अंतरिक्ष की राह नहीं है अभी भी आसान! आधे मून मिशन हो जाते फेल, समझें- स्पेस में पहुंचना क्यों है कठिन?
Chandrayaan-3: रूस का लूना-25 इंडिया के चंद्रयान-3 की लैंडिंग से पहले क्रैश हो गया था। रोचक बात है कि पूर्ववर्ती सोवियत संघ से लेकर आधुनिक रूस तक 60 साल से भी अधिक के अनुभव के बावजूद यह मिशन असफल हुआ। नहीं पता कि असल में क्या हुआ, पर रूस के मौजूदा हालात इसका एक कारक हो सकते है। यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के कारण रूस में तनाव अधिक है और संसाधनों का अभाव है।
तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (क्रिएटिवः अभिषेक गुप्ता)
Chandrayaan-3: हिंदुस्तान के मून मिशन चंद्रयान-3 के तहत भले ही पृथ्वी के चट्टानी पड़ोसी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर विक्रम की सफल सॉफ्ट लैंडिंग हुई हो, मगर अभी भी अंतरिक्ष की राह दुनिया के बड़े-बड़े मुल्कों को लिए आसान नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि स्पेस में पहुंचना अब तक भी कठिन और खतरनाक है, लिहाजा पूर्व में लगभग आधे चंद्र मिशन विफल होते नजर आए हैं। आइए, जानते हैं इस बारे में विस्तार से:
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चंद्रयान-3 से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने साल 2019 में चंद्रमा पर एक अंतरिक्षयान उतारने की कोशिश की थी, पर वह इसकी बंजर सतह पर मलबे की एक किलोमीटर लंबी लकीर ही खींच सका था। चंद्रयान-2 फेल हो गया था। वैसे, भारत की हालिया सफलता (चंद्रयान-3) से कुछ ही रोज पहले मित्र देश रूस को तब असफलता का सामना करना पड़ा था, जब उसके लूना-25 मिशन ने पास ही के क्षेत्र पर उतरने की कोशिश की, लेकिन वह चंद्रमा की सतह से टकराकर क्रैश हो गया था।
ऐसे में ये दोनों मिशन हमें साफ संकेत देते हैं कि चांद पर ‘‘सॉफ्ट लैंडिंग’’ की पहली सफलता के लगभग 60 साल बाद भी अंतरिक्षयान मिशन अब भी बेहद मुश्किल और खतरनाक हैं। खासतौर से चंद्र मिशन सिक्का उछालने जैसे हैं। वैसे, इससे पहले के सालों में दुनिया ने कई बड़े देशों को इस बाबत फेल होते देखा है।
दरअसल, चांद एकमात्र खगोलीय जगह है, जहां (अब तक) मनुष्य पहुंचे हैं। यह लगभग 4,00,000 किमी की दूरी पर हमारा सबसे निकटतम ग्रहीय पिंड है। फिर भी अभी तक (खबर लिखे जाने तक) सिर्फ चार देश ही (रूस, अमेरिका, चीन और इंडिया) चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर पाए।
सबसे पहले पूर्व सोवियत संघ ने यह सफलता हासिल की थी। लूना-9 मिशन लगभग 60 साल पहले फरवरी 1966 में चंद्रमा पर सुरक्षित रूप से उतरा था। फिर अमेरिका ने कुछ महीनों बाद जून 1996 में ‘सर्वेयर 1’ मिशन से सफलता का स्वाद चखा। आगे चीन 2013 में ‘चांग’ई 3’ मिशन की सफलता के साथ इस समूह में शामिल हुआ और हाल में भारत भी चंद्रयान-3 के साथ चांद पर पहुंचा, जबकि जापान, संयुक्त अरब अमीरात, इजराइल, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, लक्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली के मिशन असफल रहे।
स्पेस मिशन अभी भी जोखिम भरा काम है। केवल 50 प्रतिशत से अधिक चंद्र मिशन सफल होते हैं। यहां तक कि पृथ्वी की कक्षा में छोटे उपग्रह मिशन भी शत-प्रतिशत सफल नहीं होते। उनकी सफलता दर 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के बीच है। मानव रहित मिशन की तुलना मानव युक्त मिशन से कर सकते हैं: लगभग 98 प्रतिशत मानव युक्त मिशन सफल होते हैं, क्योंकि अंतरिक्ष यात्रियों से युक्त मिशन की मदद के लिए पृथ्वी पर काम करने वाले वैज्ञानिक अधिक ध्यान केंद्रित करके काम करेंगे, उनके लिए प्रबंधन अधिक संसाधनों का निवेश करेगा और उनकी सुरक्षा की प्राथमिकता के मद्देनजर देरी को स्वीकार किया जाएगा।
हालांकि, अगर इंसानों को पूर्ण विकसित अंतरिक्ष-सभ्यता का निर्माण करना है, तो हमें बड़ी चुनौतियों से आगे निकलना होगा। लंबी अवधि, लंबी दूरी की अंतरिक्ष यात्रा को संभव बनाने के लिए कई समस्याओं का समाधान करना होगा। प्रगति धीरे-धीरे होगी, छोटे कदम धीरे-धीरे बड़े बनेंगे। इंजीनियर और अंतरिक्ष प्रेमी अंतरिक्ष मिशन में अपनी दिमागी ताकत, समय और ऊर्जा लगाते रहेंगे व वे धीरे-धीरे और अधिक कामयाब होते जाएंगे। (पीटीआई इनपुट्स के साथ)
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