जजों के खिलाफ कौन और कब ला सकता है महाभियोग प्रस्ताव, क्या कहता है संविधान? कैश कांड में फंसे जस्टिस वर्मा भी इसके दायरे में

Impeachment Motion Against Judge: भारतीय न्यायपालिका में महाभियोग की प्रक्रिया बेहद कठिन और संवेदनशील है, क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता से जुड़ी होती है। अधिकांश मामलों में, न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाए गए, लेकिन कानूनी और राजनीतिक कारणों से ये प्रस्ताव सफल नहीं हो पाए।

Impeachment Motion Against Judge.

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की मांग

Impeachment Motion Against Judge: दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कैश कांड में महाभियोग लाने की मांग की जा रही है। दरअसल महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को हटाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज को ऐसे नहीं हटा सकते हैं, उसके लिए संविधान में एक नियम है, जिसके तहत इनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है और इसी कार्रवाई को महाभियोग कहा जाता है। हालांकि इसका इस्तेमाल काफी कम बार हुआ है। अब जस्टिस वर्मा के केस में महाभियोग प्रस्ताव की फिर से चर्चा होने लगी है। आइए जानते हैं कि जजों के खिलाफ कब और कैसे लाया जाता है महाभियोग प्रस्ताव, क्या कहता है भारत का संविधान...?

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क्या है जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव (What is impeachment motion against judges)

जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसके तहत उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय के जजों के खिलाफ आरोप लगने पर उनकी निष्कासन की प्रक्रिया शुरू की जाती है। महाभियोग प्रस्ताव, किसी न्यायाधीश के पद से हटाने के लिए एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जो भारतीय संसद में लागू होती है।

जज के खिलाफ कब लाया जाता है महाभियोग प्रस्ताव (When is an impeachment motion brought against a judge)

महाभियोग प्रस्ताव तब लाया जाता है जब किसी जज पर गंभीर आरोप होते हैं, जैसे भ्रष्टाचार, पद का दुरुपयोग, या अन्य अव्यवहारिक और अनुशासनहीन कार्य। यह प्रक्रिया बहुत गंभीर और लंबी होती है, क्योंकि इसमें जज के खिलाफ ठोस प्रमाण की आवश्यकता होती है।

महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया (impeachment motion procedure)

  • महाभियोग प्रस्ताव की शुरुआत
महाभियोग प्रस्ताव भारतीय संसद में लाया जाता है। यह प्रस्ताव किसी न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों के आधार पर संसद के सदस्य द्वारा पेश किया जाता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत तब होती है जब किसी न्यायाधीश के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए जाते हैं, जैसे: भ्रष्टाचार, कदाचार, या अन्य गंभीर आरोप जो उनके आचरण या कार्यों से संबंधित हो सकते हैं।
  • आरोपों का प्रमाण और समर्थन
महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले, आरोपों के खिलाफ ठोस प्रमाण और सबूत होना आवश्यक है। इस प्रस्ताव को संसद के एक चौथाई सदस्य (या 25 प्रतिशत सदस्य) का समर्थन प्राप्त होना चाहिए। इस प्रक्रिया में यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि आरोप असत्य या आधारहीन न हों।
  • संसदीय जांच समिति
यदि प्रस्ताव को समर्थन मिल जाता है, तो एक संसदीय जांच समिति का गठन किया जाता है। यह समिति यह जांचती है कि आरोपों में सच्चाई है या नहीं। यह समिति उच्च न्यायपालिका के सदस्य और संसद के प्रतिनिधि होते हैं और यह तय करते हैं कि क्या आरोपों को न्यायिक जांच और महाभियोग प्रक्रिया के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है।
  • संसद में चर्चा और मतदान
यदि जांच समिति आरोपों को गंभीर पाती है, तो महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में पेश किया जाता है। इस प्रस्ताव पर चर्चा होती है और अंत में मतदान किया जाता है। लोकसभा या राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव को पास करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। अगर दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो यह प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
  • राष्ट्रपति द्वारा निष्कासन
अगर महाभियोग प्रस्ताव संसद में पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति उस जज को पद से हटा सकते हैं। राष्ट्रपति को संविधान के तहत इस प्रस्ताव को लागू करने का अधिकार है। इसके बाद वह न्यायाधीश पद से हटा दिए जाते हैं।

किन-किन न्यायाधिशों तक पहुंची है महाभियोग की आंच

भारत में कई न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की गई, हालांकि अब तक कोई भी न्यायाधीश महाभियोग के जरिए नहीं हटाए गए हैं, किसी के खिलाफ यह प्रस्ताव पास नहीं पाया तो किसी ने पहले ही इस्तीफा दे दिया। आइए जानते हैं महाभियोग प्रस्ताव की आंच किन-किन न्यायाधीशों तक पहुंची?

