अखिलेश यादव और राहुल गांधी की टेंशन बढ़ाएंगी मायावती? उपचुनाव के लिए बनाया प्लान; समझें नफा-नुकसान
UP Politics: क्या अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए मायावती (Mayawati) की बहुजन समाज पार्टी गले की फांस बनने वाली हैं? ये सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर बसपा ने बड़ा ऐलान कर दिया है। आपको उसका नफा-नुकसान समझाते हैं।
मायावती ने यूपी के लिए बनाया खास प्लान।
Mayawati Plan for UP Assembly by-Election: उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर नई दिशा में करवट लेती नजर आ रही है। कहते हैं न, दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यूपी के राजनीतिक गलियारे से ही होकर गुजरता है। वजह से हर कोई वाकिफ है, सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटों वाले इस सूबे की ताकत इस बात से समझा जा सकता है कि अकेले ये राज्य किसी की सरकार बनाने और गिराने में सबसे मजबूत स्तम्भ की भूमिका अदा करता है। इस बीच सूबे की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर उठापटक का दौर तेज हो चुका है। एक ओर विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA में शामिल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सभी सीटें जीतने का दावा कर रही हैं, तो वहीं मायावती ने अखिलेश और राहुल का सिरदर्द बढ़ाने के लिए सियासी चाल चली है।
सभी 10 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगी मायावती
खुद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस बात का ऐलान किया है कि राज्य की 10 रिक्त विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में उनकी पार्टी अपने उम्मीदवार उतारेगी और पूरे दमखम से चुनाव लड़ेगी। मायावती ने लखनऊ में प्रदेश कार्यालय में पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों और जिलाध्यक्षों की एक समीक्षा बैठक में उपचुनाव लड़ने की घोषणा की। अमूमन उपचुनावों से दूर रहने वाली बसपा ने इस उपचुनाव को पूरे दमखम से लड़ने का फैसला किया है।
NDA या INDIA, किसको होगा अधिक नुकसान?
मायावती की सियासी जमीन का सबसे बड़ा आधार दलित वोटबैंक है। दलित आधारित राजनीति (Dalit Politics) के दम पर वो सूबे की सबसे बड़ी दलित नेता के रूप में उभरी थीं। अब तक उत्तर प्रदेश में दलितों की नेता के तौर पर मायावती (Mayawati) का बड़ा बोलबाला रहा है, हालांकि पिछले कुछ वर्षों से राजनीति में मायावती की बसपा (BSP) का पतन होता नजर आ रहा है। ऐसे में अब उनकी राह आसान नहीं है, क्योंकि इस रेस में अब चंद्रशेखर आजाद का नाम भी शामिल हो चुका है, जो मायावती के वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश लगातार कर रहे हैं। यही वजह है कि वो बार-बार बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो पर तीखा तंज कस रहे हैं। ऐसे में मायावती की लड़ाई अखिलेश या कांग्रेस के बजाय चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से है।
INDIA गठबंधन के लिए कितनी टेंशन की बात?
बीते लोकसभा चुनाव के नतीजों में इस राज्य ने पूरे देश को हैरान कर दिया। नतीजों में भाजपा को तगड़ा झटका लगा और उसका ग्राफ आधे पर आ गिरा, तो वहीं अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की जोड़ी ने इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) को प्रचंड जीत दिलाने में सफल रही। मायावती की बसपा ने बीते आम चुनाव में भी अलग चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट जीत पाने में उनकी पार्टी नाकाम रही। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मायावती की दावेदारी कांग्रेस, सपा और भाजपा तीने में से किसी को ज्यादा टेंशन देने वाली बात नहीं है। हां, ये जरूर है कि लोकसभा चुनाव जैसे नतीजे उपचुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव में रहे, तो भाजपा की लुटिया जरूर डूब सकती है।
किन 10 विधानसभा सीटों पर होने हैं उपचुनाव?
सीट | क्यों खाली हुई? | पूर्वविजेता पार्टी |
करहल | अखिलेश यादव कन्नौज के सांसद बने | समाजवादी पार्टी |
मिल्कीपुर | अवधेश प्रसाद फैजाबाद के सांसद बने | समाजवादी पार्टी |
कटेहरी | लालजी वर्मा अंबेडकर नगर के सांसद बने | समाजवादी पार्टी |
कुंदरकी | जियाउर रहमान बर्क संभल के सांसद बने | समाजवादी पार्टी |
गाजियाबाद | अतुल गर्ग गाजियाबाद के सांसद बने | भारतीय जनता पार्टी |
खैर | अनूप प्रधान अलीगढ़ के सांसद बने | भारतीय जनता पार्टी |
फूलपुर | प्रवीण पटेल फूलपुर के सांसद बने | भारतीय जनता पार्टी |
मीरापुर | चंदन चौहान बिजनौर के सांसद बने | राष्ट्रीय लोकदल |
मझवां | विनोद कुमार बिंद भदोही से भाजपा सांसद बने | निषाद पार्टी |
सीसामऊ | हाजी इरफान सोलांकी को सजा हुई | समाजवादी पार्टी |
यूपी की इन 10 सीटों के गुणा-गणित को करीब से देखा जाए, तो भाजपा नीत NDA गठबंधन और विपक्षी गठबंधन INDIA दोनों बराबर और एक दूसरे को कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं। जिन 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से 5 सीट पर अब तक अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी का कब्जा था, तो वहीं तीन पर भाजपा और एक-एक सीट पर आरएलडी और निषाद पार्टी के विधायक थे। मतलब ये कि मायावती के खाते में इन 10 सीटों में से एक भी सीट नहीं थी। जाहिर है कि ऐसी परिस्थिति में एक सीट पर भी जीत हासिल करना बसपा के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगी।
मायावती ने अपने बयान में क्या कुछ कहा?
