क्यों बुलाया जाता है संसद का विशेष सत्र? सरकार की इस ताकत के बारे में क्या कहता है अनुच्छेद 85

Parliament Special Session : सरकार को यदि लगता है किसी विषय या मुद्दे पर संसद की बैठक तत्काल बुलाने की जरूरत है तो सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति या स्पीकर, लोकसभा का विशेष सत्र बुला सकते हैं। संसद का विशेष सत्र पहले भी बुलाया जा चुका है। संविधान में विशेष मौकों पर विशेष सत्र बुलाए जाने का प्रावधान किया गया है।

18 से 22 सितंबर तक पांच दिन का विशेष सत्र।

Parliament Special Session : सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। पांच दिन के इस विशेष सत्र को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। रिपोर्टों में सूत्रों के हवाला से कहा जा रहा है कि इस विशेष सत्र में 'वन नेशन, वन इलेक्शन', यूनिफॉर्म सिविल कोड और महिला आरक्षण पर सरकार विधेयक पेश कर सकती है। विशेष सत्र को लेकर सरकार और विपक्ष में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। विशेष सत्र का आह्वान विशेष मौकों पर किए जाने की परंपरा रही है। संसद का विशेष सत्र पहले भी बुलाया जा चुका है। संविधान में विशेष मौकों पर विशेष सत्र बुलाए जाने का प्रावधान किया गया है। यहां हम संविधान के इस प्रावधान को समझेंगे जो सरकार को विशेष सत्र बुलाने की शक्ति देता है।

अनुच्छेद 85 में विशेष सत्र का प्रावधान

संसद के सत्र के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 85 में प्रावधान किया गया है। संसद के किसी सत्र को बुलाने की शक्ति सरकार के पास होती है। सत्र बुलाने जाने पर निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति लेती है और फिर इसे राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक रूप दिया जाता है। अनुच्छेद 85 कहता है कि संसद के दो सत्रों के बीच अंतराल छह महीने से ज्यादा नहीं होना चाहिए और साल में कम से कम इसे दो बार बुलाया जाना चाहिए। फिर भी भारत में संसद सत्र बुलाए जाने को लेकर कोई तय कैलेंडर नहीं है लेकिन एक साल में संसद सत्र के लिए तीन बार जुटती है।

  • बजट सत्र (फरवरी-मई)
  • मानसून सत्र (जुलाई-अगस्त)
  • शीतकालीन सत्र (नवंबर दिसंबर)
राष्ट्रपति को यदि लगता है कि सत्र बुलाने के लिए छह महीने का अंतराल समाप्त हो रहा है तो वह अपने विवेक से भी संसद का सत्र बुला सकते हैं।
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