Fixed Deposit और Recurring Deposit में क्या है अंतर? आपके लिए कौन है बेहतर
निवेश के लिए विकल्प तलाशने वालों के लिए रेकरिंग डिपॉजिट (RD) और फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) भी उपलब्ध है। आइए जानते हैं दोनों क्या अंतर है और कौन किसके लिए फिट है।
एफडी और आरडी में कौन बेहतर है, यहां विस्तार से जानिए
रेकरिंग डिपॉजिट (RD) तथा फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) वर्तमान में उपलब्ध सबसे जाने-पहचाने निवेश इंस्ट्रूमेंट्स में आते हैं। इन पर सुनिश्चित रिटर्न मिलता है जो खास तौर पर बचत खाते से अधिक होता है। क्योंकि इस निवेश का मार्केट में होने वाले उतार-चढ़ाव पर कोई असर नहीं होता है, इसलिए इन्हें स्थिर आय-जेनरेटिंग विकल्प कहा जाता है। एक तरफ कई पहलुओं के संबंध में आरडी और एफडी एक जैसी होती हैं- जैसे ब्याज दर, समय से पहले बंद करने की सुविधा, टैक्स संबंधी नियम आदि, लेकिन उनमें कुछ खास अंतर भी होते हैं। आइये इस फर्क पर विचार करते हैं।
निवेश फ्रीक्वेंसी
फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit) में आप एक बार और एक मुश्त निवेश करते हैं जिसे चुनी गई अवधि के लिए लॉक कर दिया जाता है। इस समय के दौरान, निवेश की गई राशि में कोई एडिशन नहीं किया जा सकता है, जिस पर पूरी लॉक-इन अवधि के लिए पूर्व निर्धारित दर पर ब्याज दिया जाता है। अगर आप अपने निवेश को बढ़ाना चाहते हैं, तो आप ऐसा नया एफडी खाता खोलकर कर सकते हैं। आप एफडी में कितना पैसा निवेश कर सकते हैं, इसकी कोई ऊपरी सीमा नहीं होती है।
दूसरी तरफ, रेकरिंग डिपॉजिट (Recurring Deposit) में आप मासिक, त्रैमासिक या अर्ध-वार्षिक आधार पर एक नियत राशि निवेश कर सकते हैं। निवेश मैन्यूअली (ऑनलाइन या ऑफलाइन) या आपके पसंदीदा बैंक खाते से ऑटो-डेबिट के जरिए किया जा सकता है। आप मात्र 100/- रुपए के न्यूनतम मासिक निवेश से आरडी खाता खोल सकते हैं।
अवधि
फिक्स्ड डिपॉजिट अवधियां आमतौर पर 7 दिन से 10 वर्ष की होती हैं। हालांकि, लंबी अवधि वाली एफडी पर उच्च ब्याज दिया जाता है। आरडी की न्यूनतम अवधि 6 महीने होती है, जबकि अधिकतम अवधि को 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
ब्याज भुगतान
फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज-भुगतान के दो विकल्प मिलते हैं- संचयी और गैर-संचयी। संचयी विकल्प के अंतर्गत, मूल राशि तथा संचित ब्याज को एफडी के मैच्योर होने पर एक साथ अदा किया जाता है। गैर-संचयी भुगतान विकल्प में मासिक, त्रैमासिक या अर्ध-वार्षिक आधार पर ब्याज भुगतान की सुविधा प्रदान की जाती है।
लेकिन, आमतौर पर रिकरिंग डिपॉजिट पर अल्प-कालिक ब्याज भुगतान का विकल्प नहीं मिलता है। पहले से ही तय पूरी मैच्योरिटी राशि का भुगतान आरडी अवधि के पूरा होने पर एक मुश्त तौर पर निवेशक को किया जाता है।
टैक्स बचत
आमतौर पर, रिकरिंग डिपॉजिट और फिक्स्ड डिपॉजिट को कर-बचत माध्यम नहीं माना जाता है। लेकिन, कुछ खास कर-बचत एफडी जिनके साथ 5 वर्ष की लॉक-इन अवधि जुड़ी रहती है, से आपको आयकर अधिनियम की धारा 80-C के अंतर्गत कर बचत में सहायता मिल सकती है। दूसरी तरफ, आवर्ती जमाओं पर किसी भी प्रकार के कर-बचत लाभ नहीं मिलते हैं।
आरडी और एफडी को निवेशकों द्वारा अनेक लाभों के कारण बहुत पसंद किया जाता है। लेकिन, यदि आप इंफ्लेशन की तुलना में अधिक आय कमाना चाहते हैं, तो ये सही विकल्प नहीं भी हो सकते हैं। ऐसा ब्याज राशि पर वसूले जाने वाले कर के कारण है- 40,000/- रूपये वर्ष (वरिष्ठ नागरिकों के लिए 50,000/-रूपये) से अधिक ब्याज पर 10% टीडीएस काटा जाता है, और जिससे आपका रिटर्न और भी कम हो जाता है। ऐसा कहने के बाद, यदि आप अनुशासित रूप से अपने आपातकालीन फंड का सृजन करना चाहते हैं, तो ये दोनों ही माध्यम अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
(यह आलेख BankBazaar.com के सौजन्य से है) डिस्क्लेमर: ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)
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