क्या है अर्ली वार्निंग सिस्टम? लैंडस्लाइड से मची तबाही, तो इसकी जरूरत दिया जा रहा जोर; जानें खास बातें
What is Early Warning System: केरल के वायनाड जिले में विनाशकारी भूस्खलन ने त्राहिमाम मचा दिया। मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। इस बीच विशेषज्ञों ने पूर्व चेतावनी प्रणाली की जरूरत का जिक्र किया है। क्या आप जानते हैं कि आखिर ये क्या होता है और आपदा को लेकर इससे क्या मदद मिलती है।
पूर्व चेतावनी प्रणाली को समझिए।
Landslide Updates: वायनाड भूस्खलन में मरने वालों की संख्या 300 के पार पहुंच गई है, 200 से अधिक लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। केरल की अब तक की सबसे भीषण प्राकृतिक आपदा के बाद बचाव अभियान अभी भी जारी है। विभिन्न बलों के अलावा स्थानीय लोगों से ली गई एक हजार से अधिक सदस्यीय बचाव टीम को नौ ग्रुप में बांटा गया है, जो लोगों की मदद करने और लापता लोगों की तलाश के लिए प्रयास कर रही है। इस बीच विशेषज्ञों ने पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning System) की जरूरत का जिक्र किया है। अमित शाह ने संसद में दावा किया कि भारत के पास दुनिया की सबसे आधुनिक समय-पूर्व चेतावनी प्रणाली मौजूद है। आपको इस लेख में समझाते कि समय-पूर्व चेतावनी प्रणाली आखिर क्या है?
क्या है समय-पूर्व चेतावनी प्रणाली?
पूर्व चेतावनी प्रणाली यानी अर्ली वॉर्निंग सिस्टम एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके जरिए आपदाओं के बारे में पूर्वानुमान लगाया जाता है। प्राकृतिक या मानवजनित आपदाओं से संबंधित खतरों को इसकी मदद से कम करने की कोशिशें की जाती हैं। इसके पूर्वानुमान के चलते आपदा से निपटने की तैयारियां की जाती हैं। माना जाता है कि भूस्खलन के अलावा भूकंप, सुनामी, बाढ़ और चक्रवात के दौरान ये उपयोगी साबित होता है।
अर्ली वॉर्निंग सिस्टम का फायदा
इस प्रणाली के जरिए जो अनुमान लगाए जाते हैं, उससे आपदा आने से पहले उसके लिए तैयारी का वक्त मिल जाता है। यानी समय रहते लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचा दिया जाता है, जिससे जानमाल का नुकसान कम से कम होता है। यह डिजास्टर मैनेजमेंट का एक तरीका है। दुनियाभर में अर्ली वार्निंग सिस्टम का इस्तेमाल होता है। इसकी तैयारी को लेकर अमेरिका में खूब काम हुआ। वहां भूकंप, ज्वालामुखी और अन्य भूवैज्ञानिक खतरों की निगरानी यूएस जियोलॉजिकल सर्वे करता है।
पूर्व चेतावनी प्रणाली।
पूर्व चेतावनी प्रणाली की जरूरत को समझिए
विशेषज्ञों ने वर्षा और भूस्खलन की आशंका के बीच संबंध स्थापित करने वाली एक सटीक पूर्व चेतावनी प्रणाली की जरूरत पर बल दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बहुत जरूरी है क्योंकि बारिश पूरे भारत में पहाड़ों पर कहर ढा रही है और केरल के वायनाड की ढलानों पर तो यह और भी ज्यादा खतरनाक हो गई है, जहां भूस्खलन के कारण सैंकड़ों घर और हजारों लोग दब गए। हिमाचल प्रदेश में बादल फटने से घर, पुल और सड़कें बह गईं, जिसमें लोगों की मौत हुई, लोग लापता हो गए। उत्तराखंड में भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई और घर ढह गए, यहां भी लोगों की मौत हो गई। इन पहाड़ी राज्यों में बारिश की वजह से त्रासदियां ऐसे समय में हुईं, जब वायनाड में भूस्खलन ने तबाही मचाई
पूर्व चेतावनी प्रणाली को लेकर विशेषज्ञों ने क्या कहा?
