'इंसाफ के सिपाही' बनेंगे सिब्बलः गढ़ना चाह रहे विपक्ष में नया फॉर्म्यूला, समझें- मोदी के खिलाफ एकजुटता के लिए क्या है योजना
सिब्बल का आरोप है कि चुनी हुई सरकार को अस्थिर किया गया है और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के 121 मामलों में से 115 विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं।
राज्यसभा सदस्य और कांग्रेस के पूर्व नेता कपिल सिब्बल। (फाइल)
राज्यसभा सदस्य और पूर्व कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल की ओर से विपक्ष को एक मंच पर लाने के लिए खास योजना तैयार की गई है। शनिवार (11 मार्च, 2023) को वह विपक्षी एकता की अपील के लिए अपना विजन डॉक्यूमेंट सामने रखेंगे। उन्होंने इसके मद्देनजर सभी विपक्षी पार्टियों से अपनी इस पहल को सपोर्ट करने की अपील की है। सिब्बल ने इससे पहले चार मार्च, 2023 को ऐलान किया था कि वह लोगों को अन्याय के खिलाफ लड़ने में मदद करने के लिए 'इंसाफ के सिपाही' नाम की वेबसाइट लॉन्च करेंगे। उन्होंने इसके लिए विपक्षी मुख्यमंत्रियों और पार्टियों से इस मुहिम में मदद करने के लिए कहा था।
प्रेस से उन्होंने कहा, "11 मार्च को जंतर-मंतर (दिल्ली) पर आधिकारिक लॉन्च के दौरान मैं देश के लिए एक विजन डॉक्यूमेंट भी पेश करूंगा।" उन्होंने जोर देकर आगे कहा- यह सियासी कदम नहीं बल्कि बदलाव के लिए उत्प्रेरक है। मुल्क में जो भी बदलाव आया है, वकील सबसे आगे थे और अब मैं पूछना चाहता हूं कि वकील चुप क्यों हैं? वकीलों की जमात को अपनी आवाज उठानी चाहिए। मैं एक आंदोलन शुरू करना चाहता हूं क्योंकि व्यापार, पत्रकारिता, विपक्ष...हर जगह अन्याय है। देश में हर मुद्दे पर जनता की मदद के लिए कोने-कोने में वकील खड़े होंगे।
दरअसल, सिब्बल की ओर से यह अप्रोच साल 2024 के आम चुनावों से पहले देखने को मिली है। सियासी जानकारों की मानें तो वह सियासी सेटअप में स्वतंत्र रूप से अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही मंथन हो रहा है कि फिलहाल कोई राजनीतिक मंच विकसित नहीं हुआ है, जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को चुनौती दे सके। चूंकि, विपक्षी धड़े में कई नेता नया फॉर्म्यूला (सूत्र) गढ़ने की जुगत में हैं। फिर चाहे वह तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के के. चंद्रशेखर राव हों, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की ममता बनर्जी हों या जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार हों। सिब्बल भी इस क्लब में शामिल होने वाले सबसे नए मेंबर हैं।
सिब्बल पेशे से जाने-माने सीनियर वकील हैं। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले यूपीए के कार्यकाल में वह पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे और कई सियासी दलों के लिए संकटमोचक की भूमिका निभा चुके हैं। यही नहीं, वे विभिन्न कोर्ट्स में उनके मामले लड़ने में लगे हैं, जिनमें से कुछ दल उद्धव शिवसेना, समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) हैं। वैसे, यह कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी भी हो सकती है, जिसने रायपुर में समान विचारधारा वाले दलों को साथ लेने के बारे में गठबंधन पर एक प्रस्ताव पारित किया था। पर औपचारिक रूप से विपक्षी दलों तक पहुंचने में फिलहाल कुछ समय लग सकता है।
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