ये है 17 करोड़ रुपए का एक इंजेक्शन: जानें, कौन सी बीमारी में आता है काम और क्यों है खास
Zolgensma Injection: जोलजेंस्मा को विशेष रूप से दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए तैयार किया गया है। हालांकि अभी तक जोलजेंस्मा को न तो भारत में मंजूरी मिली है और न ही इसका निर्माण यहां किया जाता है।
Zolgensma Injection: 17 करोड़ रुपए का एक इंजेक्शन।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर एसएमए से पीड़ित राज्य के 15 महीने के बच्चे के इलाज के लिए मदद मांगी है। भारत में अभी तक इसे मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन अंदरूनी सूत्रों का अनुमान है कि पिछले कुछ वर्षों में लगभग 90 बच्चों को जोलजेंस्मा प्राप्त हुआ है। यह देखते हुए कि बहुत ज्यादा अमीर लोगों को छोड़कर सभी के लिए एकल खुराक वाला यह इंजेक्शन पहुंच से बाहर है, ऐसे में इसे अधिकांशत: मानवीय सहायता कार्यक्रमों या क्राउड फंडिंग के माध्यम से जुटाया जाता है। डॉक्टर के पर्चे और सरकार की मंजूरी के बाद दवा का आयात किया जा सकता है।
दुनिया भर में 10,000 जीवित जन्मे शिशुओं में से एक को एसएमए होने की आशंका रहती है और शिशुओं में यह मृत्यु का प्रमुख कारण है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नयी दिल्ली में बाल तंत्रिकारोग विशेषज्ञ शेफाली गुलाटी ने कहा, “पश्चिम में, एसएमए की वाहक आवृत्ति - जीन ले जाने वाले लोगों की संख्या - 50 में से 1 है। हालांकि, एक हालिया भारतीय अध्ययन में, एसएमए वाहक आवृत्ति की पहचान 38 में से 1 के रूप में की गई थी। उत्तर भारत के एक अन्य अध्ययन में यह 30 में से 1 पाया गया।” जैसे-जैसे बीमारी की घटनाओं और एक इंजेक्शन की भारी लागत पर चिंता बढ़ती जा रही है, विशेषज्ञ यह समझा रहे हैं कि वास्तव में यह क्या है:
जोलजेंस्मा क्या है?
स्विटजरलैंड की दवा कंपनी नोवार्टिस द्वारा विकसित जोलजेंस्मा एसएमए के उपचार के लिये बनाई गई है। एसएमए, मोटर न्यूरॉन्स - पूरे शरीर में जटिल सर्किट जो ग्रंथियों और मांसपेशियों की गतिविधियों की अनुमति देते हैं- को प्रभावित करने वाली एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है। इसमें मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और बहुत खराब स्थिति में लकवा हो जाता है या कई बार मरीज की मौत भी हो जाती है। हैदराबाद स्थित यशोदा अस्पताल में बाल न्यूरोलॉजी विभाग में कंसलटेंट डॉ. एन. वर्षा मोनिका रेड्डी बताती हैं, “जोलजेंस्मा मोटर न्यूरॉन कोशिकाओं में एसएमएन जीन की एक कार्यात्मक प्रतिलिपि प्रदान करता है, जिससे एसएमए वाले बच्चों में मांसपेशियों की गति और कार्य में सुधार होता है।”
यह इतना महंगा क्यों है?
बाल रोग विशेषज्ञ विभु क्वात्रा ने कहा कि भारत में जोलजेंस्मा की लागत लगभग 17 करोड़ रुपये (21 लाख अमेरिकी डॉलर) है (टैक्स घटाकर) जो इसमें शामिल व्यापक शोध और विकास के कारण है। दिल्ली के रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पीटल से संबद्ध क्वात्रा ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “इसके सीमित बाजार आकार और जीवन बचाने की क्षमता इसकी ऊंची कीमत की वजह है।” रेड्डी ने कहा, “जोलजेंस्मा इस बीमारी के लिये सबसे प्रभावी दवा है। इसकी अत्यधिक लागत का कारण दवा निर्माण उद्योग में इसका छोटा बाजार आकार और जीवन बचाने की क्षमता है।”
कौन इस्तेमाल कर सकता है?
जोलजेंस्मा को विशेष रूप से दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए तैयार किया गया है, जिनमें आनुवंशिक परीक्षण के माध्यम से एसएमए का निदान किया जाता है। गुलाटी कहते हैं, “मेरी जानकारी के अनुसार, पूरे देश में लगभग 90 से अधिक रोगियों का इलाज जोलजेंस्मा द्वारा किया गया है। इनमें से 75 से 80 प्रतिशत को मानवीय पहुंच कार्यक्रम के माध्यम से और बाकी को क्राउड फंडिंग या कर्मचारी लाभार्थी योजना के सहयोग से खुराक मिली है।”
यह कितनी असरदार है?
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने 24 मई, 2019 को एसएमए के इलाज के लिए ओनासेमनोजीन एबेपरवोवेक को मंजूरी दे दी। इस दवा का विपणन जोलजेंस्मा के नाम से किया जाता है। क्वात्रा का मानना है कि यह इंजेक्शन बीमारी का अंतिम समाधान नहीं है, लेकिन यह बीमारी की प्रगति को काफी हद तक रोक देता है। उन्होंने बताया, “आपके पास केवल दो वर्ष तक का समय है जब आप इस दवा का उपयोग कर सकते हैं। तो, निश्चित रूप से, कोई पूर्ण समाधान नहीं है...यह एक तरह से बीमारी को सीमित करती है।”
भारत में स्थिति
रेड्डी ने कहा, अभी तक, जोलजेंस्मा को न तो भारत में मंजूरी मिली है और न ही इसका निर्माण यहां किया जाता है। उन्होंने कहा, “एसएमए से पीड़ित मरीज डॉक्टर की सिफारिश और सरकारी मंजूरी के बाद अमेरिका से दवा आयात कर सकते हैं। भारत में, स्वीकृत एसएमए उपचार विकल्प एवरीस्डी है, जो स्विस बहुराष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा कंपनी रोश द्वारा निर्मित है।”
दुष्प्रभाव क्या हैं?
सबसे आम दुष्प्रभाव बढ़े हुए यकृत एंजाइम और उल्टी हैं। रेड्डी ने कहा, जोलजेंस्मा देने के बाद कम से कम तीन महीने तक मरीज के लीवर पर नजर रखी जानी चाहिए।
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