राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है...वो नेता जिसने पलट दी थी देश की सबसे ताकतवर सरकार
VP Singh: अपनी सादगी के चलते वीपी सिंह की लोकप्रियता आसमान पर थी। ऐसे में उनकी छवि को ध्यान में रखते हुए एक नारा गढ़ा गया, जो था- "राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है।" उन्होंने इसे साबित करते हुए देश की कमान भी संभाली।

पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह
VP Singh: भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश की सियासत 360 डिग्री घूम चुकी थी। एक तरफ देश दंगों की गिरफ्त में था, तो दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रति लोगों की सहानुभूति चरम पर पहुंच गई थी। नतीजा यह हुआ कि देश के सियासी इतिहास की सबसे ताकतवर सरकार का गठन हुआ। 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 542 में से 415 सीटें जीतीं और राजीव गांधी सबसे मजबूत सरकार के प्रधानमंत्री बने।
हालांकि, कांग्रेस सरकार के सामने एक और चुनौती मुंह बाए खड़ी थी। वह था 1987 में हुआ बोफोर्स घोटाला। यूं तो राजीव गांधी की सरकार कई तरह के घोटालों में घिर चुकी थी, लेकिन बोफोर्स तोप घोटाले ने इस सरकार की ताबूत पर आखिरी कील का काम किया। दरअसल, कई फैसलों को लेकर राजीव गांधी और उनकी ही सरकार में वित्त एवं रक्षा मंत्री वीपी सिंह के बीच कई मुद्दों को लेकर मतभेद सामने आ चुके थे, जिसको लेकर वीपी सिंह ने इस्तीफा दे दिया। इससे संदेश गया कि भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के कारण वीपी सिंह को मंत्री पद छोड़ना पड़ा।
बोफोर्स पर मीडिया रिपोर्ट ने पूरी कर दी कसर
वीपी सिंह के इस्तीफे के बाद सरकार चौतरफा घिर चुकी थी। इसी के तुरंत बाद स्वीडिश रेडियो ने बोफोर्स तोप घोटाले को लेकर खुलासा कर दिया। इस पर सामने आई मीडिया रिपोर्ट से राजीव सरकार की काफी किरकिरी हुई, जो कसर बाकी रह गई थी वो कैग की रिपोर्ट और विपक्षी सांसदों के इस्तीफे ने पूरी कर दी। इस घोटाले में इलाहाबाद से सांसद व अभिनेता अमिताभ बच्चन व उनके भाई अजिताभ का नाम भी खूब उछला।
जब अमिताभ बच्चन ने दिया इस्तीफा
अमिताभ बच्चन की गिनती राजीव गांधी के करीबी व पारिवारिक मित्रों में होती थी। हालांकि, राजीव गांधी के मना करने के बावजूद अमिताभ ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे के बाद इलाहाबाद की सीट खाली हो गई और वीपी सिंह को सरकार पर चोट करने का मौका मिल गया। यह वह समय था जब वीपी सिंह ने सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम छेड़ रखी थी और वह देशभर में यात्राएं कर रहे थे, जिससे उनकी लोकप्रियता में इजाफा होता जा रहा था।
राजा नहीं फकीर है...
यूं तो वीपी सिंह इलाहाबाद में मांडा रियासत के राज परिवार से आते थे ओर लोग उन्हें राजा साहब कहकर बुलाते थे। लेकिन, उनकी सादगी के चलते उनकी लोकप्रियता एक साधारण आदमी के रूप में हो चुकी थी। ऐसे में उनकी छवि को ध्यान में रखते हुए एक नारा गढ़ा गया, जो था- "राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है।" इस नारे की लोकप्रियता ऐसी हुई कि वीपी सिंह देश के युवाओं, गरीबों के साथ-साथ विपक्ष की भी उम्मीद बन चुके थे। इसी समय उन्होंने जनमोर्चा का गठन किया और अमिताभ बच्चन के इस्तीफे से खाली हुई इलाहाबाद सीट से उपचुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत भी हासिल की।
जनता दल का हुआ गठन
इलाहाबाद सीट पर उपचुनाव के बाद 1989 के लोकसभा चुनाव करीब आ रहे थे। ऐसे में सभी पार्टियों ने मिलकर वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल का गठन किया। वामपंथी दलों ने भी वीपी सिंह को अपना नेता मान लिया था। जब 1989 के लोकसभा चुनाव हुए थे वीपी सिंह के लिए गढ़ा गया नारा "राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है" लोगों के दिलों-दिमाग पर सिर चढ़कर बोला और कांग्रेस 197 सीटें पाकर सत्ता से बाहर हो गई। इस चुनाव में जनता दल को 143, भाजपा को 85 व वाम मोर्चा को 45 सीटें मिलीं। तीनों के समर्थन से नई सरकार का गठन हुआ और वीपी सिंह के रूप में देश को आठवां प्रधानमंत्री मिला।
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मैं इस वक्त टाइम्स नाउ नवभारत से जुड़ा हुआ हूं। पत्रकारिता के 8 वर्षों के तजुर्बे में मुझे और मेरी भाषाई समझ को गढ़ने और तराशने में कई वरिष्ठ पत्रक...और देखें

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