कौन हैं अफजाल अंसारी, जाते-जाते बची जिनकी सांसदी; जानें किस मामले में अदालत ने दी राहत
UP Politics: क्या आप जानते हैं कि आखिर वो कौन सा केस है, जिसमें मुख्तार अंसारी के भाई और गाज़ीपुर के सांसद अफजाल अंसारी को अदालत से राहत मिली है। भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद अफजाल के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। आपको उस केस से जुड़ी सारी डिटेल इस रिपोर्ट में देते हैं।
नहीं जाएगी अफजाल अंसारी की सांसदी।
Who is Afzal Ansari: अफजाल अंसारी की पहचान पांच बार विधायक और तीसरी बार सांसद है। मगर उनको लोग इससे ज्यादा इस वजह से जानते आए हैं, क्योंकि वो खूंखार माफिया मुख्तार अंसारी के भाई हैं। गाज़ीपुर के सांसद के भाई मुख्तार की भले ही मौत हो चुकी है, लेकिन उसकी करतूतों की वजह से अंसारी परिवार पर आज भी सवाल उठते रहते हैं। पिछले कई दिनों से अफजाल को ये टेंशन सता रही थी कि उनकी लोकसभा सदस्यता बची रहेगी या फिर रद्द हो जाएगी। इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी सजा को रद्द कर दिया है, इसका मतलब ये कि अब उनकी सांसदी रद्द नहीं होगी। आपको इस लेख में अफजाल के बारे में बताते हैं, साथ ही इस केस से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात बताते हैं।
जानिए कौन हैं अफजाल अंसारी
यूपी के गलियारों में एक ऐसा दौर था जब जरायम की दुनिया में मुख्तार के काले कारनामों की दहशत से हर कोई खौफ के साए में जीने को मजबूर हो जाता था। पूर्वांचल का सबसे बड़ा माफिया, गुंडा और अपराधी मुख्तार अंसारी का भले ही अंत हो चुका है, लेकिन उसके गुनाहों की परछाई उसके परिवार तक हमेशा ही पहुंचती रही। उस अपराधी की मौत हो चुकी है, हालांकि यहां बात मुख्तार की नहीं हो रही, बल्कि उसके बड़े भाई और गाज़ीपुर लोकसभा सीट से सांसद अफजाल अंसारी की हो रही है। पांच बार के विधायक और तीन बार के सांसद अफजाल के लिए एक और राहत भरी खबर इलाहाबाद हाईकोर्ट से आई।
2007 के गैंगस्टर अधिनियम के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद अफजाल अंसारी की सजा को रद्द कर दिया गया है। ये वही केस है जिसमें अफजाल को चार साल की सजा हुई थी, जिसके चलते उनकी लोकसभा सदस्यता छिन गई थी और एक बार और सांसदी जाने का डर सता रहा था।
क्या है वो मामजा, जिसमें हुई थी सजा
गाजीपुर की विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने 29 अप्रैल, 2023 को अफजाल अंसारी और उसके भाई एवं पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी को 2007 के गैंगस्टर अधिनियम मामले में दोषी ठहराया था। अफजाल अंसारी को चार साल कैद जबकि मुख्तार अंसारी को 10 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। दोनों भाइयों पर 29 नवंबर, 2005 को गाजीपुर के तत्कालीन भाजपा विधायक कृष्णनंद राय की हत्या और 1997 में वाराणसी के व्यापारी नंद किशोर रूंगटा के अपहरण व हत्या के सिलसिले में यूपी गैंगस्टर अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
अफजाल अंसारी को अपहरण-हत्या मामले में दोषी ठहराने और सजा सुनाए जाने के बाद एक मई को लोकसभा सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराया गया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के गैंगस्टर अधिनियम के एक मामले में उस वक्त अफजाल की दोषसिद्धि सशर्त निलंबित कर दी थी। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी उनकी चिंता दूर कर दी है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द की सजा
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गाजीपुर की एक अदालत द्वारा गैंगस्टर कानून के एक मामले में सांसद अफजाल अंसारी की दोषसिद्धि और उन्हें सुनाई गई चार साल की सजा को सोमवार को रद्द कर दिया है। इस निर्णय के बाद अफजाल अंसारी की सांसदी पर खतरा समाप्त हो गया और वह सांसद बने रहेंगे। वर्ष 2005 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद अफजाल पर यह मामला दर्ज किया गया था। इसके साथ ही अदालत ने इसी मामले में अफजाल की सजा बढ़ाने की उत्तर प्रदेश सरकार और कृष्णानंद राय के बेटे पीयूष कुमार राय की अपील भी खारिज कर दी है।
