आंदोलन से राम मंदिर बनने तक, एक-दो नहीं चौथी बार भाजपा को अयोध्या में मिली हार; समझें 3 कारण
"अब पछताए होत क्या जब चिड़ियां चुग गई खेत..." कहीं न कहीं भाजपा को अपनी कमियों और गलतियों पर मंथन की जरूरत है। जिस राम मंदिर के मुद्दे को आपने देशभर में भुनाया, उसी अयोध्यावासियों ने आपको चुनावों में सिरे से नकार दिया। ये भाजपा के लिए बड़े चिंतन का विषय है।
BJP को अयोध्या में क्यों मिली हार?
Why Losses Ayodhya: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों से ये समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भाजपा के राम मंदिर का मुद्दा विफल रहा और सपा ने शानदार प्रदर्शन किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जबसे अयोध्या की राम जन्मभूमि और बाबरी विवाद को भाजपा ने मुद्दे बनाया है, उसके बाद से अयोध्या में भारतीय जनता पार्टी की ये पहली हार नहीं है। राम मंदिर आंदोलन के बाद से राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर के निर्माण के बावजूद यहां लोगों ने भाजपा पर भरोसा नहीं जताया।
वो 3 ठोस कारण, जिसके चलते अयोध्या में हारी भाजपा
पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अभियान का मुख्य मुद्दा राम मंदिर का निर्माण रहा, लेकिन विडंबना यह रही कि अयोध्या में ही चुनावी मुद्दा कारगर साबित नहीं हुआ। फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र से दो बार के सांसद लल्लू सिंह को समाजवादी पार्टी (सपा)के अवधेश प्रसाद ने 54 हजार 567 वोटों से हार झेलनी पड़ी। फैजाबाद क्षेत्र के अंतर्गत अयोध्या भी आता है। आखिर हार के पीछे की वजह क्या है, आपको 3 ठोस कारण समझाते हैं।
1). अयोध्या में भाजपा के राम मंदिर का मुद्दा विफल
राम मंदिर आंदोलन भले ही भारतीय जनता पार्टी के लिए संजीवनी साबित हुआ, लेकिन पहली 1991 में फैजाबाद लोकसभा सीट पर जीत का डंका बजाने वाली भाजपा यहां कभी भी जीत का हैट्रिक नहीं लगा पाई है। इस चुनाव से ठीक पहले राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को भाजपा के मास्टरस्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा था। हालांकि चुनावी नतीजों में वो कारगर साबित नहीं हुआ। भाजपा के राम मंदिर का मुद्दा खुद अयोध्या में विफल साबित हो गया।
हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत राजू दास भी भाजपा की हार का दोष पार्टी पर नहीं बल्कि उम्मीदवार पर डालते दिखे। उन्होंने कहा कि हमें भाजपा से कोई समस्या नहीं थी। हालांकि, उम्मीदवार समाज से पूरी तरह कटा हुआ था और उसमें अहंकार समा गया था। यह पूछे जाने पर कि क्या भाजपा अयोध्या में मंदिर का लाभ उठाने में विफल रही, जिसपर दास ने कहा, 'राम मंदिर हमेशा से आस्था का विषय रहा है, न कि इसे भुनाने का। मैं उन लोगों का आभारी हूं जिन्होंने भाजपा को वोट दिया और किसी को भी राम मंदिर पर ताला नहीं लगाने दिया।' राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने अयोध्या चुनाव परिणाम को 'चौंकाने वाला' बताया लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की तीसरी बार जीत का श्रेय भगवान के आशीर्वाद को दिया। उन्होंने कहा, 'अगर वह (मोदी) फिर से प्रधानमंत्री बने हैं, तो यह राम लला की कृपा के कारण है।'
2). सपा का PDA फॉर्मला अयोध्या में रहा कारगर
उत्तर प्रदेश की फैजाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने जीत हासिल की। सपा ने इस चुनाव में पीडीए को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया, PDA- पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यकों ने ही सपा को अयोध्या में जीत दिलाई। हालांकि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में एक वादी इकबाल अंसारी ने कहा कि चुनावों से पहले अयोध्या के लोगों ने यह नहीं बताया कि उन्हें किससे वोट करना हैं। इकबाल ने भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ किसी भी मुस्लिम गोलबंदी से इनकार करते हुए कहा, 'अयोध्या में मुसलमानों की आबादी नगण्य है और चाहे जीत हो या हार, यह हिंदू वोटों के कारण होती है।'
