इजरायल और लेबनान के बीच हुआ अस्थिर युद्ध विराम समझौता, मध्यपूर्व में शांति बहाली के आसार कम

Israel vs Lebanon: हाल फिलहाल में हुए संघर्ष विराम समझौते में इजरायल ने लेबनान को एकतरफा शर्तों पर राज़ी कर लिया है। इसे अस्थिर युद्ध विराम समझौता कहा जा सकता है। गौरतलब है कि इजरायल ने हिजबुल्लाह को खत्म करने की कसम खायी हैं, ऐसी सूरत में ये सीजफायर समझौता आड़े नहीं आयेगा।

Israeli air strike on Lebanon

इजरायल और लेबनान के बीच सीजफायर समझौता कैसा होगा?

Unstable Ceasefire Agreement Between Israel and Lebanon: मध्यपूर्व में फ्रांस-अमेरिकी मध्यस्थता से बहुप्रतीक्षित युद्ध विराम समझौता बेरूत और तेल अवीव के बीच हो गया। ये सीजफायर समझौता बीते 4 दशकों की तरह ही होगा, जो कि जंग को रोकने में पूरी तरह नाकाम रहे। कुछ हद तक ये पूर्ववर्ती समझौतों से अलग है, माना जा रहा है कि साल 2025 की पौ फटते ही इसका असर दिखना शुरू हो जाएगा। समझौते की रूपरेखा को केंद्र में रखते हुए सामने आ रहा है कि इजरायल की उत्तरी सीमा पर छिड़े संघर्ष और प्रतिरोध की कवायदों को ये बदल कर रख देगा। बीते 40 सालों के हथियारबंद संघर्षों को देखते हुए ये सवाल उठना लाज़िमी है कि इस सीज फायर समझौते में क्या नयापन है, जो इसको अलग बनाता है।

अपंग हुआ हिज़्बुल्लाह, जमींदोज हुए हमास कैडर

इजरायल बदले के जज़्बे और ज़वाबी कार्रवाई के लिए जगजाहिर है, लेकिन गुजरे साल 7 अक्टूबर को हुए हमले ने इस सोच को बदला है। बेंजामिन नेतन्याहू ने फौरी कार्रवाई करते हुए सबसे पहले होने वाले संभावित जमीनी खतरों को रोकने का काम शुरू किया। उस हमले को तेल अवीव ने अपने वजूद के लिए भारी खतरा माना, जिसके बाद उसने अपनी सीमा पर बैठे दुश्मनों के खेमों को लेकर फिर से खंडन-मंडन शुरू कर दिया। यहीं वजह है कि IDF ने हिजबुल्लाह को कमजोर करने और हमास को नेस्तनाबूत करने का फैसला लिया। ये दोनों ही आंतकी इदारे तेल अवीव के लिए परेशानी का सबब़ बने हुए है, इसलिए खतरों को भांपते इन पर कार्रवाई की गयी। मौजूदा हालातों में जिस तर्ज पर IDF की कार्रवाईयां परवान चढ़ रही है, उससे साफ है कि इजरायल ने दोनों चरमपंथी गुटों की जड़ों में मट्ठा डालना वाज़िब समझा है। हालांकि इससे काफी पहले इजरायल ने दोनों को ही अपनी कुव्वत बढ़ाने का मौका दिया, और इसके बाद इन्हें तबाह करने के लिए हथियारबंद कार्रवाई की। फिलहाल संघर्ष और जंगी टकरावों का ये सिलसिला अस्थायी रूप से युद्धविराम समझौतों के साथ थम गया। इस दौरान इजरायल अपने मकसद को पाने में काफी हद तक कामयाब रहा। अपनी उत्तरी सीमा पर तेल अवीव ने हिज़्बुल्लाह को अपाहिज़ कर दिया। इस संगठन के तमाम हथियारखाने और रहनुमा खाक में मिल चुके है, कुछ हद तक ये अभी भी सक्रिय है। आने वाले वक्त में ये अपनी खोयी हुई ताकत दुबारा हासिल करने और अपने लोगों को एकजुट करने की कवायद में लग सकता है। दूसरी तरह हमास पूरी तरह जमींदोज हो चुका है, ऐसे में अगर उसकी वापसी हुई तो वो सिविलियन जमात का चोला ओढ़कर सामने आ सकता है।