चुनाव लड़ने के लिए हो गए थे अयोग्य
न्यायमूर्ति एसके सिंह इस मामले में सुनवाई करते हुए गाजीपुर की अदालत के फैसले को रद्द करने का आदेश पारित किया। गाजीपुर की सांसद-विधायक अदालत ने 29 अप्रैल 2023 को अफजाल को गैंगस्टर कानून के मामले में दोषी करार दिया था और उन्हें चार साल की जेल की सजा सुनाई थी। इसके अलावा उन पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। अदालत ने अफजाल के भाई मुख्तार अंसारी को भी दोषी करार देते हुए 10 वर्ष की जेल की सजा सुनाई थी। इसके बाद, अफजाल सांसद के तौर पर अयोग्य हो गए जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील दायर की।
हाईकोर्ट ने 24 जुलाई 2023 को अफजाल को जमानत दे दी, लेकिन इस मामले में उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। जिसके चलते उन्हें जेल से तो रिहा कर दिया गया, लेकिन उनकी सांसदी बहाल नहीं हुई। साथ ही वह भविष्य में चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गए क्योंकि उन्हें सुनाई गई सजा दो वर्ष से अधिक की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में चार जुलाई 2024 को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
कौन हैं अफजाल अंसारी?
पांच बार के विधायक और तीसरी बार सांसद, अफजाल अंसारी की अपनी यही एक सबसे बड़ी पहचान है। अंसारी का परिवार बेहद संपन्न रहा है। उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी वर्ष 1926 से 1927 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष रहे। ये वही नाम है जो नई दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापकों में से एक थे। अफजाल और मुख्तार के पिता का नाम सुभानुल्लाह अंसारी, जो गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद नगर पालिका परिषद के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए थे। भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी अफजाल अंसारी के चचेरे भाई हैं।
पद का नाम | कार्यकाल | पार्टी |
मोहम्मदाबाद से विधायक | 1985-1989 | भाकपा |
मोहम्मदाबाद से विधायक | 1989-1991 | भाकपा |
मोहम्मदाबाद से विधायक | 1991-1993 | भाकपा |
मोहम्मदाबाद से विधायक | 1993-1996 | भाकपा |
मोहम्मदाबाद से विधायक | 1996-2002 | सपा |
गाज़ीपुर से सांसद | 2004-2009 | सपा |
गाज़ीपुर से सांसद | 2019-2024 | बसपा |
गाज़ीपुर से सांसद | 2024-वर्तमान | सपा |
26 अक्टूबर 1991 को अफजाल अंसारी की शादी फरहत अंसारी से हुई थी। अफजाल और फरहत की तीन बेटियां हैं। वहीं अफजाल के बड़े भाई का नाम सिबगतुल्लाह अंसारी है, जो समाजवादी पार्टी के नेता और मोहम्मदाबाद के पूर्व विधायक हैं। अफजाल के परिवार का सबसे खूंखार सदस्य उनका छोटा भाई मुख्तार अंसारी, जो अब इस दुनिया में नहीं है। मुख्तार एक गुंडा था, जिसने हत्या, अपहरण जैसे संगीन अपराधों को अंजाम दिया था।
मनोज सिन्हा को हर दो बार हराया
साल 2004 की बात है, जब अफजाल अंसारी ने समाजवादी पार्टी से नाता जोड़ लिया था। लोकसभा चुनाव में उसकी टक्कर तत्कालीन गाजीपुर से भाजपा के सांसद मनोज सिन्हा से हुई। इस चुनाव में अफजाल ने सिन्हा को 226,777 वोटों से करारी शिकस्त दी। इसके बाद वो अगले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से जुड़ गया और एक बार फिर गाजीपुर से ही लोकसभा चुनाव लड़ा, मगर इस बार उसे सपा के राधे मोहन सिंह ने हरा दिया। उसने बसपा छोड़कर अपनी राजनीतिक पार्टी कौमी एकता दल बनाई। मगर 2017 में उसने अपनी पार्टी का बसपा में विलय कर लिया।
2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर मनोज सिन्हा और अफजाल अंसारी आमने सामने थे। इस वक्त सिन्हा केंद्र की मोदी सरकार में दो-दो मंत्रालय में मंत्री पद संभाल रहे थे। मगर सपा-बसपा की जोड़ी ने फिर से सिन्हा को हार झेलने पर मजबूर कर दिया।
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