Explained: अब भारत में इलेक्ट्रिक सड़कों की चर्चा ने पकड़ा जोर, समझिए ये क्या है, कैसे करता है काम
दुनिया भर में कई कंपनियां इलेक्ट्रिक सड़कों पर काम कर रही हैं, जिनमें वोक्सवैगन और वोल्वो भी शामिल हैं। स्टॉकहोम, स्वीडन और डेट्रॉइट, अमेरिका में प्रयोग के तौर पर इलेक्ट्रिक सड़कें बनाई गई हैं।
इलेक्ट्रिक सड़कों पर चर्चा तेज (Freepik)
Electric Roads: इलेक्ट्रिक सड़कें तेजी से चर्चा का विषय बनती जा रही हैं, लेकिन ये क्या हैं और कैसे काम करती हैं? इलेक्ट्रिक सड़कें इलेक्ट्रिक वाहनों की सीमित सीमा और चार्जिंग समय की समस्याओं का एक संभावित समाधान हैं, खासकर लंबी दूरी की यात्रा के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। इलेक्ट्रिक सड़कों ने भारत सरकार और वोक्सवैगन और वोल्वो सहित दुनिया भर की कई कंपनियों का ध्यान आकर्षित किया है। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी नए-नए प्रयोग लागू करने के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने भारत में इलेक्ट्रिक सड़कों की चर्चा को आगे बढ़ाया है। उन्होंने कई मौकों पर इलेक्ट्रिक सड़कों के बारे में बात की है और फिलाहल टाटा सहित कुछ कंपनियों के साथ इलेक्ट्रिक सड़कों की संभावना पर बातचीत कर रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि ऐसी सड़कें परिवहन के लिए बेहतर विकल्प प्रदान कर सकती हैं।
पर्यावरण-अनुकूल होने की वजह से लोकप्रिय
इलेक्ट्रिक वाहनों के दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल करने का मुख्य कारण इनका पर्यावरण-अनुकूल होना है। पेट्रोल या डीजल से चलने वाले पारंपरिक वाहनों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे वायु प्रदूषण करते हैं। ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं के कारण दुनिया कार्बन उत्सर्जन को कम करने की कोशिशों में जुटी है। सरकारें इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दे रही हैं क्योंकि वे बिल्कुल भी धुआं नहीं छोड़ते हैं।
लागत भी एक प्रमुख फैक्टर
इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में लागत भी एक प्रमुख फैक्टर है। भारत में सरकार कच्चे तेल पर बड़ी मात्रा में पैसा खर्च करती है, डीजल और पेट्रोल की 80% से अधिक खपत आयातित कच्चे तेल से पूरी की जाती है। इस खर्च को कम करने से भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता कम होगी और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार की बचत होगी। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक वाहनों को चलाने की लागत पेट्रोल या डीजल वाहनों को चलाने की तुलना में काफी कम है, क्योंकि बैटरी को चार्ज करने की लागत पेट्रोल या डीजल भरवाने की लागत की तुलना में मामूली है। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक वाहनों की सर्विसिंग लागत भी बहुत कम है।
इलेक्ट्रिक वाहनों की अपनी सीमाएं
हालांकि, तकनीक में प्रगति के बावजूद इलेक्ट्रिक वाहनों की अपनी सीमाएं हैं। सबसे बड़ी खामी बैटरी की सीमित रेंज और चार्ज होने में लगने वाला समय है। अच्छे इलेक्ट्रिक वाहन फिलहाल 500-700 किमी की रेंज दे रहे हैं, यानी अगर आपको लंबी दूरी तय करनी है तो आपको कई बार रुकना होगा और बैटरी चार्ज करनी होगी। यह ट्रक जैसे वाणिज्यिक वाहनों के लिए विशेष रूप से समस्या भरा साबित होगा, जो अक्सर लंबी दूरी तय करते हैं। दूसरी समस्या बैटरी में लिथियम के इस्तेमाल की है, जो कच्चे तेल की तरह आयात किया जाता है। इसका मतलब यह है कि कार्बन उत्सर्जन की समस्या तो कम हुई है, लेकिन आयात पर निर्भरता बनी हुई है।
कई कंपनियां इलेक्ट्रिक सड़कों पर काम कर रही
दुनिया भर में कई कंपनियां इलेक्ट्रिक सड़कों पर काम कर रही हैं, जिनमें वोक्सवैगन और वोल्वो भी शामिल हैं। स्टॉकहोम, स्वीडन और डेट्रॉइट, अमेरिका में प्रयोग के तौर पर इलेक्ट्रिक सड़कें बनाई गई हैं। स्वीडिश सरकार 3000 किमी लंबा इलेक्ट्रिक हाईवे बनाने की तैयारी कर रही है। इलेक्ट्रिक सड़कों के लिए दो अवधारणाएं हैं। पहली अवधारणा एक ओवरहेड इलेक्ट्रिक तार पर आधारित है, जिसका इस्तेमाल ट्रेनों या महानगरों में किया जाता है। फॉक्सवैगन की अवधारणा इसी पर आधारित है और इसमें हाइब्रिड वाहन चलाना शामिल है। जहां ओवरहेड तार हैं वहां वाहन बिजली से चलेंगे और जहां ओवरहेड तार नहीं हैं वहां बैटरी या पेट्रोल-डीजल से चलेंगे। दूसरी योजना में टायरों के जरिए वाहनों के इंजन तक बिजली पहुंचाना शामिल है। वोल्वो का मॉडल ओवरहेड तारों से बचने और सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए डिजाइन किया गया है, खासकर शहरों में। फिलहाल यह चर्चा के स्तर तक ही सीमित है, हो सकता है कि आने वाले वक्त में भारत में हमें ऐसी इलेक्ट्रिक सड़कें देखने को मिल जाएं।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) पढ़ें हिंदी में और देखें छोटी बड़ी सभी न्यूज़ Times Now Navbharat Live TV पर। एक्सप्लेनर्स (Explainer News) अपडेट और चुनाव (Elections) की ताजा समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से।
End of Article
अमित कुमार मंडल author
करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव ...और देखें
End Of Feed
© 2025 Bennett, Coleman & Company Limited