Blood Cancer Treatment: बोन मैरो कैंसर क्या होता है? एक्सपर्ट से जानिए इसके प्रकार, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट

कैंसर कई प्रकार के होते हैं। ब्लड कैंसर भी उनमें से एक है। मेडिकल भाषा में इसे ल्यूकेमिया कहते हैं। ब्लड कैंसर भी कई प्रकार के होते हैं। अधिकांश प्रकार के रक्त कैंसर ( Blood Cancer) बॉन मैरो में शुरू होते हैं। यह मुलायम स्पंजी ऊतक हड्डियों (Soft Spongy Tissue) में पाया जाता है, जहां ब्लड सेल्स बनती हैं।

Causes of Blood Cancer in Hindi: ब्लड कैंसर वह कैंसर है जो ज़्यादातर बोन मेरो में उत्त्पन्न होता है। बोन मेरो वह स्ट्रक्चर है जो हमारी मेजर बोन्स में रहता है और उसमे ब्लड का प्रोडक्शन होता है और अगर इन प्रोडक्शन वाले सेल्स में कोई दिक्कत हो जाए, तो यह बढ़ने लगते हैं और बोन मेरो में जगह घेरने लगते है, क्योंकि बोन मैरो में जगह लिमिटेड होती है तो बोन मैरो अपना काम ठीक से नहीं कर पाती और इसी से ब्लड कैंसर ओरिजिनेट होता है।
गुरुग्राम स्थित मेदांता के कैंसर संस्थान के हेमेटो ऑन्कोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर डॉ नितिन सूद ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बातचीत में बताया कि बोन मैरो का काम हीमोग्लोबिन बनाना होता है, जो ब्लड और ब्लड सेल्स के माध्यम से बॉडी में ऑक्सीजन ट्रांस पोर्ट करता है, इसका दूसरा काम है, व्हाइट ब्लड सेल्स बनाना जो हमे इन्फेक्शन से बचाते है, और प्लेटलेट्स बनाना जो हमें ब्लीडिंग या चोट से बचाता है। अगर इनमें से कोई सेल की शरीर में कमी हो जाती है तो वह सिम्पटम्स प्रेज़ेंट करने लगते हैं।
अगर एनीमिया होता है, यानी की रेड सेल्स की कमी है, हिमोग्लोबिन की कमी है तो मरीज थकान या कमजोरी नोटिस करता है। अगर व्हाइट सेल्स कम होते हैं तो उसे बार बार इन्फेक्शन होने लगता है। अगर प्लेटलेट कम होते हैं तो ब्लीडिंग या चोट हो सकती है। क्योंकि ये ब्लड कैंसर बोन मैरो में उत्पन्न होता है तो यह कभी कभी बोन को अंदर से डैमेज कर सकता है।
उसके सिम्पटम्स हड्डी पर या फटीग के थ्रू प्रेसेंट करते हैं। तीन मुख्य तरह के बोन मैरो के कैन्सर होते हैं - ल्यूकीमिया, लिंफोमा और मायलोमा। तीनों तरह के कैंसर के सिम्पटम्स अलग अलग होते हैं और इनकी टेस्टिंग और ट्रीटमेंट भी अलग होता है। ल्यूकीमिया एक तरह का ब्लड कैंसर है और जो हमारे व्हाइट सेल्स की इम्प्रॉपर ग्रोथ की वजह से उत्पन्न होता है, इसके सिम्पटम्स होते है - इंफेक्शन का बार बार होना, प्लेटलेट की कमी, अनेमिया और हीमोग्लोबिन की कमी होना।

कॉमन टाइप के ल्यूकेमिया - Common Type Leukemia

कॉमन टाइप के ल्यूकेमिया है वो है - एक्यूट ल्यूकेमिया वो बहुत तेजी से फैलते हैं और बहुत दिन तक छुपे नहीं रहते। एक्यूट ल्यूकेमिया में भी दो तरह के ल्यूकेमिया होते हैं - एक्यूट मायलोब्लास्टिक लूकीमिया और एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया। ल्यूकेमिया के दूसरे टाइप में कैंसर धीरे धीरे ग्रो करता हैं और धीरे धीरे अपने सेम्पल प्रोड्यूस करते हैं। तो हो सकता है के सिम्पटम्स काफी दिन से चल रहे हो और कुछ महीने में या कुछ साल निकल जाए इससे पहले के मरीज लक्षण नोटिस करें।

क्रोनिक ल्यूकेमिया के प्रकार - Types of Chronic Leukemia

क्रोनिक ल्यूकेमिया में दो प्रकार होते हैं: क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया (सीएमएल) और क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल), और वैज्ञानिक रूप से ल्यूकेमिया होने का कोई एक कारण नहीं होता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि ल्यूकेमिया आनुवंशिक नहीं होता है, अर्थात् यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में नहीं जाता है और ल्यूकेमिया किसी एक या रक्त परिवहन के माध्यम से भी होने की संभावना नहीं होती है। इसके अलावा, ल्यूकेमिया होने के बहुत सारे कारण हो सकते हैं।
कभी-कभी, ल्यूकेमिया होने का सबसे बड़ा कारण वृद्धावस्था होती है और अन्य कारणों में पुरानी कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी करना शामिल हो सकता है। कुछ वायरल संक्रमण भी ल्यूकेमिया का कारण बन सकते हैं, और बोन मैरो के क्षति या बोन मैरो विकास विकार में पीड़ित होने से लोगों को ल्यूकेमिया का संकेत मिल सकता है।

