आखिर कैसा रहेगा ट्रंप सरकार 2.0 का कलेवर? समझ लीजिए हर छोटी बड़ी बातें
Trump Sarkar 2.0: पहले कार्यकाल के मुकाबले ट्रंप की सोच में बेहद कम ही अंतर देखने को मिलेगा लेकिन उनके नजरिए और बातचीत करने के तौर तरीकों में ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं दिखती है। पिछली बार जब ट्रंप राष्ट्रपति थे तो उन्होनें खुद को दुनिया के सामने फरेबी सौदागर के तौर पर पेश किया, जो कि अपने एजेंडे को मनवाने के लिए धमकी, वादा, इरादा और पेशकश सभी तरीकों की मदद लेता है।
ट्रंप सरकार 2.0 से जुड़ी कुछ अहम बातें।
World News: अमेरिकी सत्ता सदन में आये हुए ट्रंप को कुछ ही दिन हुए कि उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया जगत को सिलसिलेवार ढंग से कई खबरों से लाद दिया। तख्तनशीं होते ही वो अपने पुराने रंग में लौट आए। कारोबारी नीतियों में बदलाव, नाटो में अमेरिकी सहयोग में कमी, नागारिकता कानूनों में फेरबदल, अप्रवासियों पर सख्ती, यूक्रेन युद्ध का पटाक्षेप और ऐसे कई तमाम मुद्दों पर उन्होनें राय रखी और कदम उठाए जिससे कि अमेरिकी अखबारों के सभी कॉलम पट गए। दुनिया भर में जम्हूरी रहबरी का दम भरने वाले अमेरिका ने ट्रांसजेंडरों को दरकिनार करते हुए सिर्फ महिला और पुरूषों को ही आधिकारिक लैंगिक मान्यता दी, इससे प्रगतिशील अमेरिकी काफी खफ़ा नज़र आ रहे है। कयास लगाए जा रहे थे कि ट्रंप इन मुद्दों पर फैसला लेने में कुछ दिन लगाएगें लेकिन उन्होनें राष्ट्रपति बनते ही कुछ ही घंटों के भीतर फरमान जारी करने शुरू कर दिए। दुनिया के सामने अब ये सवाल उभरा रहा है कि ट्रंप 2.O अपनी इस पारी को कैसे और किस दिशा में आगे ले जाते है? पिछले कार्यकाल के मुकाबले मौजूदा दौर में उनके फैसलों और कार्यशैली में कितना अंतर रहेगा?
तेवर, तासीर और मिजाज रहेगा कायम
ट्रंप की तल्ख तकरीरें और उनकी नाटकीय बयानबाजी उनकी शख्सियत को गढ़ती है, ये बात वो अच्छे से जानते हैं। इसलिए वो इस अंदाज़ को कभी नहीं बदलेगें। चुनावी प्रचार अभियान के दौरान उनकी ओर से जारी गर्वोक्तियां बताती है कि वो अपने तयशुदा सियासी फलसफे को लागू करना बदस्तूर जारी रखेंगे। नाटो में अमेरिका की सीमित भूमिका पर जोर देते हुए उन्होनें दावा किया कि उनके पूर्ववर्ती कार्यकाल के दौरान अमेरिकी सुरक्षा बलों ने कोई जंग नहीं लड़ी, जिससे कि विदेशी सरजमीं पर अमेरिकी रणबांकुरों का लहू बहने से बचा। जाहिर है कि वो इसी मंशा से आगे बढ़ेंगे। उनकी इसी सोच से मुतासिर रिपब्लिकन पार्टी का मानना है कि जंग और दूसरे मुल्कों में अमेरिकी दखल का सीधा मतलब है, अंधाधुंध खर्चा। ये कुछ ऐसा है, जिसे वो कम से कम करना चाहेगें।
नए राष्ट्रपति का ध्यान अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की ओर ज्यादा है ताकि लुप्तप्राय हो चुकी कथित अमेरिकी महानता को फिर से हासिल किया जा सके। इसी सोच के नक्शेकदम पर आगे बढ़ते हुए क्रेमलिन और कीव को युद्ध विराम के लिए राजी करने की अमेरिकी कवायदों में रफ्तार लायी जा रही है। अब वाशिंगटन का मध्यपूर्व से भी मोहभंग होता दिख रहा है, इस क्षेत्र में अब वो और दखल देने में दिलचस्पी नहीं दिखायेगा इसी वजह से व्हाइट हाउस के निर्देशों पर कई दौर की वार्ताओं और कड़ी मेहनत के बाद हमास और इजराइल के बीच सीजफायर समझौता लागू हुआ। साफ है कि ट्रंप चाहते है कि दुनिया उन्हें शांति और अमन के मसीहा के तौर पर जाने। एक बात तो ये तय है कि उनका फोकस अब बाहरी हालातों से ज्यादा अंदरूनी हालातों को संभालने पर रहेगा, जो कि पूरी तरह से अर्थव्यवस्था पर केंद्रित है। नशा, तस्करी, संसाधनों पर बढ़ता अप्रवासियों का दबाव और अपराध की रोकथाम पर उनका ज्यादा ध्यान रहेगा। इस बात से वो अच्छी तरह वाकिफ है कि अगर वो दूसरे मुल्कों में दखल देते है तो वो घेरलू मामलों की रोकथाम करने में पिछड़ जायेंगे।
