Pakistan: 44 साल पहले जुल्फिकार अली भुट्टो को हुई थी फांसी, आज इमरान खान की जिंदगी खतरे में

ये जुल्फिकार अली भुट्टो ही थे जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर घोषणा की थी कि वे भारत के खिलाफ 1,000 साल तक युद्ध लड़ेंगे, रक्षा के लिए युद्ध करेंगे। लेकिन उनका दुखद अंत हुआ।

Zulfikar Ali Bhutto Hanged

जुल्फिकार अली भुट्टो को 1979 में दी गई थी फांसी

Zulfikar Ali Bhutto Hanging Explained: आज पाकिस्तान हिंसा की आग में जल रहा है। पूर्व पीएम इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थक सड़कों पर उतर आए हैं और हिंसा का दौर शुरू हो गया है। उनकी पार्टी पीटीआई और उनके समर्थक आशंका जता रहे हैं कि इमरान की हत्या हो सकती है। पाकिस्तान में इस तरह की अराजक स्थिति नई बात नहीं है। यहां सेना और आईएसआई से टकराने वाले हर बड़े नेता का यही हाल होता है। जानिए जुल्फिकार अली भुट्टो की कहानी।

44 साल पहले भुट्टो को हुई थी फांसी

आज से ठीक 44 साल पहले 4 अप्रैल 1979 के दिन पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने फांसी पर लटका दिया था। ये वहीं तानाशाह था जिसे भुट्टो ने सीनियर सैन्य अधिकारियों को नजरअंदाज कर सेना प्रमुख बनाया था। भुट्टो के जीवन का बहुत ही दुखद अंत हुआ था। जिस जिया उल हक पर उन्हें इतना भरोसा था, उसी ने भुट्टो को काल कोठरी में डाल दिया फिर जान ही ले ली। भारत के खिलाफ बड़े-बड़े दावे करने वाले भुट्टो का अंत दर्दनाक रहा।

भारत के प्रति भुट्टो का रवैया दुश्मनी और घोर अविश्वास का था। 1965 के युद्ध की मुनादी वाले ऑपरेशन जिब्राल्टर और ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के पीछे भुट्टो का ही दिमाग था। ये वही भुट्टो थे जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर घोषणा की थी कि वे भारत के खिलाफ 1,000 साल तक युद्ध लड़ेंगे, रक्षा के लिए युद्ध करेंगे। 1943 में जब वह 15 साल के थे तब भुट्टो ने मोहम्मद अली जिन्ना को लिखा था- "मुसलमानों को यह महसूस करना चाहिए कि हिंदू कभी भी हमारे साथ एकजुट नहीं हो सकते हैं और न ही कभी एकजुट होंगे, वे हमारे कुरान और हमारे पैगंबर के सबसे घातक दुश्मन हैं।" बाद के दशकों में पाकिस्तान में अधिक प्रभावशाली पदों पर कब्जा करने के साथ ही हिंदुओं और भारत के प्रति उनका ये शत्रुता वाला रवैया उनके फैसलों में दिखने लगा।

ऑपरेशन जिब्राल्टर का मास्टरमाइंड

अगस्त 1965 में पाकिस्तान ने मुस्लिम-बहुल क्षेत्र में भारत सरकार के खिलाफ विद्रोह को भड़काने के लिए सीमा पार से लगभग 30,000 लोगों को जम्मू और कश्मीर में धकेलने का फैसला किया। इसे ऑपरेशन जिब्राल्टर का नाम दिया गया। हालांकि, भारतीय सेना को जल्द ही घुसपैठियों की भनक लग गई और उन पर टूट पड़ी। इसके बाद ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम हुआ, जहां पाकिस्तान ने जम्मू से कश्मीर जाने वाले आपूर्ति मार्गों को काटने के प्रयासों में अखनूर पुल पर कब्जा करने की कोशिश की। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अगुवाई में भारत ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करके पाकिस्तान के पंजाब में मोर्चा खोलकर करारा जवाब दिया। इस तरह 1965 का युद्ध पाकिस्तान के लिए बड़ी हार के साथ खत्म हुआ।

ऑपरेशन जिब्राल्टर के सबसे मजबूत समर्थकों में से एक जुल्फिकार अली भुट्टो ही थे। उस समय उनका सोचना था कि 1962 में चीन से हार, जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु और अपनी आंतरिक समस्याओं से भारत कमजोर हो गया होगा। इससे पहले कि भारत अपने सशस्त्र बलों को मजबूत कर ले, पाकिस्तान को जबरन कश्मीर पर कब्जा जमा लेना चाहिए। लेकिन भुट्टो और उनके जनरल अयूब खान का आकलन गलत साबित हुआ। पाकिस्तान और भुट्टो की जमकर किरकिरी हुई।

भारत के खिलाफ 1,000 साल तक युद्ध लड़ेंगे...

