहा। अंदरखाने ये भी चर्चा गर्म है कि ओवल ऑफिस में हुई मुलाकात को वो गाजा की शांति प्रक्रिया के लिए बड़ी चुनौती के तौर पर देख रहा है। आने वाले वक्त में कथित शांति एजेंडे तले अगर हमास को नेस्तनाबूत करने के लिए रौंदा जाता है तो कतर बेझिझक तेल अवीव और वाशिंगटन की मुखालफत करेगा। विरोध करते हुए वो अपनी मध्यस्थता की भूमिका में पैनापन ला सकता है। दूसरी ओर अगर स्थायी युद्धविराम और अमन बहाली हुई तो मिस्र और जॉर्डन इस मुलाकात को उम्मीदों से भरा कदम मान सकते है। किसी किस्म की सामरिक पहल या फिर सैन्य रणनीतिक घेरेबंदी फिलिस्तीन पर हुई तो काएरो और अम्मान अपनी चिंता दुनिया के सामने जरूर जाहिर करेगें। फिलहाल अमेरिका में हुई ट्रंप और नेतन्याहू की मुलाकात को लेकर हितधारक देशों और नॉन स्टेट एक्टर्स के आधिकारिक बयान सामने नहीं आये है। जब उनकी प्रतिक्रियायें आने शुरू होगीं तो कयासों और समीकरणों के बादल छंटेगें।
मुलाकात नेतन्याहू के लिए नफे का सौदा
ये मुलाकात नेतन्याहू के लिए इमेज रिबिल्डिंग और तुष्टीकरण से भी जुड़ी हुई। वो सियासी अस्थिरता के बीच घोटाले के आरोपों से घिरे हुए है, ऐसे में ये कवायद उनके सियासी कद को बढ़ा सकती है। भले ही वो सीजफायर की वकालत कर रहे हो लेकिन गाज़ा में सैन्य अभियान को बढ़ाने से उनका दक्षिणपंथी समर्थक आधार काफी मजबूत होगा। उनकी कोशिश रहेगी कि गाजा में शांति समझौते की उनकी एकतरफा शर्तें लागू हो। इसी क्रम में आज (8 अप्रैल 2025) IDF ने गाजा में एक बड़े हमले का अंजाम दिया। इनके सबके बीच दिलचस्प बात ये भी है कि व्हाइट हाउस ने तेल अवीव पर भी जवाबी टैरिफ का चाबुक चलाया है। गाजा और हमास मामले के इतर नेतन्याहू ने ट्रंप से टैरिफ घटाने की भी पैरवी की। इस्राइली वजीर-ए-आला के मुताबिक अमेरिकी का जवाबी आयात शुल्क उनकी इक्नॉमी पर बुरा असर डाल रहा है। हालांकि अमेरिकी सदर ने नेतन्याहू को इस मसले पर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया। बात दे कि इस साल में नेतन्याहू की ट्रंप से अब तक दो मुलाकातें हो चुकी है, ऐसे में ये बात तो तय है कि इन दोनों मुलाकातों का असर मध्यपूर्व की स्थिरता पर पड़ेगा।
इस लेख के लेखक राम अजोर जो स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं, टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।
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