तय नैरेटिव के साथ छाए रहेंगे सुर्खियों में
अमेरिकी मीडिया के साथ ट्रंप की वैचारिक अदावत शीशे की तरह साफ है। इस तबके ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप के पूर्ववर्ती कार्यकाल को केंद्र में रखते हुए आलोचनाओं की इबारत गढ़ी और जमकर उनका विरोध किया। मीडिया के एक खास खेमे ने उन्हें गिराने और व्हाइट हाउस में वापसी करने से रोकने के लिए पुरजोर कोशिश की। ट्रंप से जुड़ी कैपिटल हिल हिंसा, कथित यौनाचार मामला और तुनमिजाजी को केंद्र में रखते हुए आर्टिकल लिखे गए, लंबे लंबे न्यूज पैकेज ब्रॉडकास्ट किए गए, इन सबके पीछे का मकसद साफ था, जिससे बिडेन उन्हें हरा सकें और ये जमात इस मकसद को हासिल करने में कामयाब भी रही।
अब उनकी हालिया बेमिसाल जीत के बाद ये उम्मीद लगायी जा रही है कि अमेरिकी मीडिया के साथ उनके तालुक्कात में सुधार आयेगा। मौजूदा सूरत में ऐसा होना नामुमकिन सा लगता है। राष्ट्रपति बनने के पहले ही दिन से वो इरादतन विवाद पैदा करके अपने चाहने वालों को खुश करने की जुगत में लगे हुए है। ऐसे में वो मीडिया को वो सब परोसना चाहेगें जिससे कि उनके चाहने वालों की तादाद में इजाफा हो। साफ है कि इससे मीडिया के सर्कुलेशन और टीआरपी में उछाल आना तय है। नफे की ये जुगलबंदी दोनों खेमों के लिए फायदेमंद है, तो ये जारी ही रहेगी।
विशेषज्ञ की बजाए वफादार को तरजीह देते ट्रंप
नाफरमानी और मजम्मत ट्रंप को किसी भी सूरत में मंजूर नहीं। अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान अहम ओहदों पर बैठे कई लोगों को उन्होनें व्हाइट हाउस से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इनमें वो लोग भी शामिल है, जिनके पास बेहतरीन जंगी तर्जुबा था, साथ ही इसमें कुछ नामचीन डिप्लोमैट भी शामिल थे। ट्रंप 2.0 में इन लोगों को दरकिनार किया गया। इनमें से कई तो ऐसे थे कि जिन्होनें ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान उनका विरोध किया और लामबंद हुए। अब नए अमेरिकी सदर तर्जुबे और इल्म से ज्यादा वफादारी को तरजीह देने लगे है। यही वजह है कि अबकि बार उन्होनें अपने साथ उन लोगों को सरकार में शामिल किया है, जो कि मेक अमेरिका ग्रेट अगेन की सोच को लेकर जोश में है। कई अहम ओहदो पर जैसे कि नेशनल इंटेलीजेंस डायरेक्टर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रक्षा सचिव ऐसे लोगों की बहाली की गयी है, जिनसे नाफरमानी, बगावत और मजम्मत की उम्मीद नहीं की जा सकती।
मौजूदा अमेरिकी सरकार में ऐसे लोगों की फेहरिस्त काफी लंबी है। ये बात उस दिन काफी हद तक साफ हो गयी थी, जब डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी की कमान दिग्गज टैक्नोक्रेट एलन मस्क को सौंपी गयी थी। इसके बाद माइकल वाल्ट्ज, तुलसी गबार्ड और पीट हेगसेथ को भी अहम ओहदों की जिम्मेदारी सौंपी गयी। ट्रंप प्रशासन के बॉटम ऑफ पिरामिड तक जाकर अपनी पकड़ को मजबूत करने की सोच रखते है। अपने पिछले कार्यकाल से उन्होनें काफी कुछ सीखा है, जिसकी मदद से वो अब प्रशासन को पहले से बेहतर चला सकेगें। हालांकि वो किस तरह से अमेरिका को संभालेगें? इसका आकलन करना जल्दबाजी ही कहा जाएगा। दुनियादारी का उसूल है कि काबिलियत की जगह वफादरी रखने पर काम में भारी खामियों की गुजाइंश बनी रहती है, लेकिन अमेरिकी सदर को कौन रोक सकता है? फिलहाल जरूरत है कि ट्रंप थोड़ा थमकर सोचे और आगे बढ़े।
