Explained: भारत का आखिरी गांव किबिथू क्यों चर्चा में आया, 1962 में चीन ने क्यों बरपाया था कहर

आइए जानते हैं किबिथू के इतिहास के बारे में जो चीनी आक्रमण की बार-बार याद दिलाता है। चीन ने 1962 युद्ध में सबसे पहले इसी कस्बे को निशाना बनाया था।

Amit Shah in Kibithoo

भारत का आखिरी गांव किबिथू

अरुणाचल प्रदेश के अंजाव जिले का किबिथू गांव इन दिनों चर्चा में है। इसे देश का आखिरी गांव माना जाता है। अमित शाह ने हाल ही में यहां का दौरा किया था और इसे देश का आखिरी नहीं बल्कि पहला गांव बताया था। उन्होंने बिना नाम लिए चीन को चेतावनी देते हुए कहा कि यहां की एक इंच जमीन भी कोई देश हमसे नहीं ले सकता। इस पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। एक हफ्ते पहले ही चीन ने यहां के जंगल का नाम बदला था और इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने यहां का दौरा किया। देश की सभी सीमाओं को जोड़ने के मोदी सरकार के प्रयासों के तहत उन्होंने किबिथू में वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की शुरुआत की थी। आइए जानते हैं किबिथू के इतिहास के बारे में जो चीनी आक्रमण की बार-बार याद दिलाता है।

भारत और चीन के बीच 1962 युद्ध का गवाह

ये गांव भारत और चीन के बीच 1962 युद्ध की याद दिलाता है। इस गांव की अहमियत इसलिए भी है क्योंकि इसी जगह पर भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच सीमा विवाद के मुद्दे पर बातचीत होती है। ऐसे में चीन का इस इलाके पर नजर गढ़ाए रखना भारत के लिए चिंता का विषय बन गया है।
किबिथू अरुणाचल प्रदेश के अंजा जिले का एक कस्बा है और लोहित घाटी के किनारे बसा हुआ है। यहां मेयर और जार्किन जनजातियों की अधिक संख्या है। ये कस्बा उस त्रिबिंदु दिफू दर्रे से 40 किलोमीटर दूर है जहां भारत, तिब्बत और बर्मा की सीमाएं मिलती हैं। ये जगह भारत-चीन एलएसी से सिर्फ 15 किलोमीटर दूर है। ये कस्बा सामरिक दृष्टि से बहुत अहम है।
किबिथू में सेना का सैन्य शिविर है जिसका नाम दिवंगत जनरल बिपिन रावत के नाम पर बिपिन रावत मिलिट्री गैरिसन रखा गया है। इस आर्मी कैंप के महत्व का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि इसके ठीक सामने चीनी सैनिकों का कैंप है। 1962 में चीन ने सबसे पहले किबिथू पर ही हमला किया था। इस पर 1950 में असम राइफल ने कब्जा किया था। 1962 युद्ध खत्म होने के बाद दोबारा असम राइफल्स ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। 1985 में राजपूत रेजिमेंट्स ने इसकी सुरक्षा का जिम्मा संभाला।

उस दिन क्या-क्या हुआ था

साल 1962 में भारत-चीन के बीत बड़ा युद्ध छिड़ गया था। चीन सैनिकों ने सबसे पहले किबिथू को ही निशाना बनाया। 21 अक्तूबर 1962 की रात को चीनी सैनिकों ने भारतीय चौकी को गोलीबारी का निशाना बनाया। चीन की चौकियां 700 मीटर दूर थी और जल्द ही भारतीय सैनिक हमले की जद में आ गए। किबिथू में 6 कुमाऊं रेजिमेंट की टुकड़ी तैनाथी और इनकी संख्या चीनी सैनिकों के मुकाबले कम थी। इसके बावजूद इस टुकड़ी ने पराक्रम दिखाते हुए 60-70 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया। इसमें चार भारतीय सैनिक भी शहीद हुए थे जिसमें वीर चक्र से सम्मानित नायक बहादुर सिंह भी थे। भारतीय सैनिक कमजोर पड़ने लगे तो उन्हें वालोंग जाने का आदेश दिया गया।
यहां भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को पस्त कर दिया। भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को 27 दिन रोके रखा। कम गोला-बारूद के बावजूद भारतीय सैनिकों ने आखिरी दम तक लड़ते हुए चीनी सैनिकों को रोका। 5 नवंबर को चीनी सैनिकों ने बड़ा हमला बोला, दोनों तरफ से भारी गोलीबारी हुई। 14 नवंबर को भारतीय सेना ने पलटवार किया। हालांकि चीन की सेना ने ताकत और हथियार के दम पर यहां जीत हासिल की थी।

क्या है वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम

वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में अपने 2022 के बजट भाषण में घोषणा की थी। ये एक केंद्र-प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से लगते सीमावर्ती गांवों में बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करना और सुधार करना है। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 से 2025-26 के लिए सड़क संपर्क के लिए 2500 करोड़ रुपये सहित 4800 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। अब तक सरकार ने अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के 19 जिलों के 46 ब्लॉकों में ऐसे 2967 गांवों की पहचान की है।
पहले चरण में प्राथमिकता कवरेज के लिए कुल 663 गांवों की पहचान की गई है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश के 455 गांव, हिमाचल प्रदेश के 75, लद्दाख के 35, सिक्किम के 46 और उत्तराखंड के 51 गांव शामिल हैं। वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत सरकार बेहतर सड़क संपर्क, पीने के पानी की आपूर्ति, सौर और पवन ऊर्जा सहित 24 घंटे बिजली की आपूर्ति, मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी, पर्यटन केंद्र, बहुउद्देश्यीय केंद्र, स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचे और कल्याण केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करेगी।
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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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