बसपा मुख्यालय से जारी एक बयान के मुताबिक, मायावती ने कहा, 'लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में रिक्त हुई 10 विधानसभा सीटों पर प्रस्तावित उपचुनावों के लिए अभी चुनाव की तारीख की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन इसे लेकर सरगर्मी लगातार बढ़ रही है।' मायावती ने कहा कि खासकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसकी सरकार द्वारा इसे (उपचुनाव को) प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेने के कारण इन उपचुनावों में लोगों की रुचि काफी बढ़ी है, लिहाज़ा बसपा ने भी इन उपचुनावों में सभी (10) सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने और पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
बसपा प्रमुख ने इस बयान की प्रति अपने आधिकारिक 'एक्स' खाते पर भी साझा की। उन्होंने आग्रह किया कि चूंकि, बसपा गरीबों, वंचितों और पीड़ितों की पार्टी है तथा दूसरे दलों की तरह यह बड़े पूंजीपतियों और धन्नासेठों के सहारे और इशारे पर नहीं चलती है, इसलिए इसके समर्थक पूरे तन-मन-धन से सहयोग कर पार्टी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाएं।
10 विधानसभा सीटों पर क्यों हो रहे हैं उपचुनाव?
राज्य में 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की कुल 403 सीटों में से सिर्फ एक सीट जीतने और लोकसभा चुनाव में पूरी तरह सफाया होने के बाद बसपा की उम्मीदें उपचुनावों पर टिकी हैं। आरक्षण को लेकर अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के अंदर उप-वर्गीकरण और ‘क्रीमी लेयर’ संबंधी मामलों के बीच बसपा प्रमुख अब पूरे तेवर में दिख रही हैं। उत्तर प्रदेश के नौ विधायकों ने लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद विधानसभा से इस्तीफा दे दिया जबकि इरफान सोलंकी को एक आपराधिक मामले में सजा सुनाये जाने के बाद उन्हें विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया है। वह कानपुर के सीसामऊ से समाजवादी पार्टी के विधायक थे। इस तरह प्रदेश में विधानसभा की कुल 10 सीटें रिक्त हुई।
विधानसभा के एक अधिकारी ने बताया कि भारत निर्वाचन आयोग को 10 रिक्ति सीटों की सूचना भेज दी गई है। उत्तर प्रदेश की करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, कुंदरकी, गाजियाबाद, खैर, मीरापुर, फूलपुर, मझवां और सीसामऊ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। हालांकि अभी उपचुनाव कार्यक्रम की घोषणा नहीं की गई है।
बुलडोजर राजनीति पर मायावती का निशाना
समीक्षा बैठक में सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधते हुए बसपा प्रमुख ने दावा किया कि प्रदेश व पूरे देश में बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई व पिछड़ेपन आदि को रोक पाने में सरकार की विफलता के कारण लोगों में आक्रोश है और भाजपा लगातार ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही है। मायावती ने आरोप लगाया कहा, 'इन मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए वे (भाजपा) विनाशकारी बुलडोजर राजनीति का सहारा ले रहे हैं और लगातार नए जातिवादी और धार्मिक उन्माद/विवाद पैदा करने का षड्यंत्र रच रहे हैं।'
धर्मांतरण पर नए कानून को मायावती ने कोसा
बसपा प्रमुख ने दावा किया, 'इसी क्रम में धर्मांतरण पर नया कानून (लाया गया है), एससी-एसटी समाज के लोगों का उप-वर्गीकरण और ‘क्रीमी लेयर’ उन्हें विभाजित करने का नया प्रयास है। जातिगत जनगणना को नकारना, मस्जिदों-मदरसों और वक्फ के संचालन में सरकारी हस्तक्षेप किया जा रहा है।' पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जनता का गरीब और मेहनतकश वर्ग स्वाभिमान के साथ जीने, सम्मान के साथ रोजी-रोजगार कमाने की कोशिश कर रहा है लेकिन सरकार इसपर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही है। बसपा प्रमुख ने कहा कि सरकार की नीयत और नीति पर जनता अब आंख बंद कर विश्वास नहीं करती है, लिहाज़ा 'बसपा को अपनी गरीब व सर्वजन हितकारी 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' की नीति और सिद्धांत के जरिए जनता का विश्वास जीतने का प्रयास जारी रखना होगा, जिसका चुनावी लाभ भी जरूरी एवं स्वाभाविक है।'
मायावती ने यह भी पूछा कि जब एससी-एसटी वर्ग के लोगों को आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की सुविधा दी गई है, तब इसमें ‘क्रीमी लेयर’ का सवाल ही कहां से पैदा होता है? उन्होंने कहा कि इन समुदायों के लोगों के उप-वर्गीकरण की सोच अनुचित है। कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश सरकार पर हमला बोलते हुए मायावती ने कहा, 'कानून-व्यवस्था के मामले में सरकार की सख्ती कागजों पर ज्यादा है और भाजपा के लोगों पर यह बेअसर है।'
राज्य के कई जिलों में बाढ़ के मामले को उठाते हुए उन्होंने कहा कि बाढ़ से कई लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इससे पहले रविवार को मायावती ने दावा किया कि आरक्षण की रक्षा करने का वादा करके लोकसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस एससी और एसटी के भीतर उप-वर्गीकरण के पक्ष में दिखती है और इन समुदायों में ‘क्रीमी लेयर’ को आरक्षण के लाभ से बाहर रखने के मुद्दे पर अब तक अपनी आवाज नहीं उठा रही है।
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