नेपाल में लोकतंत्र के नाम पर ठगी गई जनता? क्यों उठ रही है राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग; समझिए कहां चूके नेता

2006 में नेपाल में जनआंदोलन II हुआ, जिसके परिणामस्वरूप राजा ने 2008 में राजशाही को समाप्त कर दिया और नेपाल को एक गणराज्य घोषित किया। 2008 में संविधान सभा ने राजशाही को समाप्त करने के लिए मतदान किया, और नेपाल को संविधानिक गणराज्य घोषित किया गया, लेकिन अब फिर से राजशाही की मांग की जा रही है।

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नेपाल में राजशाही के सपोर्ट में आंदोलन

नेपाल में हाल के दिनों में राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर हिंसा भड़की हुई है। लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं, सरकारी संपत्तियों पर हमले बोल रहे हैं, नेताओं के घरों और राजनीति पार्टियों के दफ्तरों पर हमले हो रहे हैं। सुरक्षाबलों के साथ झड़पें हो रही हैं। अब सवाल ये हैं कि जिस नेपाल में कुछ 2008 में जिस राजशाही को खत्म कर दिया गया था, लोकतंत्र में जनता से विश्वास जताया था, उसी राजशाही और हिंदू राष्ट्र के लिए जनता एक बार फिर से सड़कों पर क्यों उतर आई है, नेताओं से ऐसी क्या चूक हो गई कि जनता एक बार फिर राजतंत्र की बहाली पर बात करने लगी है।

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कहां मात खा गए लोकतंत्र समर्थक?

नेपाल में जब राजशाही खत्म हुई तो पूरी जनता से इसका स्वागत किया था, जश्न मनाया था, लेकिन नेताओं को कुर्सी के लिए आज इसके साथ, कल उसके साथ जाते हुए जब जनता ने देखा तो वो धीरे-धीरे इससे उनका मोह भंग होने लगा। नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था के बाद से कई राजनीतिक अस्थिरताएं आईं हैं। 2008 से अब तक नेपाल में 10 से अधिक बार सरकारें बदल चुकी हैं, और यह परिवर्तन विभिन्न राजनीतिक परिस्थितियों, गठबंधनों और विवादों के कारण हुआ है। यह दर्शाता है कि नेपाल में सरकार बनाने और बनाए रखने में कठिनाइयां रही हैं, और राजनीतिक अस्थिरता एक महत्वपूर्ण कारण रही है। सरकारों की अनियमितता, भ्रष्टाचार, और निर्णय लेने की प्रक्रिया में विफलता ने जनता को राजशाही के समय की स्थिरता याद दिलाई है। कुछ लोग मानते हैं कि एक मजबूत और केंद्रित नेतृत्व की आवश्यकता है, जो राजशाही के रूप में मिल सकता है।

जनता क्यों राजशाही को कर रही है याद

कई लोग महसूस करते हैं कि लोकतांत्रिक सरकारों ने उनके जीवन स्तर में सुधार नहीं किया है, और इससे असंतोष बढ़ा है। ऐसे में राजशाही की पुरानी छवि, जिसमें लोगों की भलाई और सुरक्षा पर ध्यान दिया जाता था, एक विकल्प के रूप में सामने आती है। नेपाल के राजा, वीरेंद्र, को कई लोग एक लोकप्रिय और सम्मानित शासक मानते थे। उनकी मृत्यु के बाद, राजशाही के अंत के साथ जो अस्थिरता आई, उसने कुछ लोगों में यह विश्वास पैदा किया कि राजशाही का फिर से आना देश के लिए अच्छा हो सकता है।

कैसे सुलगी राजशाही के सपोर्ट में आग

19 फरवरी को लोकतंत्र दिवस पर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह द्वारा जनता से समर्थन की अपील के बाद राजशाही समर्थकों के बीच यह मुद्दा फिर से गरमाया है। उनके द्वारा दिए गए संदेश ने राजशाही के पक्ष में आवाज़ उठाने वालों को उत्साहित किया है, और यही कारण है कि अब कुछ जगहों पर राजशाही की बहाली के लिए प्रदर्शन और रैलियां देखने को मिल रही हैं। त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उनकी वापसी के बाद, जिन राजशाही समर्थक कार्यकर्ताओं ने रैली निकाली, उनका मुख्य संदेश यह था कि "राजा वापस आओ, देश बचाओ", और वे पुराने शाही महल को खाली करने की भी बात कर रहे थे।

कभी नेपाल की पहचान थी हिंदू राष्ट्र

नेपाल में राजा को कभी शक्ति और स्थिरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक समूह राजशाही को नेपाल की "हिंदू राष्ट्र" के रूप में पहचानते थे और इसे देश के धर्म और संस्कृति के संरक्षण के रूप में देखते हैं। इन समूहों का मानना है कि राजशाही का पुनर्निर्माण नेपाल को अपनी पारंपरिक पहचान से जोड़ सकता है। नेपाल में राजशाही का ऐतिहासिक संबंध हिंदू धर्म से था। नेपाल के पूर्व राजा खुद को "हिंदू साम्राज्य का संरक्षक" मानते थे। राजशाही के समाप्त होने के बाद, कुछ लोग यह महसूस करते हैं कि हिंदू धर्म का संरक्षण और संवर्धन केवल हिंदू राष्ट्र होने से ही संभव है।

हिंदू राष्ट्र की मांग क्यों?

