कौन हैं दानिश अली, आखिर बसपा ने उन्हें पार्टी से क्यों निकाला? पढ़ें इनसाइड स्टोरी

Danish Ali Explainer: बसपा ने सांसद कुंवर दानिश अली को लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले पार्टी से निकाल दिया है। क्या आप जानते हैं कि दानिश अली कौन हैं जो पार्टी लाइन से परे अपने रिश्ते रखते हैं। आखिर ऐसी क्या मुसीबत पड़ गई जो पार्टी के पास उन्हें निकालने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा। पढ़ें इनसाइड स्टोरी।

Danish Ali

बसपा को किस बात का डर सता रहा था?

Who Is Danish Ali: नाम कुंवर दानिश अली, पद- सांसद, पार्टी- कोई नहीं... ये वही दानिश अली हैं जिन्हें लोकतंत्र के मंदिर (संसद) में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद रमेश बिधूड़ी ने भद्दी-भद्दी गालियों से नवाजा था। उन्होंने ऐसी आपत्तिजनक और अभद्र लफ्जों का इस्तेमाल किया था, जिसका जिक्र करना भी मुनासिब नहीं है। जब बिधूड़ी ने दानिश पर शर्मनाक टिप्पणियां की थी, तब वे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसद हुआ करते थे, मगर अब बसपा ने उन्हें पार्टी से बेदखल कर दिया है। आखिर ऐसी कौन सा विवाद गहरा गया जो पार्टी के पास उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा। सबसे पहले आपको पार्टी की दलील से रूबरू करवाते हैं, फिर पूरा विवाद की इनसाइड स्टोरी बताते हैं।

बसपा ने दानिश को पार्टी से निकालने की दी ये दलील

बसपा की ओर से दी गई दलील में दानिश अली को बताया गया है कि 'आप लगातार लगातार पार्टी के विरुद्ध जाकर कृत्य / कार्य करते आ रहे हैं।' पार्टी ने ये भी बताया है कि 'देवगौड़ा के कहने पर दानिश को लोकसभा चुनाव 2019 में अमरोहा से सांसदी का टिकट दिया गया था। उन्होंने ये आश्वासन दिया था कि पार्टी के सभी निर्देशों और नीतियों का आप पालन करेंगे, मगर आप आश्वासनों को भूलकर पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। ऐसे में आपको बसपा की सदस्यता से तत्काल निलंबित किया जाता है।'
ये तो रही वो बात जिसका जिक्र पार्टी ने दानिश अली को बसपा से निकालने वाले लेटर में किया है। आखिर ऐसी जरूरत आन पड़ी जो बसपा के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा और उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उन्होंने ऐसी क्या गलती या फिर गुनाह कर दिया जिससे मायावती की पार्टी को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इतना बड़ा फैसला लेने पर मजबूर कर दिया। तो आपको इसकी इनसाइड स्टोरी समझाते हैं।

'INDIA' से मायावती की दूरी, बनी बसपा की मजबूरी

बसपा प्रमुख मायावती ये पहले ही ऐलान कर चुकी हैं कि वो विपक्षी पार्टियों के गठबंधन 'इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस' के साथ नहीं जाएंगी। उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 में अकेले ताल ठोकेगी। सितंबर के महीने में जब दानिश अली पर भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने विवादित टिप्पणी की थी, उस वक्त राहुल गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं ने खुलकर बसपा सांसद का साथ दिया था। हालांकि उस वक्त भी मायावती की कोई ठोस टिप्पणी नहीं आई थी।

क्या मायावती और बसपा को इस बात से लगी थी मिर्ची?

