Who is Karpoori Thakur: जिन्हें चाह कर भी गिरफ्तार नहीं करवा सकी थी इंदिरा गांधी, जिनके शागिर्द हैं लालू-नीतीश, जानिए उस कर्पूरी ठाकुर की कहानी
Who is Karpoori Thakur: कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर जिले के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) गांव में हुआ था। कर्पूरी ठाकुर एक साधारण नाई परिवार में पैदा हुआ थे। कर्पूरी बचपन से ही होशियार थे, हालांकि परिवार की माली स्थिति ठीक नहीं थी। और पढ़ें
कौन थे कर्पूरी ठाकुर
Who is Karpoori Thakur: बिहार के पूर्व सीएम, गरीबों के मसीहा, सादगी की मिसाल, समाजवादी नेता, सामाजिक अलख जगाने वाले...ऐसे कई नामों से बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर जाने जाते हैं। बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहने वाले कर्पूरी ठाकुर को आज मोदी सरकार ने भारत रत्न देने का ऐलान किया है। जिसके बाद से उनके बारे में एक बार फिर से चर्चा होने लगी है। हालांकि बिहार में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच इनकी जयंती को लेकर हंगामा मचा हुआ है, बयानबाजी हो रही है। आइए जानते हैं कौन थे कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर का जन्म
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर जिले के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) गांव में हुआ था। कर्पूरी ठाकुर एक साधारण नाई परिवार में पैदा हुआ थे। कर्पूरी बचपन से ही होशियार थे, हालांकि परिवार की माली स्थिति ठीक नहीं थी। जिस उम्र में बच्चे खेलते-कूदते हैं, उसी उम्र में कर्पूरी ठाकुर ने समाजसेवा का बीड़ा उठा लिया। 14 साल की उम्र में अपने गांव में नवयुवक संघ की स्थापना की। इसके बाद एक छात्र के रूप में वे राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित हुए और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल हो गये।
कर्पूरी ठाकुर और स्वतंत्रता आंदोलन
एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में कर्पूरी ठाकुर ने भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के लिए अपनी कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्होंने 26 महीने जेल में बिताए। भारत को आजादी मिलने के बाद, कर्पूरी ठाकुर ने अपने गांव के स्कूल में शिक्षक के रूप में काम किया।
कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक यात्रा
कर्पूरी ठाकुर इसके बाद राजनीति में आ गए। 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से कर्पूरी ठाकुर बिहार विधानसभा के सदस्य बने। 1960 में केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों की आम हड़ताल के दौरान पी एंड टी कर्मचारियों का नेतृत्व करने के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था। 1970 में, उन्होंने टेल्को मजदूरों के हितों को बढ़ावा देने के लिए 28 दिनों तक आमरण अनशन किया था।
हिंदी भाषा के समर्थक
ठाकुर हिंदी भाषा के समर्थक थे और बिहार के शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने मैट्रिक पाठ्यक्रम से अंग्रेजी को अनिवार्य विषय से हटा दिया था। 1970 में बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी मुख्यमंत्री बनने से पहले ठाकुर ने बिहार सरकार में मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने बिहार में पूर्ण शराबबंदी भी लागू की। उनके शासनकाल के दौरान, बिहार के पिछड़े इलाकों में उनके नाम पर कई स्कूल और कॉलेज स्थापित किए गए थे। 1970 में पहली बार कर्पूरी ठाकुर बिहार के सीएम बने थे। इसके बाद 1977 में जब जनता पार्टी की लहर में भारी जीत मिली तो कर्पूरी ठाकुर एक बार फिर से बिहार के सीएम बनें। ठाकुर को गरीबों के चैंपियन के रूप में जाना जाता था। उन्होंने 1978 में सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की शुरुआत की। सीएम और मंत्री रहने के बाद भी उनकी सादगी के अनेक किस्से हैं।
इंदिरा को 'पटखनी'
पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने जब देश में इमरजेंसी लगाई तो कर्पूरी ठाकुर विरोधी हो गए। भूमिगत रहकर सरकार के खिलाफ माहौल बनाने लगे। उस दौर में जब ज्यादातर विपक्षी नेता जेल में थे, कर्पूरी ठाकुर को चाहकर भी इंदिरा गांधी गिरफ्तार नहीं कर सकी।
लालू-नीतीश शागिर्द
पिछले कई दशकों से जिन नेताओं का बिहार में राज है, वो कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द हैं। लालू यादव और नीतीश कुमार के एक जमाने में कर्पूरी ठाकुर ही गुरु थे। कर्पूरी ठाकुर से ही दोनों नेताओं ने राजनीति सीखी है।
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