क्या होती है नागर शैली? जिसमें बना है रामलला का मंदिर, भारत में कितने तरीके से बनाए जाते हैं मंदिर; यहां जानिए
Ram Mandir Ayodhya: भगवान राम का मंदिर 'नागर शैली' में बनाया गया है। यह भारत में मंदिर निर्माण की एक प्रमुख शैली है। आइए जानते हैं यह शैली क्या है? इसकी विशेषता क्या है? इस शैली में मंदिर किस प्रकार बनाए जाते हैं?
नागर शैली में बना है राम मंदिर
Ram Mandir Ayodhya: भारत...जहां हर पग पर भक्त और भगवान का मिलन होता है, गली-गली में आध्यात्म बहता है। साधक अपने साध्य से मिलने के लिए कहां-कहां नहीं भटकते, लेकिन उनके मन को शांति मंदिरों में ही मिलती है। सीधे तौर पर कहें तो भक्त और भगवान के बीच मिलन की कड़ी और सेतु हैं ये 'मंदिर'। भारत की प्राचीन स्थापत्य कला में इन मंदिरों का विशेष स्थान रहा है। आपने गौर किया होगा तो इन मंदिरों का निर्माण भिन्न-भिन्न तरीकों से हुआ है। यहां उपासना विधियां भी अलग हैं, लेकिन एक बात समान है...वह है भक्त और भगवान के बीच भक्ति।
यह सब बातें हम आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि अयोध्या में भगवान राम के दिव्य और भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है। 22 जनवरी को इस मंदिर के गर्भगृह में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होनी है। इसी के साथ रामभक्तों के 500 सालों के संघर्ष और इंतजार की भी जीत होगी।
भगवान राम का मंदिर 'नागर शैली' में बनाया गया है। यह भारत में मंदिर निर्माण की एक प्रमुख शैली है। आइए जानते हैं यह शैली क्या है? इसकी विशेषता क्या है? इस शैली में मंदिर किस प्रकार बनाए जाते हैं? और भारत में कितने तरीकों से मंदिरों का निर्माण होता है... आगे पढ़िए..
सबसे पहले राम मंदिर के बारे में जरूरी बातें
अयोध्या में बने भगवान राम के मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी। यह मंदिर तीन मंजिला होगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी और मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे। भगवान राम के मंदिर में 5 मंडप होंगे, जिनके नाम- नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप हैं। मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा। मंदिर के चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा और चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी। परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
अब नागर शैली के बारे में जानिए
नागर शब्द की उत्पत्ति नगर से हुई है। यह मुख्य रूप से 7वीं शताब्दी की शैली रही है। नागर शैली पल्लव काल में शुरू हुई और चोल काल में इस शैली के मंदिरों का निर्माण अधिक हुआ। इस शैली के मंदिरों का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक देखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है।
बड़े चबूतरे पर बनते हैं मंदिर
नागर शैली के मंदिरों का निर्माण से बड़े चबूतरे पर किया जाता है। इसके साथ ही मंदिर में एक गर्भगृह, इसके ऊपर शिखर और शिखर के ऊपर आमलक और उसके ऊपर कलश देखने को मिलता है। मंदिर के शिखर पर एक ध्वज भी लगाया जाता है। नागर शैली के मंदिरों के गर्भगृह के आगे तीन मंडप होते हैं और इन मंडप के आगे सीढ़ियां होती हैं, जो नीचे जाकर सीधे मंदिर के चबूतरे पर खत्म होती हैं।
आठ भागों में होता है मंदिर
- मूल आधार - जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है।
- मसूरक - नींव और दीवारों के बीच का भाग
- जंघा - दीवारें (विशेषकर गर्भगृह की दीवारें)
- कपोत - कार्निस
- शिखर - मंदिर का शीर्ष भाग अथवा गर्भगृह का उपरी भाग
- ग्रीवा - शिखर का ऊपरी भाग
- आमलक - शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग
- कलश - शिखर का शीर्षभाग
भारत में मंदिर निर्माण की अन्य शैलियां
हमारे देश में मंदिर निर्माण की मुख्य तीन शैलियां हैं। पहली नागर, दूसरी द्रविड़ और तीसरी वेसर शैली। नागर शैली में मुख्य रूप से मंदिरों को खुले स्थान पर बनाया जताा है, यानी इन मंदिरों के चारों ओर कोई चाहरदीवारी नहीं होती है। वहीं द्रविड़ शैली के मंदिर चाहरदीवारी के अंदर बनाए हाते हैं और इनमें प्रवेश के लिए भव्य द्वार होता है। वहीं वेसर शैली नागर और द्रविड़ की मिलीजुली शैली है।
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मैं इस वक्त टाइम्स नाउ नवभारत से जुड़ा हुआ हूं। पत्रकारिता के 8 वर्षों के तजुर्बे में मुझे और मेरी भाषाई समझ को गढ़ने और तराशने में कई वरिष्ठ पत्रक...और देखें
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