उस वक्त सांसद दानिश अली से मिलने अचानक राहुल गांधी पहुंच गए थे। राहुल गांधी के साथ पार्टी नेता केसी वेणुगोपाल भी थे। इस मुलाकात के बाद जब राहुल गांधी बाहर निकले तब उन्होंने मीडिया से कहा था कि 'नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान।' इस मुलाकात के बाद कांग्रेस ने दानिश अली के साथ राहुल गांधी की फोटो को शेयर करते हुए लिखा था, 'BSP सांसद दानिश अली जी से मिलने उनके निवास पर पहुंचे राहुल गांधी। कल भरी संसद में BJP सांसद रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली जी का अपमान किया था, उन्हें बेहद अमर्यादित और असंसदीय अपशब्द कहे थे। भाजपा के दो पूर्व मंत्री भद्दे ढंग से हंसते रहे। रमेश बिधूड़ी की यह शर्मनाक और ओछी हरकत सदन की गरिमा पर कलंक है। कांग्रेस देश भर के साथ लोकतंत्र के मंदिर में नफरत और घृणा की ऐसी मानसिकता के सख्त खिलाफ है।' इसी के बाद से ये चर्चा हो रही थी कि मायावती की चुप्पी और राहुल का मोह कहीं दानिश अली को आकर्षित ना कर ले।

तो क्या 2024 से पहले बसपा के लिए जरूरी था ये कदम?

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अगर सांसद दानिश अली बसपा से मुंह मोड़ लेते तो शायद मायावती और पार्टी के लिए ये तगड़ा झटका साबित हो सकता था, इससे पहले कि वो इस तरह की गतिविधियों में शामिल हो, बसपा ने पहले ही तलवार निकाल ली और उनका शिकार कर दिया। हालांकि बसपा का ये फैसला पार्टी के लिए परेशानी का सबब भी साबित हो सकता है। दानिश अली अगर सपा या कांग्रेस से जुड़ते हैं तो अमरोहा सीट पर वापस जीत हासिल कर पाना मायावती की पार्टी के लिए आसान नहीं होगा।

बेबाकी से बात रखते आए हैं सांसद दानिश अली

दानिश अली मूलरूप से उत्तर प्रदेश (यूपी) के हापुड़ के रहने वाले हैं। उन्होंने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) से अपनी पढ़ाई की है। अपने छात्र जीवन से ही वह राजनीति में सक्रिय रहे थे। जिन मसलों पर वह यकीन रखते हैं, वो मुखर होकर अपनी बात रखते रहे हैं। जामिया में पढ़ाई के दौरान युवा जनता दल के साथ छात्र जनता दल के अध्यक्ष के रूप में वो जेडी(एस) की ओर चले गए थे। बसपा में जाने के बाद से दानिश अली ने अपना मिजाज नहीं बदला। वह कई मुद्दों पर अपने मन की बात कहते रहे। वो तेजी से बसपा के अल्पसंख्यक चेहरे के तौर पर उभरने लगे।

संबंधों के लिए दानिश ने पार्टी लाइन को किया दरकिनार

संबंधों के लिए पार्टी लाइनों से परे जाने वाले दानिश अली ने विपक्षी गठजोड़ इंडिया की बैठक से पहले बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर हलचल मचा दी थी। बसपा 'इंडिया' ब्लॉक का हिस्सा नहीं है। बाद में अली ने साफ किया कि था यह दौरा निजी था। वह नीतीश को उनके छात्र नेता के दिनों से जानते हैं।

कर्नाटक चुनाव 2017 में अली ने बटोरी थी सुर्खियां

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2017 के दौरान दानिश अली का नाम सुर्खियों में छाया था। वही तब जनता दल (सेक्युलर) यानी जेडी(एस) और कांग्रेस के चुनाव बाद गठजोड़ के पीछे अहम चेहरा बताए गए थे। एक वक्त ऐसा था कि अली जेडीए(एस) सुप्रीमो एचडी देवगौड़ा के विश्वसनीय माने जाते थे। लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान वह यूपी की पूर्व सीएम मायावती के नेतृत्व वाली बसपा के टिकट से अमरोहा (यूपी) से चुनाव में खड़े हुए तब उन्होंने कहा था कि ऐसा जेडी(एस) नेतृत्व की सहमति से हुआ। अपने पहले चुनाव में अली ने अमरोहा (ऐसा निर्वाचन क्षेत्र, जहां मुसलमानों का प्रभुत्व है और बड़ी संख्या में दलित रहते हैं) से बड़ी जीत हासिल की थी। उन्होंने लगभग 51% वोट हासिल कर बीजेपी सांसद कुंवर सिंह तंवर को 63,000 वोटों के अधिक के अंतर से हराया था।
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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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