क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट? क्यों हो रही इसे रद्द करने की मांग, संभल और ज्ञानवापी विवाद से समझिए पूरी कहानी

What is Places of Worship Act: यह कानून ऐसे समय में आया था जब अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। इस विवाद का असर पूरे देश पर पड़ा और जगह-जगह मंदिर और मस्जिद को लेकर विवाद सामने आने लगे। ऐसे विवादों को रोकने के जिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट लेकर आई।

Places of Worship Act

Places of Worship Act

What is Places of Worship Act: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित जामा मस्जिद को कानूनी चुनौतियों को सामना करना पड़ रहा है। हिंदू पक्ष ने याचिका दाखिल कर मस्जिद के स्थान पर हरिहर मंदिर होने का दावा किया है। मामला कोर्ट पहुंचा तो यहां एएसआई सर्वे की इजाजत दी गई, जिसके बाद संभल में हिंसा भड़क उठी और पांच लोग इसका शिकार हो गए। इस हिंसा में कुछ पुलिसकर्मी व स्थानीय लोग घायल भी हुए।

ये विवाद अभी थमा नहीं था कि अजमेर शरीफ दरगाह में महादेव मंदिर होने का दावा किया गया। यह मामला भी कोर्ट में है। ये हालिया विवाद तो बानगी भर हैं। इससे पहले ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद भी ऐसे ही चर्चित मामले हैं। इन विवादों की जड़ 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़ी है। यह एक्ट 15 अगस्त, 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदलने से रोकता है। हालांकि, अब इस एक्ट की कानूनी मान्यता को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और इसे रद्द करने की मांग हो लेकर 6 याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991

1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार यह कानून लेकर आई थी, जिसे संसद से पास भी कराया गया। यह कानून 15 अगस्त, 1947 यानी देश की आजादी से पहले अस्तित्व में किसी भी धार्मिक पूजा स्थल की यथास्थिति बरकारर रखने की शक्ति देता है, साथ ही पूजा स्थलों को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने से रोकता है। अगर ऐसा कोई करता है तो उसे एक से तीन साल की सजा और जुर्माना हो सकता है। इस एक्ट में कुद महत्वपूर्ण धाराओं को शामिल किया गया है।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा- 2

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा-2 कहती है कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 3

धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है। धार्मिक स्थलों को उसी रूप में संरक्षित किया जाएगा, जिसमें वह 15 अगस्त 1947 में था। अगर यह साबित भी होता है कि वर्तमान में धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसके वर्तमान स्वरूप को बदला नहीं जा सकता है।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4 (1)

धारा 4(1) के तहत, 15 अगस्त 1947 को सभी धर्मों के पूजा स्थलों की यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4 (2)

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा- 4 (2) के अनुसार, यह उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे। यानी 15 अगस्त, 1947 के पहले के विवाद पर कोई नया मुकदमा नहीं होगा।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 5

इस धारा के तहत रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को अलग रखा गया था। यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के कोई प्रावधान अयोध्या के रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद पर लागू नहीं होंगे।

क्यों पड़ी थी कानून की जरूरत

यह कानून ऐसे समय में आया था जब अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। इस विवाद का असर पूरे देश पर पड़ा और जगह-जगह मंदिर और मस्जिद को लेकर विवाद सामने आने लगे और सांप्रदायिक तनाव खड़ा हो गया। ऐसे विवादों को रोकने के जिए तत्कालीन सरकार प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट लेकर आई और 15 अगस्त, 1947 के पहले धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बहाल करने का आदेश दे दिया।

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प्रांजुल श्रीवास्तव author

मैं इस वक्त टाइम्स नाउ नवभारत से जुड़ा हुआ हूं। पत्रकारिता के 8 वर्षों के तजुर्बे में मुझे और मेरी भाषाई समझ को गढ़ने और तराशने में कई वरिष्ठ पत्रक...और देखें

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