छाए रहेंगे नस्लीय और लैंगिक मुद्दे
ट्रंप सरकार 1.0 के दौरान जातीय, नस्लीय, रंगभेद, लैंगिक और सांस्कृतिक मुद्दों को विमर्श के केंद्र में नहीं लाया गया था। अपनी चुनावी तकरीरों के दौरान ट्रंप ने कहा था कि लैंगिक पहचान सिर्फ दो ही है आदमी और औरत, इससे उनका रुख साफ हो जाता है। दूसरे शब्दों ये कहा जा सकता है कि अपनी प्रगतिशील और उदारवादी छवि दिखाने के लिए वो जो कुछ भी कहते है, जरूरी नहीं कि उनका कौल भी उसी पर टिके। अपने चुनावी अभियान के दौरान उन्होनें कई बयानबाजियां की थी, जो कि कई सांस्कृतिक मान्यताओं के मखौल की बुनियादी पर टिकी थी। ट्रंप ने इसे वामपंथी ताकतों की वैचारिक चालबाजी करार दिया था। अप्रवासियों के रहन-सहन और खानपान का वो अक्सर मज़ाक बनते रहे हैं।
गैर परंपरागत लैंगिक पहचान और संवेनशील नस्ली मुद्दों पर उनकी सोच काफी विस्फोटक है। राष्ट्रपति बनते ही इस मामले में उनकी आक्रामकता में भारी इजाफा देखा गया है, वो इस बात को अच्छे से भांप चुके है कि बीते कई सालों से सांस्कृतिक वैविध्यता से भरी अमेरिकी सरजमीं पर नस्ली टकरावों में उछाल आया है। इसे लेकर अमेरिकी रियाया के बड़े तबके में गुस्से का माहौल, जिन्हें लगता है कि इस मोर्चें पर कई बातें काबू से बाहर हो चुकी है। अब ट्रंप इसी बैचेनी और गुस्से का फायदा उठाना चाहते है।
बने रहेंगे तल्ख गर्म तेवर
पहले कार्यकाल के मुकाबले ट्रंप की सोच में बेहद कम ही अंतर देखने को मिलेगा लेकिन उनके नजरिए और बातचीत करने के तौर तरीकों में ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं दिखती है। पिछली बार जब ट्रंप राष्ट्रपति थे तो उन्होनें खुद को दुनिया के सामने फरेबी सौदागर के तौर पर पेश किया, जो कि अपने एजेंडे को मनवाने के लिए धमकी, वादा, इरादा और पेशकश सभी तरीकों की मदद लेता है। उनकी सौदेबाज़ी का यहीं रवैया तब दिखा जब उन्होंने अपने पड़ोसियों ओटावा और मैक्सिको सिटी पर बेमुरव्वत जुबानी हमला किया। ट्रंप ने वहीं फिल्म दुनिया के सामने पेश की, जिसका टीजर और ट्रेलर राष्ट्रपति चुनाव प्रचार अभियान के दौरान सामने आया था।
उनके तयशुदा और मौजूदा रवैये से दो चीजे बिल्कुल साफ हो चुकी है। पहली वो बाइडेन को कमजोर राष्ट्रपति साबित करना चाहते है, जिसकी वजह से कथित अमेरिकी महानता खोयी, जिसके चलते अमेरिकियों की नौकरियां अप्रवासियों को मिली, जिसके कारण अर्थव्यवस्था चरमराई और युवा अमेरिकियों का भविष्य गर्त में चला गया। दूसरा ये कि सनसनीखेज बयान देकर उन्हें सुर्खियों में रहने की शग़ल है, मीडिया से मिलने वाली माइलेज पर ही उनकी छवि फलती फूलती है। कुछ अमेरिकी ट्रंप के बयान और कामों को मृग मरीचिका मानते है, जबकि उनके चाहने वालों की आस्था है कि उनके देश के वर्चस्व की खोयी हुई चमक की बहाली सिर्फ वहीं कर सकते है। जो लोग ये मानते है कि ट्रंप अपने तौर तरीकों और तेवरों में बदलाव लायेगें वो दिवास्वप्न में है, क्योंकि ट्रंप उम्र की उस पड़ाव पर पहुंच चुके है जहां किसी को अपनी सोच और मिजाज बदलाव लाना काफी मुश्किल होता है।
इस लेख के लेखक राम अजोर जो स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं, टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।
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