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दुनिया में फिर होगी न्यूक्लियर हथियारों की रेस? सुरक्षा पर ट्रंप के रुख के बाद नए पार्टनर की तलाश में हैं यूरोपीय देश

Nuclear Arms Race : यूरोप के ज्यादातर देश नाटो के सदस्य देश हैं। नाटो की सुरक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च अमेरिका करता आया है। अब यह सुरक्षा खर्च ट्रंप को बेवजह लग रहा है। उनका मानना है कि सदस्य देशों को अपनी सुरक्षा पर खर्च खुद करना चाहिए। ऐसे में यूरोप के देशों को लगता है कि हो सकता है कि आने वाले दिनों में ट्रंप नाटो से पल्ला झाड़ लें। अगर ऐसा हुआ तो उनकी सुरक्षा का क्या होगा?

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यूरोप के कई देश चाहते हैं अपना परमाणु हथियार।

Nuclear Arms Race : इन दिनों सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, राजनीति हर जगह उथल-पुथल सी मची हुई है। दूसरी बार अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप का सुरक्षा पर जो रुख है, उससे यूरोप और पश्चिमी देश हिल गए हैं। अपनी सुरक्षा को लेकर वे डरे हुए हैं। अब तक ये देश अमेरिका की सुरक्षा अम्ब्रेला के नीचे खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। यूक्रेन और नाटो के बारे में ट्रंप के रुख और रवैये ने उन्हें नया सुरक्षा पार्टनर और अलायंस यानी गठजोड़ बनाने के लिए मजबूर कर रहा है। सुरक्षित भविष्य की इनकी तलाश परमाणु हथियारों की तरफ धकेल रही है। ये देश अपना परमाणु कार्यक्रम शुरू करना चाहते हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि ये देश अपने परमाणु कार्यक्रमों यदि आगे बढ़े तो दुनिया में परमाणु हथियारों की रेस शुरू हो जाएगी और जियोपॉलिटिक्स पर इसका बहुत गहरा असर पड़ेगा।

नाटो पर अमेरिका का सबसे ज्यादा खर्च

यूरोप के ज्यादातर देश नाटो के सदस्य देश हैं। नाटो की सुरक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च अमेरिका करता आया है। अब यह सुरक्षा खर्च ट्रंप को बेवजह लग रहा है। उनका मानना है कि सदस्य देशों को अपनी सुरक्षा पर खर्च खुद करना चाहिए। ऐसे में यूरोप के देशों को लगता है कि हो सकता है कि आने वाले दिनों में ट्रंप नाटो से पल्ला झाड़ लें। अगर ऐसा हुआ तो उनकी सुरक्षा का क्या होगा? ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ही यूरोप में शक्तिशाली सेना वाले देश हैं। इनमें भी फ्रांस और ब्रिटेन परमाणु हथियार संपन्न देश हैं। बाकी देशों के सुरक्षा के नाम पर बस चलती-फिरती फौज है। इन देशों के पास मजबूत सेना और आधुनिक हथियारों की भयंकर कमी है। इन्हें रूस का डर भी सता रहा है। यूक्रेन का मसला निपटाने के बाद पुतिन यदि अपने पड़ोस के यूरोपीय देश की तरफ बढ़ते हैं तो उनका मुकाबला करने के लिए इनके पास न तो तगड़ी सेना है और न ही आधुनिक हथियार।

फ्रांस पहले से अमेरिका पर भरोसा नहीं करता

ये सारी बातें इन्हें परेशान करने लगी हैं। ऐसे में ये देश अब आपस में अपना न्यूक्लियर सहयोग शुरू करने पर बातचीत कर रहे हैं। यूरोप के कई देश चाहते हैं कि इस नए सुरक्षा अलायंस की अगुवाई फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश करें क्योंकि अमेरिका पर से इनका भरोसा डिग गया है। इन्हें लगने लगा है हमला होने पर अमेरिका इनका बचाव करने के लिए नहीं आएगा। फ्रांस तो काफी पहले से ही अमेरिका पर भरोसा नहीं करता है। वह मानता है कि अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी। इसलिए उसने दशकों पहले परमाणु हथियार बना लिए। चूंकि ब्रिटेन, फ्रांस का पड़ोसी देश है और अपनी बड़ी सीमा उसके साथ साझा करता है। ऐसे में वह फ्रांस के साथ अपना परमाणु सहयोग बढ़ाना चाहता है।

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