El Nino की वापसी: पूरी दुनिया में 2023 में पड़ेगी प्रचंड गर्मी, 2016 का टूट सकता है रिकॉर्ड
प्रशांत महासागर में ला नीना (La Nina) मौसम पैटर्न के तीन साल बाद दुनिया इस साल के अंत में एल नीनो यानि गर्म मौसम की वापसी देखेगी। इसके चलते पूरी दुनिया में तापमान बढ़ेगा।
2023 में पड़ेगी प्रचंड गर्मी
El Nino And Rise in Temperature: इस साल भारत ही नहीं, दुनियाभर में प्रचंड गर्मी पड़ने का अनुमान है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस साल का तापमान पुराने रिकॉर्ड तोड़ेगा। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और एल नीनो (El Nino) की वापसी से दुनिया 2023 या 2024 में गर्मी की प्रचंड मार झेल सकती है है। जलवायु मॉडल बताते हैं कि प्रशांत महासागर में ला नीना (La Nina) मौसम पैटर्न के तीन साल बाद दुनिया इस साल के अंत में एल नीनो यानि गर्म मौसम की वापसी देखेगी। इसके चलते पूरी दुनिया में तापमान बढ़ेगा। एल नीनो के उलट ला नीना आम तौर पर वैश्विक तापमान को कम करता है।
सबसे गर्म वर्ष रहा 2016
अब तक दुनिया का सबसे गर्म वर्ष 2016 रहा था, जो मजबूत एल नीनो प्रभाव के कारण हुआ था। हालांकि जलवायु परिवर्तन के दौर में एल नीनो के बिना भी तापमान चरम पर पहुंचा है। पिछले आठ साल रिकॉर्ड किए गए दुनिया के आठ सबसे गर्म साल थे। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण लगातार तापमान बढ़ रहा है। इम्पीरियल कॉलेज लंदन के ग्रांथम इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ लेक्चरर फ्रेडरिक ओटो के मुताबिक, एल नीनो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को और बिगाड़ सकते हैं जिसका कई देश पहले से ही सामना कर रहे हैं। इसमें अत्याधिक गर्मी, सूखा और जंगल की आग जैसी घटनाएं शामिल हैं।
ओटो कहते हैं, अगर एल नीनो विकसित होता है, तो 2016 की तुलना में 2023 अधिक गर्म होगा। दुनिया लगातार गर्म हो रही है क्योंकि मनुष्य जीवाश्म ईंधन जलाना जारी रखे हुए है। यूरोपीय संघ के कोपरनिकस के वैज्ञानिकों ने गुरुवार को एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें बताया गया कि दुनिया ने पिछले साल चरम गर्मी का सामना किया। ये पांचवां सबसे गर्म साल था। यूरोप ने 2022 में सबसे अधिक गर्मी का अनुभव किया था, जबकि जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक बारिश पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ का कारण बनी। इसी तरह फरवरी में अंटार्कटिक समुद्री बर्फ का लेवल रिकॉर्ड स्तर पर कम हो गया है।
कॉपरनिकस ने कहा कि दुनिया का औसत वैश्विक तापमान अब पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में 1.2C अधिक है। दुनिया के अधिकांश प्रमुख उत्सर्जक अपने शुद्ध उत्सर्जन को शून्य तक कम करने की प्रतिज्ञा के बावजूद, पिछले साल वैश्विक CO2 उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही।
क्या है एल नीनो और ला नीना
एल नीनो शब्द का मूल अर्थ 'बच्चा' है। इसका कारण ये है कि यह धारा क्रिसमस के आसपास प्रवाहित होने लगती है और इसलिए यह नाम बेबी क्राइस्ट के संदर्भ में दिया गया है। एल नीनो के समान एक और प्राकृतिक घटना है ला नीना। ला नीना शब्द का अर्थ है 'छोटी लड़की'। इसे अल नीनो की घटना के विपरीत माना जाता है क्योंकि इसके कारण प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों में समुद्र का पानी का ठंडा हो जाता है। इन दोनों के कारण समुद्री बदलावों के साथ-साथ वायुमंडलीय हालात में भी बदलाव होता है। यानि ला नीना का असर होने पर ठंड अधिक पड़ती है। जबकि एल नीनो के असर से तापमान बढ़ता है।
एल नीनो को ऐसे समझें
एल नीनो को एक प्राकृतिक घटना के रूप में समझा जा सकता है जिसमें समुद्र का तापमान विशेष रूप से प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों में बढ़ जाता है। एल नीनो प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र की उस समुद्री घटना का नाम है, जो दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित इक्वाडोर और पेरु देशों के तटीय समुद्री जल में कुछ सालों के अंतराल पर घटित होती है। यह समुद्र में होने वाली उथल-पुथल है और इससे समुद्र के सतही जल का ताप सामान्य से ज्यादा हो जाता है।
एल नीनो का असर 9-12 महीने तक
एल नीनो का असर आमतौर पर 9-12 महीने तक रहता है जबकि ला नीना आमतौर पर 1-3 साल तक रहता है। एल नीनो तब होता है जब पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में भूमध्य रेखा के साथ गर्म पानी का निर्माण होता है। समुद्र की गर्म सतह वातावरण को भी गर्म करती है, जो नमी से भरपूर हवा को उठने और बारिश का तूफान बनने में सहायक होती है। एल नीनो आमतौर पर पूरे भारत में खराब दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश से भी जुड़ा होता है। 2009, 2014, 2015 और 2018 में देश ने एल नीनो का असर देखा था। एल नीनो के कारण खराब हुए मानसून का असर भारत के फसल उत्पादन और कृषि क्षेत्र पर भी पड़ता है। इसके कारण गंभीर सूखा और खाद्य असुरक्षा, बाढ़, बारिश और तापमान में वृद्धि के साथ स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ती हैं। कुपोषण, गर्मी से बीमारियां और श्वसन रोग इनमें प्रमुख हैं।
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