कब-कब लोकसभा अध्यक्ष की जगह ले सकता है डिप्टी स्पीकर? जानें शक्तियां और जिम्मेदारियां

Lok Sabha Deputy Speaker: भारत के सियासी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी सरकार ने अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लिया और लोकसभा में कोई डिप्टी स्पीकर नियुक्त नहीं हुआ। आखिर ये लोकसभा उपाध्यक्ष पद किसे मिलता है, उसके पास क्या शक्तियां और जिम्मेदारियां होती हैं। आपको समझना चाहिए।

क्या इस बार लोकसभा में कोई बनेगा डिप्टी स्पीकर?

History of Lok Sabha: लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी को लेकर मोदी सरकार और विपक्षी गठबंधन INDIA के नेताओं के बीच एक नई बहस छिड़ी हुई है। विपक्ष लगातार सरकार पर तानाशाही का आरोप लगा रही है। डिप्टी स्पीकर की कुर्सी की मांग को लेकर मचा संग्राम तूल पकड़ता जा रहा है, हालांकि ये सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या इस बार भी लोकसभा में किसी को भी डिप्टी स्पीकर नहीं बनाया जाएगा या फिर विपक्ष की मांग के आगे इस बार सरकार को झुकना पड़ जाएगा? आपको इस लेख में ये समझाते हैं कि आखिर लोकसभा के डिप्टी स्पीकर के पास क्या-क्या शक्तियां होती हैं और इस पद पर बैठे व्यक्ति के कंधों पर क्या जिम्मेदारियां होती हैं।

लोकसभा का उपाध्यक्ष (Deputy Speaker of Lok Sabha)

देश की संसद का निचला सदन, यानी लोकसभा... इस सदन का सर्वोच्च अधिकारी को स्पीकर या अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है, तो वहीं सदन का दूसरे सबसे बड़े अधिकारी को डिप्टी स्पीकर (लोकसभा उपाध्यक्ष) कहकर पुकारा जाता है। संविधान का अनुच्छेद 93 यह कहता है कि जितनी जल्दी हो सके, निचला सदन यानी लोकसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में दो सदस्यों का चयन किया जाएगा, जब भी उनका कार्यालय खाली हो। हालांकि, जिस तरह सदस्यों के शपथ ग्रहण के तुरंत बाद लोकसभा अध्यक्ष पद का चुनाव सदन की पहली कार्यवाही में किया जाता है, उस तरह से डिप्टी स्पीकर को चुनने के लिए एक विशिष्ट समय सीमा नहीं होती है।

लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव एक संसदीय परंपरा

18वीं लोकसभा का कार्यकाल शुरू हो चुका है, भारत के इतिहास में अब तक 16वीं लोकसभा तक डिप्टी स्पीकर का चुनाव होता रहा है, लेकिन 2019 में वो पहला मौका था, जब 17वीं लोकसभा के लिए उपाध्यक्ष पद का चुनाव नहीं किया गया। लोकतांत्रिक संसद चलाने के लिए एक जवाबदेह सत्तारूढ़ दल के अलावा किसी अन्य पार्टी से लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव किया जाना एक तरह की संसदीय परंपरा है। पिछली लोकसभा में डिप्टी स्पीकर की कुर्सी पर किसी को नहीं बैठाया गया, लेकिन इस बार विपक्ष इस पद की मांग पर अड़ा हुआ है।
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