उतार-चढ़ाव वाली AAP-कांग्रेस की 'दोस्ती', हरियाणा का 'हिसाब' केजरीवाल ने दिल्ली में किया चुकता

Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली में दोनों पार्टियों के पीच गठबंधन न होने की एक दूसरी बड़ी वजह लोकसभा चुनाव का फॉर्मूला भी हो सकता है। दिल्ली में लोकसभा की सात सीटें हैं और दोनों पार्टियों ने 4:3 के फॉर्मूले के तहत चुनाव लड़ा। यानी की चार सीटों पर AAP और तीन सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा। हो सकता है कि गठबंधन होने की सूरत में कांग्रेस यही फॉर्मूला लागू करने की बात कहती।

दिल्ली में फरवरी में होंगे विधानसभा चुनाव।

Arvind Kejriwal : अरविंद केजरीवाल ने रविवार को ऐलान कर दिया कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपने दम पर विधानसभा चुनाव लड़ेगी। कांग्रस के साथ उसका गठबंधन नहीं होगा। विधानसभा की सभी 11 सीटों पर पहले ही अपने उम्मीदवार उतार चुकी AAP बाकी 59 सीटों पर भी अपने प्रत्याशी उतारेगी। केजरीवाल की इस घोषणा के बाद कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठबंधन का स्कोप अब एक तरह से खत्म हो गया है। केजरीवाल की 'एकला चलो' की राह पर चलने की इस घोषणा से 'इंडिया गठबंधन' को भी झटका लगा है। कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी से कन्नी क्यों काट लिया। इसके भी एक नहीं अनेक कारण हैं।

केजरीवाल के मन में हरियाणा की कसक

आपको याद होगा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में AAP कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहती थी, वह चाहती थी कि कांग्रेस उसे चुनाव लड़ने के लिए कुछ सीटें दे दे, लेकिन कांग्रेस अतिआत्मविश्वास और जीत की खुमारी में इतनी मग्न थी कि उसने केजरीवाल को सीटें देने से मना कर दिया। हरियाणा चुनाव में AAP भले ही एक भी सीट न जीत पाई हो लेकिन उसे इस चुनाव में 1.79 फीसदी वोट मिले। हरियाणा में भाजपा भले ही सबसे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हो गई हो लेकिन उसका वोट प्रतिशत कांग्रेस से बहुत ज्यादा नहीं था। हरियाणा में भाजपा को 39.94 प्रतिशत तो कांग्रेस को 39.09 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस अगर AAP के साथ मिलकर चुनाव लड़ी होती तो चुनाव नतीजे कुछ और हो सकते थे। हरियाणा में सीटें न दिए जाने की कसक और टीस कहीं न कहीं केजरीवाल के मन में थी। एक तरह से उन्होंने हरियाणा का हिसाब दिल्ली में चुकता किया है। यह बात देखने में आती है कि कांग्रेस जिस राज्य में मजबूत स्थिति में होती है, वहां वह सहयोगी दलों को सीटें देने में आनाकानी करती है और जहां कमजोर होती है, वहां सहयोगियों के दम पर अपना वोट बैंक और सीटें बढ़ा लेती है। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा दोनों में यह बात लागू होती है।

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