सिर्फ राहुल और प्रियंका नहीं, कांग्रेस को यूपी में जीत दिलाने में इन दो नेताओं का रहा बड़ा रोल; जानें आगे की प्लानिंग
UP Politics: यूपी की छह लोकसभा सीटों पर जीत दिला पाना सिर्फ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के वश की बात नहीं थी। इसके पीछे दो सबसे ऐसे नेताओं का अहम रोल रहा है, जिन्होंने चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस की जीत का क्रेडिट खुद को नहीं दिया। कौन हैं, वो दो नेता रिपोर्ट में जानें।
UP में कांग्रेस की जीत के दो अहम किरदार।
Congress Future in Uttar Pradesh: कांग्रेस पार्टी का उत्तर प्रदेश में पुनर्जन्म हुआ है, इसके लिए कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक में राहुल गांधी की जमकर सराहना हुई। राहुल ने यूपी में जीत का सबसे ज्यादा श्रेय अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को दिया, लेकिन क्या ये सच है कि 80 सीटों वाले इस राज्य में कांग्रेस को वापस जीवित करने में राहुल और प्रियंका ने ही सबसे अधिक मेहनत की, क्या इन दोनों को ही क्रेडिट दिया जाना चाहिए। सियासत में क्रेडिट गेम का चलन सबसे ज्यादा है।
सिर्फ राहुल और प्रियंका के वश की बात नहीं
यदि ये कहा जाए कि यूपी में 1 सीट वाली कांग्रेस को इस बार 6 सीटें मिली, तो ऐसा कर पाना सिर्फ राहुल और प्रियंका के वश की बात थी, तो ये सरासर नाइंसाफी होगी। सिर्फ इन दोनों के वश की बात नहीं थी कि कांग्रेस को सूबे की छह सीटों पर जीत हासिल हो जाए। इसके पीछे दो सबसे ऐसे नेताओं का अहम रोल रहा है, जिन्होंने चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस की जीत का क्रेडिट खुद को नहीं दिया। इन दोनों नेताओं में से एक का नाता तो कांग्रेस से ही है, लेकिन दूसरा कांग्रेस का नेता नहीं है।
» पहला किरदार: इस नेता ने कांग्रेस को यूपी में किया मजबूत
पांच बार के विधायक, वो नेता जिसका कभी भारतीय जनता पार्टी से गहरा नाता था। भाजपा छोड़ उसने सपा की साइकिल पर भी सवारी की। इसके बाद वो निर्दलीय विधायक चुना गया। तीन बार भाजपा से विधायक और दो बार निर्दलीय विधायक... 2012 में जब उन्होंने निर्दलीय चुनाव जीता, तो उसके बाद कांग्रेस पार्टी का हाथ थाम लिया। पांच बार विधायक रहे इस नेता ने चार बार लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन हर बार उसे हार का सामना करना पड़ा। साल 2012 से कांग्रेस का दामन थामने वाले नेता को इस लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया। जी हां, उस नेता का नाम है अजय राय...। यूपी में कांग्रेस को 2009 के बाद इतनी अधिक सीटों पर जीत मिली है। 2004 में कांग्रेस को राज्य की 9 सीटों पर जीत मिली थी, 2009 के चुनावों में इसमें इजाफा हुआ और 21 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया। लेकिन सूबे में उसका ग्राफ लगातार गिरता चला गया।
लगातार गिरता जा रहा था कांग्रेस का ग्राफ
राजनीतिक दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश जैसे अहम राज्य में कांग्रेस पार्टी को 2009 के बाद इतना भारी नुकसान हुआ था, जिसकी शायद कभी कल्पना भी नहीं की होगी। लोकसभा चुनाव 2009 में 21 सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस 5 सालों बाद 2014 के चुनाव में 2 सीटों पर सिमट गई। उसे अमेठी और रायबरेली के अलावा एक भी सीट नसीब नहीं हुई थी। ये ग्राफ और गिरता चला गया, 2019 में तो कांग्रेस से अमेठी भी छिन गई। खुद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी से स्मृति ईरानी ने पटखनी दे दी। 80 सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट- रायबरेली पर जीत मिली।
कमान संभालते ही अजय राय ने दिया नतीजा
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने इस बीच कई उलटफेर किए। राजबब्बर जैसे मशहूर अभिनेता और नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। अजय कुमार लल्लू को भी प्रदेश की कमान सौंपी गई। इन दोनों नेताओं ने ही उम्मीदों पर पानी फेर दिया। 2019 में मिली हार से कांग्रेस परेशान थी, खुद प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी की कमान संभाली, लेकिन 2022 में कांग्रेस को सिर्फ दो विधानसभा सीटों पर जीत नसीब हुई। 403 विधानसभा सीटों वाले राज्य में किसी राष्ट्रीय पार्टी को सिर्फ दो सीटें नसीब हुई, इससे बड़ी शर्म की क्या ही बात होगी। वो भी उस पार्टी को, जिसने देश पर सबसे लंबे समय तक हुकूमत की हो। हालांकि जबसे अजय राय ने यूपी कांग्रेस की कमान संभाली वो पार्टी को मजबूत करने की कोशिशों में जुट गए।
