देश की इकलौती सीट, जहां NOTA को जिताने में जुटी है कांग्रेस; समझिए कैसे हार कर भी जीत सकती है CONG
Indore Lok Sabha Seat Nota: इंदौर मतदाताओं की तादाद के लिहाज से मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र है। भाजपा ने अपने निवर्तमान सांसद शंकर लालवानी को लगातार दूसरी बार इंदौर के चुनावी रण में उतारा है।
इंदौर सीट पर कांग्रेस कर रही नोटा दबाने की अपील
Indore Lok Sabha Seat Nota: भारतीय राजनीति के इतिहास में शायद ये पहली बार है जब कांग्रेस पार्टी अपने विरोधियों को हराने के लिए जनता से नोटा का बटन दबाने की अपील कर रही है। लोकसभा चुनाव 2024 में मध्य प्रदेश की इंदौर लोकसभा सीट, इकलौती ऐसी सीट है, जहां विपक्ष, बीजेपी को नोटा से हराने की तैयारी में है।
नोटा के अलावा ऑप्शन क्यों नहीं?
इस कहानी की शुरुआत होती है 29 अप्रैल 2024 से। जब नामांकन वापस लेने के आखिरी दिन कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने अपना पर्चा वापस ले लिया। कांग्रेस के लिए ये बड़ा झटका था, क्योंकि सूरत में भी कांग्रेस का प्रत्याशी मैदान छोड़कर भाग गया था, बीजेपी यहां निर्विरोध जीत गई। इंदौर में भी यही हुआ। पर्चा वापस लेने के बाद कांग्रेस उम्मीदवार तुरंत बीजेपी में भी शामिल हो गया। बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय के साथ कांग्रेस उम्मीदवार दिखे। हालांकि यहां बीजेपी को निर्विरोध जीत नहीं मिली है, क्योंकि अन्य निर्दलीय मैदान में हैं।
कैलाश विजयवर्गीय के साथ अक्षय कांति बम
नोटा के सहारे मध्य प्रदेश कांग्रेस
कांग्रेस उम्मीदवार के धोखे के बाद खबर आई कि कांग्रेस किसी निर्दलीय उम्मीदवार को सपोर्ट कर सकती है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता कांग्रेस ने रणनीति बदली और नोटा पर दांव लगा दिया। इंदौर सीट के 72 साल के इतिहास में पहली बार चुनावी दौड़ से बाहर हो चुकी कांग्रेस इंदौर को अपने समर्थित प्रत्याशी के तौर पर नोटा को पेश करने की हर-मुमकिन कोशिश कर रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने स्थानीय मतदाताओं से आह्वान किया है कि वे भाजपा को सबक सिखाने के लिए इस बार नोटा का इस्तेमाल करें। उन्होंने एक हालिया कार्यक्रम में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा- "भले ही इस बार इंदौर में हमारा प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है, लेकिन मतदान के दिन हर बूथ के पास कांग्रेस कार्यकर्ता टेबल-कुर्सी लगाकर बैठें और इस भाव से काम करें कि नोटा ही हमारा प्रत्याशी है।"
इंदौर सीट का इतिहास
नोटा पर ही फोकस क्यों
दरअसल जिस तरह से कांग्रेस उम्मीदवार ने पर्चा वापस लिया और तुरंत बीजेपी में शामिल हो गए, उससे इंदौर की जनता में भी नाराजगी है। जो कई मौकों पर दिख चुकी है। नोटा को लेकर भी बात हो रही है, जिसके बाद अब कांग्रेस बीजेपी के सामने नोटा से चुनौती पेश कर रही है। अगर कांग्रेस, बीजेपी के मुकाबले में नोटा को खड़ा में कामयाब रही तो यह बहुत बड़ी बात होगी। पूरे देश में एक मैसेज जा सकता है। हालांकि जिस तरह से इंदौर सीट पर सालों से बीजेपी का कब्जा रहा है, उससे बीजेपी, नोटा से हार जाए, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन कांग्रेस चुनौती जरूर पेश करने की कोशिश कर रही है।
इंदौर सीट का समीकरण
इंदौर मतदाताओं की तादाद के लिहाज से मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र है। भाजपा ने अपने निवर्तमान सांसद शंकर लालवानी को लगातार दूसरी बार इंदौर के चुनावी रण में उतारा है। इस सीट पर 25.13 लाख मतदाता 13 मई को 14 उम्मीदवारों का भविष्य तय करेंगे जिनमें नौ निर्दलीय प्रत्याशी शामिल हैं। साल 2019 में पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान इंदौर में 69 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था। तब इस सीट पर 5,045 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था।
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नोटा क्या है
नोटा या "उपरोक्त में से कोई नहीं", वह विकल्प है जो मतदाता को चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के लिए आधिकारिक तौर पर अस्वीकृति का वोट दर्ज करने में सक्षम बनाता है। यदि कोई मतदाता नोटा दबाता है तो यह बताता है कि मतदाता ने किसी भी पार्टी को वोट देने का विकल्प नहीं चुना है। उसे कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आया है।
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