हम पर लग रहे कार्यपालिका के अधिकारों में दखल देने के आरोप...आखिर क्यों जस्टिस गवई ने कही ये बात, क्या मामला पकड़ेगा तूल?

विष्णु जैन की याचिका पर जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि आप चाहते हैं कि हम इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति को आदेश जारी करें? वैसे भी हम पर कार्यपालिका में अतिक्रमण करने का आरोप है।

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

Executive Vs Judiciary: वक्फ कानून लागू होने के बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। वकील विष्णु शंकर जैन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करेगा। हालांकि, बंगाल में राष्ट्रपति लगाने की मांग पर जस्टिस बीआर गवई ने कहा, वैसे भी हम पर आरोप लग रहा है कि हम कार्यपालिका के अधिकारों में दखल दे रहे हैं। किन परिस्थितियों में और क्यों जस्टिस गवई ने इस तरह का बयान दिया है, समझने की कोशिश करते हैं।

पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग

दरअसल, वकील विष्णु शंकर जैन ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। उन्होंने जस्टिस गवई की बेंच से कहा कि राज्य में मौजूदा हिंसा को देखते हुए अर्धसैनिक बलों की तत्काल तैनाती जरूरी। विष्णु जैन की टिप्पणी पर जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि आप चाहते हैं कि हम इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति को आदेश जारी करें? वैसे भी हम पर कार्यपालिका में अतिक्रमण करने का आरोप है। हम पर आरोप लग रहा है कि हम कार्यपालिका के अधिकारों में दखल दे रहे हैं।

विष्णु जैन ने कहा कि इस मामले पर पहले से बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की मेरी याचिका लंबित है, जिस पर कोर्ट 2022 में नोटिस जारी कर चुका है। यह मामला कल सुनवाई के लिए लिस्टेड है। इसी मामले में हमने बंगाल में वर्तमान हिंसा को लेकर एक अर्जी दाखिल की है, जिसमें अर्धसैनिक बलों की तैनाती, तीन रिटायर जजों की निगरानी में जांच कराने और राज्यपाल से इस मामले की रिपोर्ट मांगने की अपील की है। इसमें हिंदुओं के पलायन संबंधी जानकारी मुहैया कराने की भी याचना की गई है।

निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा का सुप्रीम कोर्ट पर निशाना

दरअसल, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ संशोधन कानून के विरोध में भड़की हिंसा के बाद हालात तनावपूर्ण हैं। इस हिंसा से डरकर दर्जनों परिवारों का पलायन जारी है। इस हिंसा के बीच भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था, अगर सुप्रीम कोर्ट कानून बनाता है तो संसद को बंद कर देना चाहिए। हालांकि, भाजपा ने सांसद निशिकांत दुबे और पार्टी के राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट और देश के मुख्य न्यायाधीश पर दिए गए बयान से किनारा कर लिया है। दोनों नेताओं ने वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट की चल रही सुनवाई के संदर्भ में न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल उठाए। भारतीय जनता पार्टी ने इन बयानों से किनारा करते हुए इसे इन नेताओं की व्यक्तिगत राय करार दिया और ऐसी टिप्पणियों से बचने का निर्देश जारी किया।

मोदी सरकार पर विपक्ष हमलावर

निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के बयान पर सियासी घमासान जारी है। इनके बयानों को लेकर विपक्षी दल बीजेपी पर हमलावर हैं। वहीं, बीजेपी ने इनके बयानों से खुद को दूर कर लिया है। लेकिन ये बयान अपना असर दिखा रहे हैं। सांसदों द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सीधे निशाने पर लिए जाने के बाद मामला सुर्खियों में है। इससे पहले राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ भी सुप्रीम कोर्ट पर उंगली उठा चुके हैं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने और सुपर संसद के रूप में कार्य करने को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट लोकतांत्रिक ताकतों पर परमाणु मिसाइल नहीं दाग सकता।

सुप्रीम कोर्ट पर निशाना

उन्होंने कहा था, हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं, जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका के कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है। उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण शक्तियां प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 142 को न्यायपालिका को चौबीसों घंटे उपलब्ध लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल करार दिया था। इसी तर्ज पर फिर निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा ने भी वक्फ कानून के लागू होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है और उसने कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी है। बयानों के बाद इन दोनों नेताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की याचिकाएं भी दाखिल हो गईं। इस बीच मुर्शिदाबाद हिंसा मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और जस्टिस गवई ने कह दिया कि आजकल सुप्रीम कोर्ट पर कार्यपालिका के अधिकारों में दखल देने के आरोप लग रहे हैं। मामला लगातार तूल पकड़ता दिख रहा है।

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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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