Jharkhand Election: झारखण्ड में डबल 'M' फैक्टर के वोट के लिए क्या है गठबंधनों की रणनीति!

Jharkhand election M factor: झारखंड की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से अहम रहे हैं। राज्य में 15% से अधिक कुर्मी मतदाता हैं, जो 26 फ़ीसदी आदिवासी समुदाय के बाद सबसे बड़ी और प्रभावशाली जाति मानी जाती है। जयराम महतो खुद कुर्मी समुदाय से आते हैं और इसी वोट बैंक पर उनकी नजरें टिकी हैं।

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झारखण्ड में डबल 'M' फेक्टर के वोट के लिए क्या है गठबंधनों की रणनीति!

मुख्य बातें
  • झारखंड में राजनीतिक दलों का फैसला प्रमुख रुप से डबल 'M'
  • यानी महतो (कुर्मी) और मांझी (आदिवासी) करता आया है
  • इन दोनों बिरादरी की राज्य की आबादी में हिस्सेदारी 40 फीसदी से अधिक है

Jharkhand election M factor: अन्य राज्यों की तरह झारखंड विधानसभा चुनाव में भी जाति फैक्टर , राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला करता रहा है। राज्य में डबल 'M' यानी 'महतो' और 'मांझी' राजनीतिक पार्टी का भविष्य तय करता है । इन दोनों बिरादरी की आबादी, राज्य की कुल आबादी से 40 फीसदी से अधिक है। ऐसे में दोनो ही गठबंधन इन दोनो प्रमुख जातियों पर दांव लगा रहे है।

साल 2000 के अंत में अस्तित्व में आये झारखंड में राजनीतिक दलों का फैसला प्रमुख रुप से डबल 'M' यानी महतो (कुर्मी) और मांझी (आदिवासी) करता आया है। इन दोनों बिरादरी की राज्य की आबादी में हिस्सेदारी 40 फीसदी से अधिक है। दोनों ही बिरादरी करीब 80 फीसदी सीटों पर उम्मीदवारों की हार और जीत का फैसला करती है। यही कारण है कि राज्य में दोनों गठबंधनों की रणनीति के केंद्र में यही दो बिरादरी हैं।

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छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में ,झारखंड में बीजेपी को ,विपक्षी इंडिया गठबंधन से दस फीसदी अधिक वोट हासिल हुआ ,फिर भी बीजेपी को राज्य की सभी पांच सुरक्षित सीटें गंवानी पड़ी थीं। वजह थी भ्रष्टाचार के मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद आदिवासी वर्ग में स्वजातीय नेता के प्रति उपजी सहानुभूति।

राज्य में आदिवासी लोगों की संख्या 26 फीसदी के आसपास

राज्य में आदिवासी लोगों की संख्या 26 फीसदी के आसपास है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को संथाल क्षेत्र से एक भी सीट नसीब नही हुई। अब विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के सामने आदिवासी वर्ग में अपनी खोई साख वापस पाने की चुनौती है। बीजेपी को उम्मीद है कि आदिवासी के साथ साथ अन्य प्रमुख जातियां पीएम मोदी के काम और नाम के आधार पर वापस पार्टी के पास लौटेगी । 2019 के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में छिटके आदिवासी वोट बैंक से सबक लेकर बीजेपी ने कई भूल सुधार किए हैं। आदिवासी बहुल राज्य में गैरआदिवासी रघुवर दास को सीएम बनाने और आजसू से अलग होकर अपने दम पर चुनाव लड़ने से हुए सियासी नुकसान के बाद पार्टी ने आदिवासी नेतृत्व को आगे बढ़ाने के साथ आजसू से फिर गठबंधन किया है और राज्य में हिंदू और आदिवासी का नारा बुलंद कर रही है।

हेमंत के करीबी चंपई सोरेन को पार्टी में शामिल किया

झारखंड मुक्ति मोर्चा के आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए बीजेपी ने सोरेन परिवार की बहू सीता सोरेन के बाद हेमंत के करीबी चंपई सोरेन को पार्टी में शामिल किया है। पार्टी ने ओबीसी वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने के लिए जदयू से और आदिवासी वोट के लिए आजसु के साथ तालमेल बैठाया है । आजसू राज्य में कुर्मी -महतो जाति की पार्टी मानी जाती है। कुर्मी - महतो राज्य में 25 फीसदी के आसपास हैं । सुदेश महतो इस जाति के अब तक सर्वमान्य नेता रहे हैं। कुर्मी - महतो को राज्य में अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने की मांग हमेशा से उठती रही है। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि आजसू को एक तीसरी ताकत चुनौती दे रही है। वो है झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा जिसका नेतृत्व कर रहे हैं युवा नेता जयराम महतो।

जयराम महतो अब झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण चेहरा बनकर उभरे हैं

अपने जनाधार को लगातार बढ़ाते हुए जयराम महतो अब झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण चेहरा बनकर उभरे हैं। ऐसे में साफ है राज्य के सत्ता पर उसी दल का बर्चस्व होगा जो आदिवासियों और महतो समुदाय दोनो को साध सके। बीजेपी ने पिछली गलती सुधारते हुए मिशन डबल 'M' को राजनीतिक अमली जामा पहनाया है, लेकिन हेमंत सोरेन का इंडिया गठबंधन भी मजबूत है । ऐसे में देखना होगा की बीजेपी का मिशन 'M' जमीन पर कितना कारगर होती है।

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हिमांशु तिवारी author

हिमांशु तिवारी एक पत्रकार हैं जिन्हें प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक का 16 साल का अनुभव है। मैंने अपना करियर क्राइम रिपोर्टर के रूप में शुरू किया था...और देखें

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