UNSC के नए स्थायी सदस्यों को क्या वीटो पावर मिलेगा? सवाल खड़े कर रही P-5 देशों की चुप्पी

Veto Power: यूएन और यूएनएससी में सुधार की मांग क्यों की जा रही है तो इसका जवाब है कि जिस उद्देश्य को लेकर यूएन की स्थापना हुई वह आज अपने दायित्वों को पूरा कर पा रहा है। अपने उद्देश्यों, कर्तव्यों और दायित्यों को पूरा करने में यूएन एक निष्प्रभावी संस्था बन गया है। इसमें सुधार लाने की बात लंबे समय से कही जा रही है।

यूएनएससी में चल रही सुधार की बात।

मुख्य बातें
  • अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन के पास है वीटो पावर
  • इन्हों पी-5 देश भी कहा जाता है, इन्हें वीटो करने का अधिकार
  • स्थायी सदस्यता की कतार में भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील

UNSC Veto Power: दुनिया में कहीं युद्ध तो कहीं संघर्ष चल रहा है, विश्व की शांति और सुरक्षा खतरे में है। दुनिया को इस तरह के खतरों, युद्ध और संघर्षों से दूर रखने के लिए 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ और इसी का एक महत्वपूर्ण अंग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जिसे यूएनएससी कहा जाता है, वह भी अस्तित्व में आया। यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्य -अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन हैं, इन्हें पी-5 कहा जाता है। इसके अलावा 10 अस्थायी सदस्य हैं जो हर दो साल पर बदलते रहते हैं। भारत कई बार अस्थायी सदस्य रह चुका है लेकिन स्थायी सदस्य बनने की चाहत अभी पूरी नहीं हो पाई है। स्थायी सदस्यता पाने के लिए भारत पूरी जोर लगा रहा है लेकिन चीन हर बार उसकी राह में अडंगा लगाता आ रहा है।

वीटो पावर मिलने से ताकत बढ़ जाती है

चूंकि अब चार देश अमेरिका, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ज्यादा मुखर होकर और ऊंची आवाज में पैरोकारी कर रहे हैं ऐसे में भारत स्थायी सदस्यता पाने के और करीब पहुंचा है। स्थायी बनने से भारत की ताकत काफी बढ़ जाएगी। पहला यह कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का सीधा दखल हो जाएगा। हर बड़े मसले पर भारत की राय मायने तो रखेंगे। कई तरह के कूटनीतिक फायदे मिलने शुरू हो जाएंगे। यही नहीं पाकिस्तान या दूसरे पड़ोसी देशों से भी डील करने के लिए भारत के पास कई विकल्प होंगे।

अभी निष्प्रभावी संस्था बन गया है यूएन

सवाल है कि आखिर यूएन और यूएनएससी में सुधार की मांग क्यों की जा रही है तो इसका जवाब है कि जिस उद्देश्य को लेकर यूएन की स्थापना हुई वह आज अपने दायित्वों को पूरा कर पा रहा है। अपने उद्देश्यों, कर्तव्यों और दायित्यों को पूरा करने में यूएन एक निष्प्रभावी संस्था बन गया है। इसमें सुधार लाने की बात लंबे समय से कही जा रही है। बहुध्रुवीय दुनिया और नई ताकत के रूप में देशों के उभरने के बाद यूएनएससी के स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। सबसे बड़ी दावेदारी भारत की ओर से पेश की जा रही है। भारत के अलावा जर्मनी, जापान, ब्राजील और अफ्रीका के एक देश को इसमें शामिल करने की बात है। बदले हुए अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और परिस्थितियों के अनुरूप, देशों के ज्यादा संतुलित प्रतिनिधित्व के लिए यूएन को ज्यादा प्रभावशाली बनाने की जरूरत है। इसके स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या में बढ़ाने की जरूरत है।

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