हैदराबाद के आखिरी निजाम को क्यों कहते थे 'मारवाड़ी सेठ' का बेटा, जानिए ये दिलचस्प कहानी
दीवान जरमनी दास की किताब महाराजा में भारतीय राजघराने की कई दिलचस्प कहानियां हैं। इसी किताब के अनुसार छठे निजाम महबूब अली खान को लेकर यह दावा किया गया है।
उस्मान अली खान (Britannica)
The Last Nizam of Hyderabad: हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्मान अली खान बेहद मशहूर और अमीर शख्स थे। हालांकि, अपने पूरे जीवन में उन्हें अक्सर "मारवाड़ी सेठ का बेटा" कहा जाता था। ऐसा क्यों कहा जाता था जबकि वह तो निजाम खानदान से संबंध रखते थे। तो इसकी कहानी भी बेहद दिलचस्प है जो हम आपको बताने जा रहे हैं। उस्मान अली खान का जन्म 6 अप्रैल, 1886 को हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खान के घर हुआ था। निजामों को मूल रूप से मुगल सम्राटों द्वारा दक्कन के वाइसराय के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।
दीवान जरमनी दास की किताब में दावा
दीवान जरमनी दास की किताब महाराजा जिसमें भारतीय राजघराने की कई दिलचस्प कहानियां हैं, उसके अनुसार छठे निजाम, महबूब अली खान, अपनी कई बीबियों के लिए जाने जाते थे और उनकी कई बीवीया और रखैलें थीं। इनमें से एक महिला का रिश्ता एक अमीर मारवाड़ी व्यापारी या सेठ के साथ बन गया।
ऐतिहासिक किस्सों के अनुसार, इस महिला ने एक लड़के को जन्म दिया, जिसका चेहरा मारवाड़ी सेठ से काफी मिलता-जुलता था। अफवाहों और शारीरिक समानता के बावजूद, महबूब अली खान ने लड़के को अपने बेटे के रूप में स्वीकार किया और उसका नाम उस्मान अली खान रखा। लेकिन विवाद और कानफूसी का दौर चलता रहा और समुदाय में कई लोगों ने उस्मान अली खान के वंश की वैधता पर सवाल उठाया था। मामला अदालत तक भी पहुंचा था।
मारवाड़ी सेठ से ऐसे था संबंध
मारवाड़ी सेठ का अर्थ है राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र का कोई धनी व्यापारी। बताते हैं कि एक मारवाड़ी सेठ के संबंध ऐसी महिला से बने जो महबूब अली खान के हरम से थी। इसी महिला ने उस्मान अली खान को जन्म दिया था। यहीं से पूरा विवाद पैदा हुआ। यह अफवाह उस्मान अली खान के जीवन भर बनी रही, बावजूद इसके कि उनके पिता ने उन्हें सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया था।
उस्मान अली खान को महबूब अली खान की स्वीकृति के बाद भी संदेह शांत नहीं हुआ। छठे निजाम ने ब्रिटिश अधिकारियों से शिकायत करते हुए यहां तक कहा कि उस्मान अली खान उनका वैध पुत्र नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी वैध पत्नियों से पैदा हुए उनके अन्य दो बेटे, सलाबत जाह और बसालत जाह को उनके असली उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। यह दावा समकालीन इतिहासकार दीवान जरमनी दास की किताब में है।
1911 में बने हैदराबाद के सातवें निजाम
इन विवादों के बावजूद, उस्मान अली खान अपने पिता की मौत के बाद 1911 में हैदराबाद के सातवें निजाम के रूप में सिंहासन पर बैठे। उनका शासनकाल 1948 तक चला, जब हैदराबाद को भारतीय संघ में शामिल किया गया। अपने शासन के दौरान, उस्मान अली खान अपनी अपार संपत्ति, कंजूसी और सनकीपन के लिए जाने जाते थे। अपनी विशाल संपत्ति के बावजूद, वह अक्सर साधारण कपड़े और पुरानी, घिसी-पिटी टोपी पहने रहते थे।
लेकिन उस्मान अली खान ने अपने शासनकाल में कई शानदार काम कराए। उनके शासनकाल में हैदराबाद में शिक्षा, बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक कल्याण के विकास में अहम काम हुए। उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों की स्थापना की और कला और संस्कृति के संरक्षक थे। 24 फरवरी, 1967 को उस्मान अली खान का निधन हो गया और वह अपने पीछे अपार धन और विवाद दोनों की विरासत छोड़ गए। उनका जीवन और शासनकाल आकर्षण और अध्ययन का विषय बना हुआ है, जो हैदराबाद और उसके शासकों के जटिल इतिहास को दर्शाता है।
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अमित कुमार मंडल author
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