1965 में भुट्टो ने यूएन में भाषण दिया। कश्मीर पर उन्होंने कहा, जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है और कभी भी भारत का अभिन्न अंग नहीं रहा है। जम्मू और कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवादित क्षेत्र है। यह भारत से कहीं अधिक पाकिस्तान का हिस्सा है। जम्मू और कश्मीर के लोग रक्त, मांस और जीवन में पाकिस्तान के लोगों का हिस्सा हैं। हमारे सगे-संबंधी, संस्कृति में, भूगोल में, इतिहास में और हर तरह से और हर रूप में वे पाकिस्तान के लोगों का हिस्सा हैं।

उन्होंने कहा, हम 1,000 साल तक युद्ध लड़ेंगे, ये रक्षा का युद्ध होगा। दुनिया को पता होना चाहिए कि पाकिस्तान के 10 करोड़ लोग अपनी कसम और वादों से कभी पीछे नहीं हटेंगे। भारतीय अपने वादों और कसमों को छोड़ सकते हैं, हम अपने वादों को कभी नहीं छोड़ेंगे। लेकिन ये भाषण भुट्टो का बड़बोलापन ही साबित हुआ। 1000 साल तक युद्ध लड़ने की बात कहने वाले भुट्टो इसके बाद महज 14 साल ही जी सके।

1971 की हार और यूएन में भाषण

1971 में पाकिस्तान को भारत के साथ युद्ध में फिर करारी हार मिली। नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ। भुट्टो की लोकप्रियत जमीन पर आई गई। तब भुट्ट ने ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक और नाटकीय भाषण से अपनी लाज बचाने की कोशिश की। काउंसिल को यह बताने के बाद कि उनके 11 वर्षीय बेटे ने उन्हें आत्मसमर्पण दस्तावेज के साथ वापस नहीं आने के लिए कहा है, भुट्टो ने कहा- अध्यक्ष महोदय, मैं चूहा नहीं हूं। मैंने अपने जीवन में कभी भागा नहीं हूं। मैंने हत्या की कोशिशों का सामना किया है, मैंने कारावास का सामना किया है। आज मैं भाग नहीं रहा हूं, लेकिन मैं आपकी सुरक्षा परिषद छोड़ रहा हूं। मैं अपने देश के लिए यहां एक क्षण और रुकना अपमानजनक समझता हूं। कोई भी निर्णय थोपना, आक्रामकता को वैध बनाना, कब्जे को वैध बनाना, मैं इसका पक्ष नहीं बनूंगा। हम लड़ेंगे। मेरा देश मेरे लिए परेशान है। मैं यहां सुरक्षा परिषद में अपना समय क्यों बर्बाद करूं?

जिया उल हक ने किया तख्तापलट

एक मार्च 1976 को भुट्टो ने थ्री स्‍टार जनरल लेफ्टिनेंट जनरल जिया को सेना प्रमुख नियुक्‍त कर दिया। जिया एक वन स्‍टार रैंक के आर्मी ऑफिसर बन चुके थे। छह ऑफिसर्स को नजरअंदाज कर जिया को सेना की कमान दी गई थी। इस नियुक्ति से जमकर विवाद हुआ। लेकिन भुट्टो टस से मस नहीं हुए। भुट्टो को लगता था कि जिया एक कट्टर धार्मिक जनरल हैं और एक ऐसे आर्मी ऑफिसर हैं जिसे राजनीति में कोई दिलचस्‍पी नहीं हैं। उनकी ये सोच पूरी तरह गलत साबित हुई। भुट्टो के पर्सनल सेक्रेटरी गुलाम मुस्‍तफा खार ने भुट्टो को ऐसा न करने की सलाह भी दी थी, लेकिन भुट्टो नहीं माने।

जिया ने खींचे हाथ, भुट्टो को हुई फांसी

जिया ने भुट्टो और उनकी सरकार की कमजोरी पकड़ ली थी। जिया पर भुट्टो पूरी तरह भरोसा करते थे। इसका फायदा जनरल हक ने उठाया और पांच जुलाई 1977 को देश में मार्शल लॉ लगा दिया। मार्शल लॉ के बाद जिया उल हक ने सभी राजनीतिक पार्टियों को भी खत्‍म कर दिया। जिया ने भुट्टो पर विपक्षी नेता नवाज मोहम्‍मद अहमद खान की हत्‍या का आरोप लगाते हुए उन्हें गिरफ्तार करवा कर जेल में डाल दिया। भुट्टो को हत्‍या का दोषी भी साबित कर दिया गया। भुट्टो को अपील करने तक का अधिकार भी नहीं दिया गया। पाकिस्‍तान के राष्‍ट्रपति बन चुके जिया उल हक ने इस पूरे मामले में हस्‍तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।

18 मार्च 1978 को लाहौर हाई कोर्ट ने भुट्टो को मौत की सजा सुनाई। भुट्टो आखिरी दिन तक यकीन नहीं कर पा रहे थे कि उनके पसंदीदा जनरल जिया ने उन्हें मौत के मुंह में पहुंचा दिया था। चार अप्रैल 1979 को भुट्टो को जब फांसी के लिए ले जाया जा रहा था, तब उन्‍हें अहसास हुआ कि उनके चुने हुए जनरल ने ही उनका जीवन वक्त से पहले ही खत्म कर दिया है।

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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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