गाजा में शांति बहाली की अमेरिकी कोशिशों के मायने

अमेरिका, गाजा में शांति बहाली की कोशिशों में लगा है। यूरोप से फिलिस्तीन को जिस तरह से समर्थन मिल रहा है, उससे जो बाइडेन पर शांति बहाली के लिए भी दबाव बढ़ रहा है।

biden netanyahu

इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन

मुख्य बातें
  • गाजा में महीनों से इजराइल और हमास के बीच जारी है जंग
  • हमास के इजराइल पर हमले के बाद जंग की हुई थी शुरुआत
  • इस जंग में मारे जा चुके हैं हजारों लोग
वार्ता और मध्यस्थता कूटनीति के बुनियादी तत्वों में शामिल है, भले ही ये हर जगह कामयाब ना हो लेकिन इनका इस्तेमाल वैश्विक स्तर पर लंबे समय से होता आया है। इसी फेहरिस्त में व्हाइट हाउस के हुक्मरान इन्हीं दोनों की मदद से गाज़ा में शांति बहाली की इबारत लिखने की ओर बढ़ रहे है। खूनी जंग को रोकने के लिए अमेरिकी सदर जो बाइडेन ने अपनी तैयारियों को मुकम्मल कर लिया है। जिन तीन बातों पर खासा ध्यान दिया गया है, उनमें पहली तेल अवीव के सिपहसालारों को विश्वास में लेते हुए हमास को बातचीत की मेज पर लाना। दूसरा दोनों ओर के बंधकों की रिहाई और तीसरा गाजा में रिहायशी बहाली के कामों को लेकर आम सहमति बनाना।

अमेरिका की चाहत

इस राह पर अमेरिकी सदर ने बड़ी उम्मीद जाहिर की है, साथ ही हर मुमकिन कोशिश करते हुए वॉशिंगटन चाह रहा है कि हमास और इजरायल उसकी इस पेशकश पर रजामंदी की हामी भर दे। मुद्दे को लेकर अमेरिकी बेसब्री और बेकरारी का आलम ये है कि वो चाहता है कि तुरंत सीज़फायर हो। अमेरिका की इन कोशिशों के पीछे की वज़हें भी काफी खास है। अगर वो ये करने में पूरी तरह कामयाब रहा तो उसके रसूख और रूतबे में खासा इजाफा होगा। इस मुद्दे के साथ वॉशिंगटन ने अपना नाम और अस्मिता दोनों जोड़ दी है।

यूरोप से फिलिस्तीन के लिए आवाज

एक समय था, जब यासिर अराफात दुनिया भर में घूम-घूमकर फिलिस्तीन के लिए समर्थन जुटाते फिरते थे। मौजूदा हालातों में फिलिस्तीन के लिए यूरोप से आवाज़ उठनी शुरू हो गयी है, जिसे नज़रअंदाज़ करना अमेरिकी नीति नियंताओं के लिए मुश्किल होता जा रहा है। ये बात जो बाइडेन काफी बेहतर तरीके से समझ रहे है, साथ ही बेंजामिन नेतन्याहू के लिए ये परेशान का सब़ब बनता दिख रहा है। हाल ही में फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र महासभा का पूर्ण सदस्य बनाए जाने को लेकर 143 देशों को समर्थन मिला, जिसने व्हाइट हाउस को मजबूर किया शांति समझौते की रूपरेखा तैयार करने के लिए।

शांति समझौते में क्या

कई जानकारों को मानना है कि अमेरिका अब्राहम समझौते के बाद बनी अपनी छवि को इस शांति समझौते से और मजबूती देना चाह रहा है। अमेरिका अपनी इस कोशिश को हमास के लिए इजरायली पहल बता रहा है। इसी के मद्देनजर उसने हर उस बिंदु को छूने का प्रयास किया है, जिससे हालातों में अस्थिरता बनी हुई है। गाजा से इस्राइली सैनिकों की वापसी, दोनों ओर के बंदियों की सकुशल रिहाई, हमास की आक्रामकता को रोकने के दीर्घकालिक उपाय और गाजा में घर, स्कूल और अस्पतालों का पुर्ननिर्माण, हमास के लिए भले ही आर्कषक पहल हो सकती है, पर इस्राइल के लिए तो कतई नहीं।

बेंजामिन नेतन्याहू मानने को तैयार नहीं

अमेरिकी शांति समझौते की रूपरेखा पर हमास की त्वरित सकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आयी है, वो इसे उम्मीदों की रोशनी के तौर पर देख रहा है। दूसरी ओर सायरेट मटकल (इस्राइली खुफिया जंगी यूनिट) के साथ बैठक के बाद इस प्रस्ताव पर अपनी बेबाक प्रतिक्रिया देते हुए बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि- जवाबी कार्रवाई हमास को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने के बाद ही रूकेगी। भले ही जंगी कार्रवाई के दौरान बंधकों की रिहाई हो जाए, फिर भी फिलिस्तीन चरमपंथियों को नेस्तनाबूत करके ही आईडीएफ (इस्राइली सेना) मैदान से अपने बैरकों में वापसी करेगी।