फैजाबाद सीट से समाजवादी पार्टी (सपा) के नवनिर्वाचित सांसद अवधेश प्रसाद ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं को 'नकली' और खुद को 'असली' रामभक्त करार देते हुए कहा कि भाजपा ने प्रभु श्री राम के नाम पर देश को ठगने के सिवा और कुछ नहीं किया।
3). लल्लू सिंह से तंग आ चुके थे अयोध्या के लोग
दो बार के सांसद लल्लू सिंह से भी लोगों को भारी नाराजगी थी। अयोध्या के लोगों ने भाजपा की हार को लेकर ये जवाब दिया कि 'जब रावण अपने अहंकार के कारण अपनी लंका नहीं बचा सका, तो लल्लू सिंह कौन हैं?' मतलब साफ है कि भाजपा ने अयोध्या में अपने उम्मीदवार को चुनने में कहीं न कहीं बड़ी चूक कर दी। लोगों ने आरोप लगाया कि भाजपा उम्मीदवार को व्यापारी समुदाय की परवाह नहीं है। स्थानीय लोगों का ये भी दावा है कि भाजपा सांसद ने चुनाव अभियान को गंभीरता से नहीं लिया। एक व्यवसायी ने कहा, 'अयोध्या शहर में वह केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आयोजित रोड शो के दौरान दिखाई दिए थे।'
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य के रूप में लल्लू सिंह ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए 1989 के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। लल्लू सिंह (69) दो बार लोकसभा के अलावा पांच बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने जा चुके हैं।
भाजपा के हार की ये भी हो सकती है एक बड़ी वजह
सत्तारूढ़ भाजपा को 2019 लोकसभा चुनाव में 62 सीट मिली थी जबकि इस बार पार्टी को सिर्फ 33 सीट पर ही जीत मिली। भाजपा की करारी हार के पीछे का एक कारण चौड़ी सड़कें बनाने के लिए घरों को गिराना भी हो सकता है। समाजवादी पार्टी के जिला प्रमुख पारसनाथ यादव ने सड़कों को चौड़ा करने के लिए घरों के तोड़े जाने की शिकायत की। उन्होंने कहा, 'भगवान राम की भूमि के लोगों ने कहा कि उनके साथ अन्याय हो रहा है और उन्हें उनकी जगहों से उजाड़ा जा रहा है।'
1991 से अब तक भाजपा ने चार बार गंवाई अयोध्या सीट
वर्ष | नाम | पार्टी |
1957 | राजा राम मिश्र | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1962 | बृज बसी लाल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1967 | राम कृष्ण सिन्हा | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1971 | राम कृष्ण सिन्हा | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1977 | अनंतराम जयसवाल | जनता पार्टी |
1980 | जय राम वर्मा | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई) |
1984 | निर्मल खत्री | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1989 | मित्रसेन यादव | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी |
1991 | विनय कटियार | भारतीय जनता पार्टी |
1996 | विनय कटियार | भारतीय जनता पार्टी |
1998 | मित्रसेन यादव | समाजवादी पार्टी |
1999 | विनय कटियार | भारतीय जनता पार्टी |
2004 | मित्रसेन यादव | बहुजन समाज पार्टी |
2009 | निर्मल खत्री | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
2014 | लल्लू सिंह | भारतीय जनता पार्टी |
2019 | लल्लू सिंह | भारतीय जनता पार्टी |
2024 | अवधेश प्रसाद | समाजवादी पार्टी |
अयोध्या के महापौर और भाजपा नेता गिरीश पति त्रिपाठी ने कहा, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे हमारे लिए चौंकाने वाले हैं।' उन्होंने दावा किया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि प्रतिद्वंद्वियों ने जाति कार्ड खेला और किसी तरह, हमने उन चीजों को कम करके आंका।' वो कहावत है न "अब पछताए होत क्या जब चिड़ियां चुग गई खेत..." कहीं न कहीं भाजपा को अपनी कमियों और गलतियों पर मंथन की जरूरत है। जिस राम मंदिर के मुद्दे को आपने देशभर में भुनाया, उसी अयोध्यावासियों ने आपको चुनावों में सिरे से नकार दिया। ये भाजपा के लिए बड़े चिंतन का विषय है।
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