बांग्लादेश में क्यों हो रही हिंसा जिसमें फिर गई 300 से अधिक लोगों की जान, 1971 के मुक्तिसंग्राम से क्या है कनेक्शन?
बांग्लादेश में हिंसा का ये दूसरा दौर है, कुछ दिनों की शांति के बात प्रदर्शनकारी सड़कों पर हैं। आखिर क्यों हो रही है बांग्लादेशों में हिंसा और क्या हैं छात्रों की मांगें, समझते हैं।
हिंसा की आग में धधक रहा बांग्लादेश
Bangladesh Quota Row violence: बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर फिर हिंसा शुरू हो गई है। पुलिस के मुताबिक, अब तक 300 लोगों की मौत हो चुकी है। प्रदर्शनकारियों और सत्तारूढ़ आवामी लीग के समर्थकों के बीच रविवार को भीषण झड़पों में 14 पुलिसकर्मियों सहित 97 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों अन्य घायल हो गए थे। इसके चलते अधिकारियों ने मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद कर दी और अनिश्चितकाल के लिए पूरे देश में कर्फ्यू लागू कर दिया। पुलिस मुख्यालय के अनुसार, देशभर में 14 पुलिसकर्मियों के मारे जाने की खबर है जिनमें से 13 सिराजगंज के इनायतपुर थाने के थे। अखबार के अनुसार, कोमिला के इलियटगंज में एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई। इसके अलावा 300 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। हिंसा का ये दूसरा दौर है, कुछ दिनों की शांति के बात प्रदर्शनकारी सड़कों पर हैं। आखिर क्यों हो रही है बांग्लादेशों में हिंसा और क्या हैं छात्रों की मांगें, समझते हैं।
आरक्षण है हिंसा की वजह
दरअसल, ढाका और अन्य शहरों में विश्वविद्यालय के छात्र 1971 में पाकिस्तान से देश की आजादी के लिए लड़ने वाले युद्ध नायकों के रिश्तेदारों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ नौकरियों को आरक्षित करने पर संग्राम छिड़ा हुआ है। आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ छात्र कई दिनों से रैलियां और प्रदर्शन कर रहे हैं। मौजूदा आरक्षण प्रणाली के तहत 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए, 10 प्रतिशत पिछड़े प्रशासनिक जिलों, 10 प्रतिशत महिलाओं, पांच प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यक समूहों और एक प्रतिशत नौकरियां दिव्यांगों के लिए आरक्षित हैं। इसके खिलाफ ही छात्र जुटे हुए हैं हसीना सरकार से व्यवस्था बदलने की मांग कर रहे हैं।
क्या हैं छात्रों की मांगें
इस आरक्षण व्यवस्था को 2018 में निलंबित कर दिया गया था, जिससे उस समय इसी तरह के विरोध प्रदर्शन रुक गए थे। दरअसल, बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों को लेकर आरक्षण कानून का प्रावधान है। बांग्लादेश में आरक्षण प्रणाली के तहत 56 फीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षित हैं। विवाद 30 प्रतिशत आरक्षण को लेकर है, जो स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों को दिए गए हैं। प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना है कि इसे 10 फीसदी कर दिया जाए। इनका कहना है कि सरकार उन लोगों को आरक्षण दे रही है, जो शेख हसीना सरकार का समर्थन करते हैं। छात्रों का आरोप है कि मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरियां नहीं दी जा रही हैं। इनका कहना है कि उम्मीदवार नहीं मिलने पर मेरिट के आधार पर नौकरी दी जाए।
लॉन्ग मार्च टू ढाका
इस बीच आज प्रदर्शनकारियों ने आम जनता से ‘लॉन्ग मार्च टू ढाका’ में भाग लेने का आह्वान किया है। झड़पें रविवार की सुबह हुईं जब प्रदर्शनकारी ‘स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन’ के बैनर तले आयोजित असहयोग कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे। अवामी लीग, छात्र लीग और जुबो लीग के कार्यकर्ताओं ने उनका विरोध किया और फिर दोनों पक्षों के बीच झड़प हुई। प्रदर्शनकारी सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था के मुद्दे को लेकर हसीना का इस्तीफा मांग रहे हैं। ‘एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट मूवमेंट’ ने सोमवार को अपना ‘लॉन्ग मार्च टू ढाका’ आयोजित करने की योजना बनाई है जिसे पूर्व में एक दिन बाद आयोजित किया जाना था। आंदोलन के समन्वयक आसिफ महमूद ने रविवार रात को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि देश में बढ़ रही चिंताओं के बीच बुलायी गई एक आपात बैठक में यह फैसला लिया गया।
पीएम हसीना ने सख्ती से निपटने का दिया आदेश
उधर, सरकारी एजेंसियों ने सोशल मीडिया मंच फेसबुक, मैसेंजर, व्हॉट्सऐप और इंस्टाग्राम को बंद करने का आदेश दिया है। अखबार ने बताया कि मोबाइल प्रदाताओं को 4जी इंटरनेट बंद करने का आदेश दिया गया है। इस बीच, प्रधानमंत्री हसीना ने कहा कि विरोध के नाम पर बांग्लादेश में तोड़फोड़ करने वाले लोग छात्र, नहीं बल्कि आतंकवादी हैं और उन्होंने जनता से ऐसे लोगों से सख्ती से निपटने को कहा। उन्होंने कहा, मैं देशवासियों से अपील करती हूं कि इन आतंकियों से सख्ती से निपटा जाए। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के सूत्रों के हवाले से अखबार ने खबर में बताया कि हसीना ने गणभवन में सुरक्षा मामलों की राष्ट्रीय समिति की बैठक बुलाई। बैठक में सेना, नौसेना, वायुसेना, पुलिस, रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी), बांग्लादेश सीमा गार्ड (बीजीबी) के प्रमुखों और अन्य शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
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