इजरायल के पक्ष में सीजफायर की शर्तें

हाल फिलहाल में हुए संघर्ष विराम समझौते में इजरायल ने लेबनान को एकतरफा शर्तों पर राज़ी कर लिया है। गौरतलब है कि इजरायल ने हिजबुल्लाह को खत्म करने की कसम खायी हैं, ऐसी सूरत में ये सीजफायर समझौता आड़े नहीं आयेगा। तयशुदा शर्तों के तहत इजरायली जंगी जेट्स लेबनान की हवाई सीमा में घुसकर टैक्टिकल एरियल ऑप्रेशन करने के लिए आज़ाद होगें। साथ ही इजरायली हवाई टोही प्रणालियां और अवाक्स विमान इस क्षेत्र में तैनात रहेगें। समझौता शर्त का एक अहम बिंदु ये भी है कि हिजबुल्लाह दुबारा सिर उठाने की कोशिश करता है तो इसके लिए लेबनान सरकार को सशस्त्र कार्रवाई करनी होगी, अगर वो इसमें नाकाम रही तो इजरायल किसी भी तरह की सशस्त्र प्रतिक्रिया के लिए स्वतंत्र होगा। तेल अवीव ने समझौता शर्तों में बेरूत के नीति-नियंताओं को इस बात के लिए भी बाध्य किया है कि हिजबुल्लाह कैडरों के खात्मे, उनकी हथियार फैक्ट्रियों को तबाह करने और उनसे जुड़े परिसरों को जमींदोज करने के लिए लेबनानी सरकार अपनी प्रतिबद्धता दिखाए। अंदरखाने ये भी चर्चाएं हो रही है कि जरूरत पड़ने पर इजरायल लेबनान की सेना के साथ मिलकर संयुक्त कार्रवाई को अंजाम दे सकती है। इस काम को पूरा करने के लिए दबे छिपे लेबनानी सेना को इजरायली-अमेरिकी रसद और फंडिंग मिल सकती है। मौजूदा हालातों में लेबनानी सेना हथियार, रसद और पैसों की भारी तंगी से जूझ रही है। बेरूत के सत्ता सदन में बैठे नेताओं ने संघर्ष विराम समझौते की इन एकतरफा शर्तों को मानते हुए प्रतिबद्धता जाहिर की है, इस दिशा में बेरूत की कोशिशों और पहलों की निगरानी सीधे तौर पर अमेरिका करेगा जिसके लिए उसने हामी भर दी है।

लेबनान में हिजबुल्लाह की है मजबूत पैठ

इस समझौते एक आयाम ये भी है कि इसके जरिए तेहरान की फंडिंग से चल रही कट्टरपंथी हथियारबंद कवायदों पर नकेल कसने में खासा मदद मिलेगी। दमिश्क और बगदाद में जिस तरह ईरान पांव पसारने की कोशिशों को अंजाम दे रहा है, उसके लिए भी जवाबदेही तय हो सकेगी। समझौते का खाका खींचने से पहले तेल अवीव ने दलील दी थी कि लेबनान में हिजबुल्लाह की जड़ें काफी गहराई तक फैली हुई है। सीधे तौर पर लेबनानी सरकार हिजबुल्लाह को मटियामेट करने की हिम्मत नहीं रखती, वो हर मोर्चें पर कमजोर है। बता दे कि लेबनान में हिजबुल्लाह की मौजूदगी उसके सरकारी, सहकारी, उपक्रमों और नागरिकों संस्थानों में सीधे तौर पर है। लेबनान में जम्हूरी ताकतें पनपे हिजबुल्लाह ने कभी ये नहीं चाहा, अगर इस राह में कोशिशें होती है तो उसने उन पर लगाम कसने के भरसक प्रयास किए हैं। चरमपंथी समूह ने इसके लिए एक खास किस्म का अवरोध तंत्र या यूं कहे कि लॉबी तैयार की है, जिसके दम पर वो लेबनान को काबू में करता रहा है। लेबनानी राष्ट्रपति चुनाव समेत कई अहम पदों पर नियुक्ति के लिए फरमान हिजबुल्लाह की ओर से ही जारी किए जाते रहे हैं।

लंबा खींचेगा टकराव का सिलसिला

इजरायल बेजोड़ जंगी ताकत है, जिसके दम पर वो लंबी और पेचीदा लड़ाईयां जीतने की महारत रखता है। अपनी जंगी कुव्वत का लोहा मनवाते हुए उसने लेबनान में फिलिस्तीन लिबरेशन का खात्मा कर दिया, जिसके चलते वहां सीरियाई दबदबा उड़न छू हो गया। इससे हिजबुल्लाह और उसकी रहनुमाई में पलने वाली आंतकी जमात भी हैरत में पड़ गयी। फिलहाल इजरायली ताकत के सामने हिजबुल्लाह का खड़ा होना दूर की कौड़ी है। आंतकी संगठन की ताकत खत्म करने के लिए तेल अवीव ने उसके हथियार छीन लिए है, खाली हाथ करके उसके वर्चस्व, असर और ताकत को धूल में मिलाया जा सकता है और इजरायल यही कर भी रहा है। नेतन्याहू इस काम के लिए जिस माध्यम और नीति का इस्तेमाल कर रहे है, उसके रोकने के लिए हिजबुल्लाह कैडरों को जमीनी टकरावों के और भी दौर देखने पड़ सकते हैं।

इस लेख के लेखक राम अजोर जो स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।

Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं, टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।

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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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