PDA का चक्रव्यूह टूटा तो अखिलेश की बढ़ी छटपटाहट, उपचुनाव से मायावती का हो गया मोहभंग

UP By Election Result 2024: देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की विधानसभा की 9 सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें से छह सीटों पर भाजपा, एक पर उसका सहयोगी दल राष्ट्रीय लोक दल और दो पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली। यानी का चुनाव नतीजा 7-2 का रहा। यह हार समाजवादी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है।

UP By election 2024

उत्तर प्रदेश उप चुनाव में सपा ने जीती दो सीटें।

UP By Election Result 2024: चुनाव और उपचुनाव दोनों के नतीजे, खासकर महाराष्ट्र और यूपी के, विपक्ष पर बहुत भारी पड़े हैं। लोकसभा के लिहाज से देखें तो सीटों के लिहाज से ये दोनों देश के दो सबसे बड़े राज्य हैं। देश की राजनीति में दोनों राज्यों की हैसियत काफी बड़ी है। दोनों राज्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के गढ़ और उनके वैचारिक आधार के केंद्र बिंदु हैं। इन दोनों ही राज्यों में प्रचंड जीत या भीषण हार के राजनीतिक मायने बहुत बड़े हो जाते हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस, शरद पवार वाली एनसीपी और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की भीषण हार ने भविष्य की सियासत की एक नई लकीर खींच दी है। महाराष्ट्र और यूप उपचुनाव के नतीजे की टंकार और झंकार भाजपा नेताओं के हाव-भाव से लेकर उनकी हर बात में नजर आ रही है, तो हारे हुए विपक्ष के निशाने पर एक बार फिर वही इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) है जो हर हार के बाद तोहमत लेने का आदी हो चुकी है।

यूपी में नौ सीटों पर हुए उपचुनाव

देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की विधानसभा की 9 सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें से छह सीटों पर भाजपा, एक पर उसका सहयोगी दल राष्ट्रीय लोक दल और दो पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली। यानी का चुनाव नतीजा 7-2 का रहा। यह हार समाजवादी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है। छह महीने पहले लोकसभा चुनाव में खुद 37 सीटें और कांग्रेस को छह सीटें जीताकर सभी को चौका देने वाली सपा उपचुनाव में ऐसे औंधे मुंह गिरेगी, इसकी उम्मीद नहीं थी। सपा अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश का अब तक का यह शानदार प्रदर्शन था, सपा को इतनी सीटें उसके संस्थापक मुलायम सिंह यादव के दौर में भी नहीं मिलीं। यूपी में इस शानदार जीत का श्रेय अखिलेश की सोशल इंजीनियरिंग पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक यानी PDA को दिया जाता है। चुनाव में अखिलेश की यह सोशल इंजीनियरिंग भाजपा पर भारी पड़ी और भगवा पार्टी 33 सीटों पर सिमट कर रह गई।

भाजपा ने पीडीए की काट निकाली

अखिलेश के लिए यह बहुत बड़ी जीत थी। इस बड़ी जीत से राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद और रसूख दोनों बढ़ा लेकिन उपचुनाव में मिली शिकस्त ने सपा अध्यक्ष की टीस, बेचैनी और छटपटाहट बढ़ा दी है, जिस पीडीए को वह तुरूप का एक्का मानकर चल रहे थे, उपचुनाव में वह फ्लॉप में हो गया। यहां तक कि मुस्लिम बहुल वाली कुदंरकी सीट पर भाजपा ने 31 साल बाद भगवा परचम फहरा दिया। पिछली कई हारों से सबक लेकर अखिलेश ने पीडीए का जो चक्रव्यूह तैयार किया था भाजपा ने उसकी काट निकाल ली है। यूपी में उसकी वापसी हो गई है। यह बात अखिलेश को भीतर ही भीतर परेशान कर रही है, भाजपा को आगे चुनौती देने के लिए अब उन्हें कुछ नया और कारगर ढूंढना होगा।

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यूपी में बसपा ने 14 साल बाद उपचुनाव लड़ा

उपचुनाव में मिली हार पर अखिलेश ने कहा कि ‘इलेक्शन’ को ‘करप्शन’ का पर्याय बनानेवालों के हथकंडे तस्वीरों में कैद होकर दुनिया के सामने उजागर हो चुके हैं। दुनिया से लेकर देश और उत्तर प्रदेश ने इस उपचुनाव में चुनावी राजनीति का सबसे विकृत रूप देखा। असत्य का समय हो सकता है लेकिन युग नहीं।अब तो असली संघर्ष शुरू हुआ है… बांधो मुट्ठी, तानो मुट्ठी और पीडीए का करो उद्घोष ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे!’। जाहिर है कि अखिलेश इस हार के लिए सिस्टम को जिम्मेदार बता रहे हैं, उनके निशाने पर इलेक्शन कमीशन, पुलिस और प्रशासन सभी हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती को भी उपचुनाव में काफी बड़ा झटका लगा है। उनकी पार्टी दो ही सीटों पर अपनी जमानत बचा पाई। आम तौर पर उपचुनाव से दूरी बनाकर रहने वाली बसपा ने 14 साल बाद यूपी में उपचुनाव लड़ा था। लेकिन करारी शिकस्त के बाद उनका उप चुनाव से एक तरह से मोहभंग हो गया है। मायावती ने कहा है कि अब उनकी पार्टी उपचुनाव नहीं लड़ेगी।

पार्टी-संगठन के रूप में मजबूत हुई भाजपा

जाहिर है यूपी उपचुनाव के नतीजों ने सूबे की राजनीति पर सीएम योगी की पकड़ कायम कर दी है। उपचुनाव के लिए उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई। यूपी भाजपा के अंदर जो एक खींचतान और भितरघात था, इन नतीजों ने उस पर भी लगाम लगा दिया। पार्टी और संगठन के रूप में भाजपा और मजबूत हुई है। तो वहीं, भाजपा को घेरने के लिए अखिलेश यादव को अब नए सिरे से व्यूह रचना करनी होगी, पीडीए में पड़ी दरार को उन्हें पाटना होगा। जहां तक बसपा की है तो केवल चुनाव के लिए चुनाव लड़ने की मनोवृत्ति से उसे बाहर आना होगा, तभी उसका कुछ हो सकेगा, नहीं तो उसकी राजनीतिक सेहत आने वाले हर चुनाव में कमोबेश ऐसी ही बनी रहेगी।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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