नेपाल का बहुसंख्यक समुदाय हिंदू है, और कुछ लोग महसूस करते हैं कि हिंदू धर्म नेपाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का एक अभिन्न हिस्सा है। उनका मानना है कि हिंदू राष्ट्र के रूप में नेपाल अपनी पारंपरिक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित कर सकता है। नेपाल का संविधान 2007 में धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार करता है, और 2015 में इसे फिर से संविधान में शामिल किया गया। हालांकि, कुछ हिंदू संगठन और नागरिक इस बात से असहमत हैं कि एक हिंदू बहुल देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित करना संविधान में असंगत है, और वे इसे नेपाल की हिंदू पहचान को कमजोर करने के रूप में देखते हैं।

कैसे राजशाही ने लोकतांत्रिक राष्ट्र बना था नेपाल?

1990 में नेपाल में लोकतांत्रिक आंदोलन हुआ, जिसे "जनआंदोलन" के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन ने पंचायती प्रणाली को समाप्त कर दिया और नेपाल में बहुदलीय लोकतंत्र की स्थापना की। महेंद्र शाह के बाद उनके बेटे वीरेन्द्र शाह ने नेपाल के राजा के रूप में शासन किया। राजा वीरेन्द्र ने एक संवैधानिक राजा के रूप में सरकार के साथ मिलकर काम किया, लेकिन 2001 में राजपरिवार के भीतर हुए एक नरसंहार में राजा वीरेन्द्र और उनके परिवार के अधिकांश सदस्य मारे गए, और राजा ज्ञानेंद्र ने सत्ता संभाली। राजा ज्ञानेंद्र ने 2005 में नेपाल में सैन्य शासन लागू किया, जब उन्होंने लोकतांत्रिक सरकार को बर्खास्त कर दिया और देश में सीधे शाही शासन को स्थापित किया। हालांकि, इस कदम ने व्यापक विरोध और संघर्ष को जन्म दिया। 2006 में नेपाल में जनआंदोलन II हुआ, जिसके परिणामस्वरूप राजा ने 2008 में राजशाही को समाप्त कर दिया और नेपाल को एक गणराज्य घोषित किया। 2008 में संविधान सभा ने राजशाही को समाप्त करने के लिए मतदान किया, और नेपाल को संविधानिक गणराज्य घोषित किया गया। इसके साथ ही, राजा ज्ञानेंद्र ने अपने पद से इस्तीफा दिया और नेपाल में राजशाही का औपचारिक अंत हुआ। इसके बाद नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष, संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया, और नए संविधान के तहत देश की शासन व्यवस्था को पुनर्गठित किया गया।

क्या है वर्तमान स्थिति

नेपाल में राजशाही की वापसी और हिंदू राष्ट्र के लिए आंदोलन हो रहा है, वो भी हिंसक। हाल के दिनों में इस आंदोलन में तीव्रता देखी गई है। कुछ पार्टियों भी इसके सपोर्ट में है। हालांकि हिंदू राष्ट्र की मांग नेपाल में कुछ हिस्सों में गूंज रही है, अधिकांश प्रमुख राजनीतिक दलों का मानना है कि नेपाल को लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र ही रहना चाहिए, ताकि सभी धर्मों और समुदायों को समान अधिकार मिल सके। हालांकि राजनीतिक स्थिरता के कारण पार्टियों की ओर से लोगों का मोह भंग होता दिख है। इस महीने की शुरुआत में जब ज्ञानेंद्र देश के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक स्थलों का दौरा करने के बाद त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे, तो कई राजशाही समर्थक कार्यकर्ताओं ने उनके समर्थन में एक रैली निकाली। प्रदर्शनकारियों को 'राजा वापस आओ, देश बचाओ', 'हमें राजशाही चाहिए', और 'राजा के लिए शाही महल खाली करो' जैसे नारे लगाते हुए सुना गया।

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शिशुपाल कुमार author

पिछले 10 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए खोजी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में एक अपनी समझ विकसित की है। जिसमें कई सीनियर सं...और देखें

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