समाजवादी पार्टी से भी कर लिया दो-दो हाथ
विपक्षी दलों का गठबंधन INDIA का गठन हो चुका था, इसी बीच कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच यूपी में बात नहीं बन रही थी। अजय राय ने सपा और अखिलेश की खुली आलोचना करनी शुरू कर दी। उन्होंने कई सपा नेताओं को कांग्रेस में शामिल कराया, जिसके बाद ये माना जा रहा था कि दोनों के बीच गठबंधन संभव नहीं है। हालांकि अजय राय ने कूटनीति का इस्तेमाल किया और आखिरकार अखिलेश यादव कांग्रे को 17 सीटें देने के लिए राजी हो गए। चुनाव में खुद अजय राय को हार झेलनी पड़ी, लेकिन उन्होंने उत्तर प्रदेश में संगठन को मजबूत करने के लिए करीब एक महीने तक यूपी जोड़ो यात्रा की। उसका फायदा नतीजों में दिखा। इलाहाबाद, सीतापुर, सहारनपुर और बाराबंकी जैसी सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई।
» दूसरा किरदार: कांग्रेस से इस नेता का नहीं है कोई भी नाता
यदि यूपी में कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई, उसमें जितनी अजय राय की भूमिका है, उतना ही अहम रोल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की है। अखिलेश ने गठबंधन में रहते हुए कांग्रेस के साथ कोई छल नहीं किया। उन्होंने कांग्रेस को उन सीटों पर लड़ने का मौका दिया, जहां उसने मजबूत लड़ाई लड़ी। खुद अजय राय ने वाराणसी सीट से नरेंद्र मोदी को कड़ी टक्कर दी। 4 लाख 79 हजार से अधिक वोटों से पिछली बार जीत हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी को इस बार महज डेढ़ लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत मिली।
अखिलेश ने चुनाव प्रचार में नहीं किया मतभेद
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने चुनाव प्रचार में कोई भी मतभेद नहीं किया। वो अजय राय के साथ रोड शो करते नजर आए। यूपी की उन सभी सीटों के लिए चुनावी रैलियां की, मंच पर राहुल गांधी, अजय राय प्रियंका गांधी के साथ नजर आए। खुद अखिलेश तो अखिलेश उनकी पत्नी डिंपल यादव भी प्रियंका के साथ रोड शो करती नजर आईं। कहीं न कहीं ये सपा नेता की रणनीति और आपसी सामंजस्य का ही परिणाम है, जिससे कांग्रेस यूपी में दोबारा जीवित हो पाई है।
राहुल की ये गलती कहीं भारी न पड़ जाए
जबसे कांग्रेस की कमान राहुल गांधी ने संभाली, उन्होंने कई ऐसी गलतियां की जिसके चलते कांग्रेस को भारी नुकसान झेलना पड़ा है। हाल ही में उन्होंने ये बयान दिया कि यदि उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा बनारस से चुनाव लड़ी होतीं तो वो मोदी को दो-तीन लाख वोटों से हरातीं। यहां ये सवाल उठता है कि क्या उन्हें ऐसा लगता है कि अजय राय मोदी से मुकाबला नहीं कर पाए, ये कहीं न कहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पर सवाल उठाने वाला बयान है। इसके अलावा राहुल ने खुद अपनी बहन को यूपी में जीत का क्रेडिट दे दिया। ऐसे में कहीं उनकी गलती से पार्टी में फिर फूट न पड़ जाए। उन्होंने वाराणसी में अवधेश सिंह और राजेश मिश्र जैसे नेता खो दिए हैं, अगर ऐसी ही गलती करते रहेंगे तो अजय राय को भी उनकी ऐसी बातें चुभ सकती हैं।
सवाल ये भी है कि क्या सपा और कांग्रेस का ये गठबंधन आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2027 तक बरकरार रहेगा? अगर ऐसा होता है तो क्या यूपी कांग्रेस की कमान अजय राय के पास ही रहती है या किसी और नेता पर भरोसा किया जाएगा। अखिलेश ने तो साफ कह दिया है कि INDIA गठबंधन के नेताओं को 2027 के तैयारियों में जुट जाना चाहिए। देखना होगा कि क्या राहुल और कांग्रेस भी इसमें जुटती है या फिर हर बार की तरह चुनाव के बाद खामोशी को गले लगा लेती है।
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