विशेषज्ञों का कहना है कि अनियमित बारिश, चरम मौसमी घटनाओं, बदलती जलवायु परिस्थितियों और नाजुक पहाड़ियों - उत्तर और दक्षिण दोनों में - के परिदृश्य को देखते हुए वर्षा सीमा के पिछले अनुभवों के आधार पर एक सटीक पूर्व चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस) और उसके बाद व्यवस्थित निकासी प्रोटोकॉल आवश्यक है। ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट एंड डिजास्टर मैनेजमेंट सपोर्ट सर्विसेज’ के नीलमाधब प्रुस्ती ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को बताया, 'ईडब्ल्यूएस यह समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि कौन से क्षेत्र संवेदनशील हैं और कौन से समुदाय संवेदनशील हैं। ईडब्ल्यूएस क्षेत्रों और खतरे की संभावनाओं, खतरे की सीमा और समय का उपयोग करेगा ताकि यह निकासी सहित अन्य उपायों को स्थापित कर सके।'
'चार श्रेणियों में भूस्खलन के पूर्वानुमान मिलते हैं'
अभी तक, देश में भूस्खलन के पूर्वानुमान के लिए कोई विस्तृत अध्ययन या ईडब्ल्यूएस नहीं है। उदाहरण के लिए केरल में, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने 29 जुलाई को दो दिनों के लिए पूर्वानुमान दिया था, लेकिन यह नहीं बताया कि क्या होने वाला है और 30 जुलाई की सुबह भूस्खलन हुआ। केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (केएसडीएमए) को चार श्रेणियों में भूस्खलन के पूर्वानुमान मिलते हैं - बहुत अधिक संभावना, उच्च संभावना, मध्यम और कम संभावना। केएसडीएमए के प्रेस सचिव पी एम मनोज ने बताया, 'वायनाड जिले के लिए 'प्रायोगिक वर्षा प्रेरित भूस्खलन पूर्वानुमान बुलेटिन' ने केवल यह पूर्वानुमान लगाया कि भूस्खलन की घटनाओं की कम संभावना है। कुछ छोटे भूस्खलन हो सकते हैं।' उन्होंने बताया, केंद्रीय एजेंसी से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली थी कि व्यापक या मध्यम स्तर का भूस्खलन होगा।'
अर्ली वार्निंग सिस्टम।
केरल ने 2020 में राज्य-विशिष्ट भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिए तीन पायलट परियोजनाओं को मंजूरी दी थी, लेकिन अभी तक कोई भी पूरी नहीं हुयी है। जीएसआई की वेबसाइट के अनुसार, लगभग चार लाख वर्ग किमी (भारत के भूमि क्षेत्र का लगभग 12.6 प्रतिशत कवर करता है) में भूस्खलन की आशंका है। इसमें सभी हिमालयी राज्य, पूर्वोत्तर के उप-हिमालयी इलाके और पूर्वी और पश्चिमी घाट वाले राज्य शामिल हैं। निकासी का भी सवाल है। उदाहरण के लिए, केएसडीएमए के पास स्थानीय रूप से प्रशिक्षित डीएम कर्मियों का एक विस्तृत नेटवर्क और प्रारंभिक चेतावनी संदेशों को प्रसारित करने के लिए पर्याप्त तंत्र हैं। लेकिन यह तस्वीर का केवल एक हिस्सा है।
'कम लागत वाले भूस्खलन निगरानी समाधान'
मनोज ने बताया कि 29 जुलाई को केएसडीएमए ने पहाड़ी इलाकों के लोगों से राहत शिविरों में जाने को कहा, लेकिन लोग नहीं गए क्योंकि “उन्हें आपदा की तीव्रता इतनी अधिक होने की उम्मीद नहीं थी। दिसंबर 2017 में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने 'कम लागत वाले भूस्खलन निगरानी समाधान' के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की। लेकिन एक अधिकारी ने कहा कि यह केवल हिमालयी राज्यों तक ही सीमित था और उसके बाद कुछ खास नहीं किया गया है।
भूस्खलन की चेतावनी जारी करती है ये परियोजना
महाराष्ट्र में ईडब्ल्यूएस में एक समुदाय द्वारा संचालित प्रयास से बदलाव आने की उम्मीद है। यह एक ऐसी परियोजना है जो भूस्खलन की चेतावनी जारी करती है। अगस्त 2015 में पुणे स्थित गैर-लाभकारी सेंटर फॉर सिटिजन साइंस (सीसीएस) द्वारा शुरू किया गया यह संगठन सह्याद्री पर्वतमाला (जिसे महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट के रूप में जाना जाता है) में भूस्खलन के बारे में जागरूकता सुनिश्चित करता है और अलर्ट जारी करता है। समूह का काम पुणे जिले के मालिन गांव में हुए भूस्खलन के एक साल बाद शुरू हुआ जिसमें 151 लोग मारे गए थे। एनडीएमए के विशेषज्ञ समूह के सदस्य संजय श्रीवास्तव ने बताया, 'पूर्व चेतावनी प्रणाली के दो भाग हैं। पहला है सटीक अलर्ट जारी करना , जिसे हमारी वैज्ञानिक एजेंसियां काफी अच्छे तरीके से कर रही हैं और फिर उसे प्रभावी तरीके से संबंधित लोगों तक पहुंचाना।'
वायनाड में भूस्खलन।
वायनाड में स्निफर कुत्तों को भी कार्य पर लगाया गया
भूस्खलन से सबसे अधिक प्रभावित चूरलमाला, वेल्लारीमाला, मुंडकाईल और पुंचिरीमाडोम क्षेत्र हैं। अब 190 फुट ऊंचे बेली ब्रिज के निर्माण के साथ, चूराल्माला और मुंडकाईल के बीच संपर्क बहाल हो गया है। स्निफर कुत्तों को भी कार्य पर लगाया गया है। बचाव दल भारी मिट्टी हटाने वाले उपकरणों से भी लैस है। अभियान का नेतृत्व कर रहे एक अधिकारी ने बताया कि प्रभावित स्थानों में से एक स्थान पर कुछ घर दबे हुए हैं, जहां वे जा रहे हैं। अधिकारी ने कहा, "जिस स्थान पर हम जल्द ही पहुंच रहे हैं, वहां करीब 10 घर हैं और हमें जो बताया जा रहा है उसके अनुसार वहां कुछ लोग हो सकते हैं, शायद जीवित हों।" वर्तमान में 91 राहत शिविरों में 9,328 लोगों को सुरक्षित पहुंचाया गया है।
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