  • वी. रामास्वामी (1993): वी. रामास्वामी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश थे, जिनके खिलाफ 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। उन पर भ्रष्टाचार और पद का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए गए थे। प्रस्ताव को लोकसभा में पेश किया गया, लेकिन यह आवश्यक दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करने में विफल रहा। इसके कारण उन्हें पद से हटाया नहीं जा सका। यह पहला मामला था जब उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था और इससे यह साबित हुआ कि महाभियोग की प्रक्रिया में कई कानूनी और राजनीतिक बाधाएं होती हैं।
  • सौमित्र सेन (2011): सौमित्र सेन, कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उन पर कदाचार के आरोप थे, जिसमें एक मामले में उनके द्वारा भ्रष्टाचार का आरोप था। राज्यसभा ने 2011 में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित किया। हालांकि, इससे पहले कि प्रस्ताव लोकसभा में आता, उन्होंने इस्तीफा दे दिया। वे पहले ऐसे न्यायाधीश थे जिनके खिलाफ उच्च सदन (राज्यसभा) द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पारित किया गया था।
  • जे.बी. पारदीवाला (2015): जे.बी. पारदीवाला गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उन पर “आरक्षण के मुद्दे पर आपत्तिजनक टिप्पणी” करने का आरोप था। राज्यसभा में 58 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग नोटिस पेश किया था। हालांकि, इसके बाद इस मामले में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया और मामला आगे नहीं बढ़ पाया।
  • सी.वी. नागार्जुन रेड्डी (2017): सी.वी. नागार्जुन रेड्डी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उन पर भी कदाचार के आरोप लगाए गए थे। राज्यसभा सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए प्रस्ताव पेश किया था। हालांकि, यह मामला भी आगे नहीं बढ़ा।
  • CJI दीपक मिश्रा (2018): दीपक मिश्रा भारत के 45वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) थे। विपक्षी दलों ने उनके खिलाफ विभिन्न आरोप लगाए, जिसमें भ्रष्टाचार, न्यायिक पद का दुरुपयोग, और न्यायपालिका के स्वतंत्रता के उल्लंघन के आरोप शामिल थे। मार्च 2018 में विपक्षी दलों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए एक मसौदा प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि, यह प्रस्ताव भी विफल हो गया और दीपक मिश्रा ने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया।
  • पी.डी. दिनाकरन (2011): पी.डी. दिनाकरन सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे। उन पर भ्रष्टाचार, भूमि हड़पने और न्यायिक पद का दुरुपयोग करने के आरोप थे। उनके खिलाफ एक न्यायिक पैनल भी गठित किया गया था ताकि आरोपों की जांच की जा सके। उन्होंने महाभियोग कार्यवाही शुरू होने से पहले ही जुलाई 2011 में इस्तीफा दे दिया। वे ऐसे पहले न्यायाधीश थे जिन्होंने महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही इस्तीफा दिया।

जस्टिस यशवंत वर्मा केस में क्या-क्या हुआ

जस्टिस यशवंत वर्मा, दिल्ली हाईकोर्ट के जज हैं, हाल ही में उनके दिल्ली वाले बंगले पर आग लगी। जस्टिस वर्मा घर पर नहीं थे, घरवालों ने फायर विभाग को सूचना दी। जिसके बाद दमकल कर्मी पहुंचे और आग बुझाने में जुट गए। इसी दौरान जस्टिस वर्मा के घर से भारी मात्रा में कैश मिला, जो आग में जल गए थे। इसकी सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी गई। मामला दिल्ली हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एक्शन ले लिया, जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर हो गया, जिसका बार एसोसिएशन विरोध कर रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने जस्टिस वर्मा को मामलों की सुनवाई से हटा दिया। अब महाभियोग की मांग की जा रही है।

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शिशुपाल कुमार author

पिछले 10 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए खोजी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में एक अपनी समझ विकसित की है। जिसमें कई सीनियर सं...और देखें

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