ल्यूकेमिया के कॉमन सिम्पटम्स - Common Symptoms of Leukemia

कॉमन सिम्पटम्स तीन मेजर कैटेगरीज में होते हैं - एक सिम्प्टम होता है रेड सेल की कमी या एनीमिया की वजह से थकान, जिससे कमजोरी या सांस फूलने जैसे होता है। जो दूसरा सिम्प्टम है बार बार इंफेक्शन होना जैसे यूरिनरी इन्फेक्शन या बार बार गला खराब होना, खांसी, जुकाम होना या निमोनिया होना, तीसरा सिम्प्टम होता है ब्लीडिंग एंड चोट लगना। ब्लीडिंग का मतलब नाक से खून आना, मसूड़ों से खून आना, मल में पेशाब में खून आना और चोट का मतलब है जो बड़े बड़े नील के निशान पड़ जाना बिना किसी चोट के लगे हुए ही।

ल्यूकेमिया होने की कोई विशिष्ट आयु नहीं -Leukemia Age Range

अगर इनमें से कोई सिम्पटम्स, कोई मरीज नोटिस कर रहा है तो उन्हें डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए और ब्लड टेस्ट कराना चाहिए। ल्यूकेमिया होने की कोई विशिष्ट आयु नहीं होती, जिसका मतलब है कि ल्यूकेमिया किसी भी एज ग्रुप में हो सकता है। कुछ कुछ ल्यूकेमिया कुछ आयु वर्ग में बहुत आम हैं जैसे की - एक्यूट लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया जो की यंग एज में ज्यादा आम होता है और बच्चों में ज्यादा पाया जाता है, और बच्चों में इसका इलाज बहुत सफल है। एक्यूट मायलोब्लास्टिक लूकीमिया जिसका इन्सिडेन्स बढ़ती उम्र के साथ बढ़ता जाता है और उसका अधिकतम इन्सिडेन्स ओल्ड एज में जाके होता हैं।

ब्लड कैंसर का उपचार - Blood Cancer Treatment

कीमोथेरपी यानी की स्पेशल दवाईयां: क्रोनिक ल्यूकेमिया, इसका कोई स्पेसिफिक एज ग्रुप नहीं है और यह आम तौर पर बढ़ती उम्र एज में ज्यादा कॉमन होता हैं। इसका ट्रीटमेंट काफी कॉम्प्लिकेटेड होता है और उसमें काफी सारे ऑप्शन्स मरीज को दिए जाते हैं। जो मेजर ट्रीटमेंट ऑप्शन्स है वो है कीमोथेरपी यानी की स्पेशल दवाईयां जो जो ल्यूकेमिया के सेल्स के साथ साथ नॉर्मल सेल्स को भी मारता है।
टारगेटेड ट्रीटमेंट : दूसरा ट्रीटमेंट ऑप्शन है टारगेटेड ट्रीटमेंट (Targeted Treatment), जो कि साइड इफेक्ट्स कम करता है। इम्यूनोथेरपी जो विशिष्ट ल्यूकेमिया प्रोटीन्स पर ही ऐक्ट करता है और उसके साइड इफेक्ट्स नहीं है और सबसे प्रमुख बोन मैरो ट्रांसप्लांट; बोन मैरो ट्रांसप्लांट कब करना है, मरीज के किस स्टेज पर करना है वो मरीज की बीमारी और उसके रिस्पांस पर निर्भर करता है। किस टाइप पर ट्रांसप्लांट करना है वो भी बीमारी स्टेज और डोनर उपलब्धता पर निर्भर करता है।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट ट्रीटमेंट : बोन मैरो ट्रांसप्लांट ट्रीटमेंट (Bone Marrow Transplant Treatment) ऑप्शन है जो ल्यूकेमिया के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है और ल्यूकेमिया जब रिमिशन में होता है या जब बीमारी नहीं होती है तब बोन मैरो ट्रांसप्लांट आइडियल ट्रीटमेंट है जो बीमारी के वापस आने के रिस्क को काफी कम कर देता है। ट्रांसप्लांट और भी बीमारियो में इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे कि- लिम्फोमास और मायलोमास।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट एंड स्टेज ट्रीटमेंट : ये गलत धारणा है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट एंड स्टेज ट्रीटमेंट (Bone Marrow Transplant and Stage Treatment) है। वास्तव में ट्रांसप्लांट ल्यूकीमिया के आदि चिकित्सा के शुरूआती चरण में भी उपयोग होता है। ट्रांसप्लांट का काम उस समय शुरू होता है जब शरीर कैंसर से मुक्त हो चुका होता है और रोग को संक्रमण से दूर रखना होता हैं। अन्य चिकित्सा उपचारों के बाद जब रोग अवशेष रह जाता है, तब ट्रांसप्लांट की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह रोग के वापस आने की संभावना को कम करता है।
ट्रांसप्लांट अन्य रोगों में भी उपयोगी हो सकता है, जैसे कि लिम्फोमा या मायलोमा में ट्रांसप्लांट की भूमिका होती है। ट्रांसप्लांट से रोग की वापसी को रोका जाता है और कोशिकाएं शरीर में लंबे समय तक बनी रहती हैं, इसलिए ट्रांसप्लांट का प्रभाव लंबे समय तक रहता है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Transplant) अन्य उपचारों से भिन्न होता है क्योंकि यह डोनर कोशिकाएं शरीर में दौरान दीर्घकालिक रूप से निर्भर रहती हैं और उनका काम है कैंसर को नष्ट करने और उसके नियंत्रण बनाये रखने में मदद करती हैं। अतिरिक्त उपचारों के साथ, बोन मैरो को भी उपयोग किया जा सकता है और यह ट्रांसप्लांट के प्रभाव को बढ़ाने में मदद करता है।
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प्रणव मिश्र author

मीडिया में पिछले 5 वर्षों से कार्यरत हैं। इस दौरान इन्होंने मुख्य रूप से टीवी प्रोग्राम के लिए रिसर्च, रिपोर्टिंग और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए काम किया...और देखें

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