क्या आनंद मोहन की रिहाई से नीतीश और महागठबंधन को होगा फायदा, बाहुबली में कितना दम?
इसे आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मद्देनजर नीतीश कुमार का बड़ा दांव माना जा रहा है। 2024 में उनका मुकाबला सीधे बीजेपी और पीएम मोदी से है।
क्या आनंद मोहन की रिहाई से महागठबंधन को होगा फायदा
Anand Mohan Released: बिहार की सियासत इन दिनों गर्म है। विधानसभा चुनाव से पहले ही यहां सियासी गलियारों में हलचलें बढ़ गई हैं। मामला बाहुबली आनंद मोहन से जुड़ा हुआ है। 1994 में गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की मॉब लिंचिंग मामले में जेल में बंद आनंद मोहन को रिहाई मिल गई। आज ही उन्हें सहरसा जेल से रिहा किया गया है। आनंद मोहन की रिहाई के लिए नीतीश सरकार ने नियमों में बदलाव कराया जिसके बाद ये बाहुबली आजाद हो गया है।
नीतीश को होगा कितना फायदा
इसे आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मद्देनजर नीतीश कुमार का बड़ा दांव माना जा रहा है। 2024 में उनका मुकाबला सीधे बीजेपी और पीएम मोदी से है। आनंद मोहन की राजपूत वोटों पर पकड़ मानी जाती है। इसका सीधा फायदा नीतीश और महागठबंधन को होगा। लेकिन विरोध भी लगातार बढ़ रहा है। ऐसे मे क्या नीतीश का ये दांव कारगर साबित होगा। कितना फायदा होगा महागठबंधन को, कहीं उनका दांव उल्टा तो नहीं पड़ जाएगा, समझने की कोशिश करते हैं।
आनंद मोहन को रिहा करने के फैसले को कई नजरिए से देखा जा रहा है। उनके राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में शामिल होने की संभावना है, जो उनके प्रतिद्वंद्वी रहे पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा स्थापित पार्टी है। हालांकि उनकी रिहाई के फैसले को समर्थन मिल रहा है। लेकिन आईएएस निकाय सहित जी कृष्णैया के परिजनों ने इस फैसले का विरोध किया है। इसमें विपक्षी भारतीय जनता पार्टी भी शामिल है।
नीतीश को फायदा या नुकसान
सवाल है कि राजपूत फैक्टर से नीतीश और महागठबंधन को कितना फायदा या नुकसान होगा। मोहन को रिहा करने के नीतीश कुमार के इस कदम का विरोध भी हो सकता है। आईएएस निकाय उनकी रिहाई का विरोध कर रहे हैं। कृष्णैया का परिवार भी विरोध कर रहा है। उनकी पत्नी ने पीएम मोदी से गुहार लगाई है। नीतीश से भी फैसले पर दोबारा विचार की अपील की है। दलित समुदाय भी सरकार के फैसले पर सवाल उठा रहा है। अगर ये विरोध बड़ा रूप ले लेता है तो नीतीश को नुकसान भी झेलना पड़ सकता है। चुनाव आते-आते ये बड़ा मुद्दा भी बन सकता है।
आनंद मोहन का सियासी इतिहास
खास बात ये है कि आनंद मोहन की सभी पार्टियों में पैठ है। उनका सियासी इतिहास इसकी गवाही देता है। 1990 में आनंद मोहन ने जनता दल के टिकट पर सहरसा में महिषी से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता। 1993 में उन्होंने बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन किया और 1996 में वे सीहर से भाजपा की मदद से लोकसभा सांसद बने। 1998 में वे लोकसभा सांसद बने और 1999 में राजद प्रत्याशी रहे। 2020 में उनके बेटे चेतन आनंद ने राजद के टिकट पर शिवहर सीट से चुनाव लड़ा और जीता।
ऐसा कहा जाता है कि 1994 में वैशाली में लालू प्रसाद की पार्टी को हराने के बाद उनकी लोकप्रियता में भारी इजाफा हुआ। उन्हें भूमिहार और राजपूत समुदायों को एकजुट करने का श्रेय भी दिया जाता है। उनकी भूमिहार सहित अन्य उच्च जातियों के बीच व्यापक स्वीकार्यता रही है। आरजेडी और जनता दल (युनाइटेड) के नेताओं के बीच एक आम धारणा है कि आनंद मोहन सीमांचल और कोसी क्षेत्रों में वोटों के ध्रुवीकरण में मदद करेंगे।
लोकसभा सीटों पर असर
आनंद मोहन चुनावों पर कितना असर डालेंगे, इसे समझने के लिए जातीय समीकरण जानना भी जरूरी है। राजपूत समुदाय बिहार की आबादी का लगभग 5.2% है। बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से कम से कम आठ सीटों पर राजपूत वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यहां 3-4 लाख राजपूत वर्ग के वोटर हैं। 28 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां राजपूत आबादी 1 लाख से ज्यादा है। 90 के दशक में जब जाति को लेकर हिंसा हो रही थी और मंडल की राजनीति अपने चरम पर थी, तब आनंद मोहन सवर्णों के लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे थे। इसके मद्देनजर कोसी क्षेत्र में बिहार की 10 लोकसभा सीटों और 35 विधानसभा सीटों पर आनंद मोहन की रिहाई का असर पड़ सकता है जहां राजपूत मतदाता अधिक संख्या में हैं।
बीजेपी का सियासी दांव
आनंद मोहन की रिहाई के बाद उनके राजद में शामिल होने की चर्चा के बीच बीजेपी ने नीतीश को उलझाने की कोशिश की है। बीजेपी ने जेल में बंद एक और राजपूत नेता प्रभुनाथ सिंह की रिहाई की मांग की है। बिहार में सवर्ण वर्ग बीजेपी का समर्थक माना जाता है। राजपूत वर्ग में भी उसकी अच्छी पैठ है। ऐसे में आनंद मोहन का महागठबंधन के साथ जुड़ना बीजेपी के लिए चिंता की वजह बन सकता है। इस लिहाज से देखें तो अगले कुछ दिन बिहार के लिए अहम होंगे और सियासी गलियारों में बड़ी हलचल देखने को मिल सकती है।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | एक्सप्लेनर्स (explainer News) और चुनाव के समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |
करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव ...और देखें
© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited