आजादी से पहले ली गई एक बाइक के बदले पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने सालों बाद चुकाई बड़ी कीमत, जानें ये रोचक किस्सा

एक मोटरसाइकिल की कीमत क्या हो सकती है? आप कहेंगे ये तो मोटरसाइकिल पर निर्भर करता है कि वह किस कंपनी की, कितनी पुरानी और कितनी अच्छी है। लेकिन जब बात दो देशों की हो तो एक मोटरसाइकिल की कीमत आधा देश भी हो सकती है। भारत और पाकिस्तान से जुड़ा यह रोचक किस्सा आपको पसंद आएगा।

एक मोटरसाइकिल की कीमत आधा देश

देश 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2024) की तैयारी कर रहा है। देश में इन दिनों देशभक्ति का माहौल है। हर तरफ स्वतंत्रता दिवस और देश की आजादी के लिए हुई जंग की बातें हो रही हैं। इस बीच हम आपके लिए एक ऐसा किस्सा लेकर आए हैं, जिसकी शुरुआत तो भारत की आजादी से पहले हुई, लेकिन परिणति आजादी के कई वर्षों बाद। जी हां, ये कहानी एक मोटरसाइकिल की है। इस कहानी के किरदार बड़े ही रसूकदार हैं, लेकिन इसके केंद्र में कभी दोस्ती तो कभी तंज में मोटरसाइकिल आ जाती है। तो चलिए इस रोचक कहानी को जानते हैं, जो आपका सीना गर्व से चौड़ा कर देगी।

सैम बहादुर की कहानीअब तक तो आपको समझ आ ही गया होगा कि यह कहानी भारत के सातवें सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) यानी सैम बहादुर से जुड़ी है। सैम मानेकशॉ ने 1932 में इंडियन मिलेट्री अकेडमी (IMA) देहरादून ज्वाइन की। उन्हें 12वीं फ्रंटीयर फोर्स रेजिमेंट में कमीशन मिला। दूसरे विश्वयुद्ध में उन्हें ब्रिटिश इंडियन आर्मी की ओर से उनके योगदान के लिए मिलिट्री क्रॉस ऑफ गैलेंट्री दिया गया। जब साल 1947 में देश आजाद हुआ तो, वह जिस रेजिमेंट से जुड़े थे वह पाकिस्तान के हिस्से में चली गई। सैम मानेकशॉ भारत में ही रहे और उन्हें 8वें गोरखा राइफल्स में कमीशन दिया गया।

सैम बहादुर के नाम हैदराबाद मामले को सुलझाने से लेकर 1971 के युद्ध तक कई उपलब्धियां हैं। लेकिन आज हम बात सिर्फ मोटरसाइकिल की करेंगे। दरअसल सैम-बहादुर की कहानी इतनी रोचक है कि कोई भी अपने विषय से आसानी से भटक सकता है। बता दें कि मोटरसाइकिल की यह कहानी भी उन्हीं सैम बहादुर से जुड़ी है। चलिए लौटते हैं मोटरसाइकिल की कहानी पर।

सैम मानेकशॉ

तस्वीर साभार : Twitter

1945-46 की बातयह वह समय था जब सैम मानेकशॉ और याह्या खान को फील्ड मार्शल सर क्लाउड औचिंलेक (Sir Claude Auchinleck) के साथ स्टाफ ऑफिसर नियुक्त किया गया। उस दौरान सैम मानेकशॉ और याह्या खान (Yahya Khan) के बीच एक तरह से दोस्ती हो गई थी। हालांकि, बंटवारे की बातें भी चलने लगी थीं और याह्या खान पाकिस्तान के समर्थन में थे। उस समय सैम मानेकशॉ के पास एक बाइक (Motorcycle) थी। याह्या खान को सैम मानेकशॉ की वह बाइक पसंद आ गई और उन्होंने सैम से उसे बेचने के लिए कह दिया। कहते हैं कि उस समय सैम मॉनेकशॉ ने उस बाइक को 1000 रुपये में याह्या खान को बेच दिया। हालांकि, कुछ जगह इस डील को 1500 रुपये में बताया जाता है। देश आजाद हुआ और देश दो हिस्सों में बंट गया। याह्या खान ने मोटरसाइकिल तो ले ली, लेकिन उसकी कीमत कभी भी सैम मानेकशॉ को नहीं चुकाई।

Fast Forward to 1971भारत और पाकिस्तान को दो अलग-अलग देशों के रूप में आजाद हुए 23 साल हो चुके थे। अब तक भी याह्या खान ने सैम मानेकशॉ की बाइक की कीमत नहीं चुकाई थी। इतने वर्षों बाद दोनों अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ चुके थे। जहां सैम मानेकशॉ भारत के सेना प्रमुख (Chief of Army Staff) बन चुके थे, वहीं याह्या खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। पाकिस्तान दो भागों में बंटा हुआ था, पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान (मौजूदा पाकिस्तान)। पूर्वी पाकिस्तान में याह्या खान का प्रशासन लोगों पर खूब ज्यादतियां कर रहा था। महंगाई चरम पर थी, ज्यादा टैक्स वसूले जा रहे थे और बांग्ला भाषी पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जबरन उर्दू थोपी जा रही थी। यही नहीं, पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को वैसे अधिकार नहीं थे, जैसे पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों को। चुनाव में जीत मिलने के बावजूद शेख मुजीबुर रहमान को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया गया।

याह्या खान

तस्वीर साभार : Twitter

पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान की ज्यादतियों से परेशान लोगों ने भारत की तरफ रुख किया। भारत पर दबाव पड़ने लगा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से पाकिस्तान पर हमला करने को कहा। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। मई के महीने में हुई इस बात पर उन्होंने कहा कि इस समय युद्ध करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि मानसून आने वाला है और हमारे सैनिक जहां-तहां फंस जाएंगे। खैर दिसंबर 1971 में पाकिस्तान की तरफ से ही भारत पर पहले हमला कर दिया गया। इसके बाद सैम मानेकशॉ की सेना ने पूर्वी और पश्चिमी दोनों पाकिस्तान में याह्या खान की फौज को अच्छा सबक सिखाया।

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