हमास की स्थिति खराब

मौजूदा सूरत में हमास की कमर लगभग टूट चुकी है और IDF को सभी मोर्चों पर सामरिक बढ़त हासिल है। वॉशिंगटन और तेल अवीव ये अच्छे से जानते है कि हमास 7 अक्टूबर वाली गलती फिर नहीं दोहरा सकता, फिर भी घरेलू मोर्चें पर दुश्वारियां झेल रहे नेतन्याहू अपनी सियासी चमक को बरकरार रखने के लिए हठधर्मिता अपनाए हुए है।

बाइडेन पर दवाब

अब सामने आता है, बड़ा सवाल आखिर हमास को घुटने पर लाने के लिए जो पहले एक सुर में आलाप भर रहे थे, अचानक उनकी राहें अलग कैसे हो गयी? इस सवाल के केंद्र में है अमेरिकी चुनाव, जिसमें बाइडेन को संभावित हार के लक्षण मिलने शुरू हो गए है। दूसरी ओर भष्ट्राचार के मामले में नेतन्याहू पर भी न्यायिक तलवार टंगी हुई, माना ये भी जा रहा है कि युद्ध अपराध के लिए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस उन्हें दोषी करार दे सकती है। बावजूद इसके वो अपने जंगी फरमान पर डटे हुए है। बाइडेन गाजा में अमन चैन की बहाली करके अपनी छवि चमकाना चाहते है, वहीं नेतन्याहू इस्राइली आवाम के सामने अपने सख्त नज़रिये की मिसाल पेश करना चाह रहे हैं। दबावों की गिरफ़्त के बीच सत्ता बरकरार रखते हुए और खुद को न्यायिक प्रक्रिया बचाए रखना नेतन्याहू के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होता दिख रहा है।

राह में कई रोड़े

अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया के सामने स्थायी शांति के अमेरिकी के दावे अभी यर्थाथ से कोसों दूर है। इस पहल पर अभी भी कई बड़ी रूकावटें दिख रही है। साथ ही फिलिस्तीन-इज़राइल संघर्ष खत्म करने के खेल में कई खिलाड़ी भी शामिल है, जिनको साथ लेकर चलने में व्हाइट हाउस को कई डिप्लोमैटिक कवायदों का सहारा लेना पड़ सकता है। इन सबके बीच नेतन्याहू पर अमेरिका से ज्यादा दक्षिणपंथी यहूदी अतिराष्ट्रवादियों का दबाव रहेगा कि वो इस शांति समझौते को कतई स्वीकार ना करें।

कई सवालों के जवाब नहीं

अगर शांति समझौता लागू भी हो जाता है तो इस्राइली हुक्मरान फिलिस्तीनी सरकार को सुरक्षा गारंटी देगें? फिलिस्तीनी संप्रभुता को तेल अवीव से स्वीकार्यता मिल पायेगी? ये बड़े सवाल हैं, जिनके जवाब को लेकर अमेरिका भी संशय की स्थिति में है। इस बीच एक और थ्योरी सामने आ रही है कि भले ही इस शांति समझौते से इस्राइल सहमत हो या न हो, लेकिन संभावित सीजफायर के बाद अमेरिका हमास पर नरम रूख़ अख्तियार कर सकता है, जैसा कि अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता हस्तांतरण करके उसने किया। अगर ऐसा होता है तो फिलिस्तीनी उग्र राष्ट्रवादी इकाई हमास को अपने तेवरों में उदारवादी लचीलापन लाना पड़ेगा, जो कि तालिबान अभी पूरी तरह अपने स्वभाव में नहीं ला पाया है।
कुल जमा ये है कि दुनिया भर के अमन चैन के पैरोकारों के लिए शांति समझौते की अमेरिकी कोशिशें साहसिक कदम प्रतीत हो रही हैं, लेकिन वॉशिंगटन इसे कितनी ईमानदारी से लागू करेगा ये देखने लायक होगा। दूसरी ओर इस्राइल किन शर्तों के साथ इस पर अपनी सहमति देगा इस पर भी दुनिया टकटकी लगाए हुए है।
इस लेख के लेखक राम अजोर जो स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं, टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | एक्सप्लेनर्स (explainer News) और चुनाव के समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

लेटेस्ट न्यूज

शिशुपाल कुमार author

पिछले 10 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए खोजी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में एक अपनी समझ विकसित की है। जिसमें कई सीनियर सं...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited