बच्चों को भी हो सकता है ब्रेन ट्यूमर; डॉक्टर से जानिए इसके लक्षण, कारण और इलाज
Brain Tumor in Kids: माना जाता है कि ब्रेन ट्यूमर आमतौर पर वयस्कों में ही होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। यह रोग बच्चों में भी होता है। भारत में हर साल लगभग 50,000 लोगों में ब्रेन ट्यूमर का पता चलता है। हालांकि, बच्चों की तुलना में वयस्कों में ब्रेन ट्यूमर अधिक आम हैं। लेकिन आजकल बच्चों की लाइफस्टाइल ज्यादा गैजेट्स की दीवानी हो जाने की वजह से उनमें ब्रेन ट्यूमर के मामले बढ़ रहे हैं।
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कैंसर इंस्टीट्यूट मेदांता गुरुग्राम के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी के चेयरपर्सन डॉ. तेजिंदर कटारिया ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बातचीत में बताया कि बच्चों में ब्रेन ट्यूमर के जो लक्षण (Symptoms of Brain Tumor in Children) होते हैं उनमें सिर दर्द हो सकते हैं और उल्टी हो सकती है, आंखों से कम दिखना हो सकता है या बच्चों को चक्कर आना और कई बार मिर्गी का दौरा पड़ना या हाथों पैरों में झुनझुन्नाहट भी हो सकती है। कई बार ऐसा होता कि बच्चा काम करते करते ध्यान मग्न हो जाता है लेकिन कुछ समय बाद वापस अपने प्रेसेंट मोमेंट में प्रेज़ेंट स्पेस में वापस आ जाता है। इसके अलावा कई बार बच्चों को चलने में असुविधा होना या चलते-चलते, खेलते-खेलते गिर पड़ना; जिसे हम इम्बैलेंस बोलते है वो भी एक लक्षण हो सकता है। यदि यह सभी लक्षण किसी बच्चे में दिखाई देते हैं तो वह ब्रेन ट्यूमर के लक्षण हो सकते हैं।
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बच्चों में ब्रेन ट्यूमर का डायग्नोसिस कैसे किया जाता है? How is brain tumor diagnosed in children?
बच्चों में ब्रेन ट्यूमर का डायग्नोसिस करने के लिए पहले फैमिली हिस्ट्री, परिवार में बीमारियों का इतिहास, उनके लक्षण वो सबसे पहले समझने होते हैं। उनसे हमें ये लोकलाइजेशन हो जाती है कि ब्रेन के किस हिस्से में बिमारी का उत्पन्न होना संभव है।उसके बाद फिर आंखो की जांच करना, शरीर के न्यूरोलॉजिकल इग्ज़ैमिनेशन को पूरा करना। क्योंकि हमारा ब्रेन जो है वो सारे शरीर को कंट्रोल करता है और वो मैथमैटिकल है। शरीर के विभिन्न अंगों की जांच करने से हमें पता चल जाता है कि ब्रेन में कहां पर परेशानी हो रही है या ट्यूमर का उत्पन्न होने का संभावना है।
इसके बाद ब्रेन का हम लोग MRI (Magnetic Resonance Imaging) करते हैं। आज से पहले सीटी स्कैन होते थे और उसके पहले हम लोग क्लिनिकल इग्ज़ैमिनेशन से ही पेशंट को डायग्नोसिस करते थे, लेकिन आज के दिन में एमआरआई है और कई ब्रेन ट्यूमर ऐसे होते हैं जिनके शरीर में जाने की संभावना होती है या शरीर से ब्रेन में आने की संभावना होती है, ऐसे में हम लोग पेट स्कैन भी करवातें हैं और कई बार ब्रेन के साथ जुड़ी हुई स्पाइनल कॉर्ड, जिसको हम लोग मेरूदंड कहते है, उसके अराउंड जो फ्लूइड है उसका टेस्ट करके भी हम लोग ब्रेन ट्यूमर की जांच करते हैं।
बच्चों में आम तौर पर किस उम्र में लक्षण दिखाई दिखाई देने लगते हैं ? - At what age do symptoms usually appear in children?
बच्चों में ब्रेन ट्यूमर जो है वो ऐडल्ट से काफी कम है और ये छोटी उम्र से ही हो सकते हैं। सबसे छोटे बच्चे हमने तीन से चार महीने के भी देखे हैं लेकिन ब्रेन ट्यूमर जो रेटिनोब्लास्टोमा जो बच्चों में सबसे कॉमन ट्यूमर होता है वो पांच वर्ष से लेकर 15 वर्ष की उम्र में ज्यादातर देखा जाता है पर 3 साल की उम्र और उससे छोटे उम्र के बच्चों में मेडुलोब्लास्टोमा और एटिपिकल टेराटॉइड / रबडॉइड ट्यूमर (एटी/आरटी), एपिन्डाइमोमा, एस्ट्रोसाइटोमा, ऑप्टिक पाथवे ट्यूमर, ओलिगोडेन्ड्रोग्लिओमा, कोरॉइड प्लेक्सस ट्यूमर, क्रेनियोफेरिन्जयोमा, गांग्लियोग्लिओमा, ग्लिओमेटोसिस सेरेब्री, जर्म सेल ट्यूमर (मस्तिष्क), डिफ्यूज़ इंट्रिंसिक, पोंटाईन ग्लिओमा (DIPG), पिनियोब्लास्टोमा ट्यूमर वगैरह होने की भी संभावना हो सकती है और इनके लक्षण पहले बताये गए हो सकते हैं। यदि छोटे बच्चों को उनकी मां देखती है कि बच्चे को खाना हजम नहीं हो रहा है, बच्चा खाना नहीं खा रहा है या उल्टियां हो रही है तो बच्चे को डॉक्टर के पास जांच के लिए ला सकती हैं।
बच्चो में अगर अचानक उल्टी शुरू हो जाए, सिर में दर्द हो, आंखो की नजर कमजोर होनी शुरू हो जाए और बच्चों को मिर्गी का दौरा पड़ने लगे। कई बार लगातार बुखार आना भी इसके संकेत हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चे को अपने नजदीकी डॉक्टर के पास या न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाना चाहिए। कई बार आंखों के डॉक्टर के पास जाने से भी ब्रेन ट्यूमर की जांच हो जाती है क्योंकि हमारा ब्रेन आंखों के द्वारा प्रेशर बढ़ने से सिम्पटम्स भी शो करता है और साइनस भी दिखा देता है जिसे एग्ज़ैमनेशन से पिक किया जा सकता है।
बच्चों में ट्यूमर ट्रीटमेंट ऑप्शन्स बड़ो के ट्रीटमेंट ऑप्शन्स से डिफ़रेंट है?- Are tumor treatment options in children different from treatment options in adults?
बच्चों के लिए ब्रेन ट्यूमर ट्रीटमेंट ऑपरेशन उसके बाद रेडिएशन अथवा कीमोथेरपी के द्वारा किया जाता है; पर कई ब्रेन ट्यूमर से ऐसे भी होते हैं जिनमें पहले कीमोथेरेपी या रेडिएशन दिया जाए और उसके बाद अगर जरूरत हो तो सर्जरी की जा सकती है। बच्चों में डिफरेन्स ये है की हम लोग उस तरह का ट्रीटमेंट करना चाहेंगे जो लॉन्ग टर्म में मिनिमम साइड इफेक्ट्स दे जैसे जर्म सेल ट्यूमर्स है उनमें कई बार हम बिना बायॉप्सी के ट्यूमर मार्करों के साथ या सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड का टेस्ट करने से जांच कर लेते है। यदि बच्चों में ट्यूमर ब्रेन के अंदर है तो उस केस में फिर ऑपरेशन नहीं किया जाता है। अन्यथा बाकी सब जो ट्यूमर्स है उनमें ऑपरेशन करके, बायॉप्सी करके उसके पश्चात फिर ट्रीटमेंट किया जाता है और 3 साल से छोटे बच्चों में हम लोग कीमोथेरपी का ज्यादा यूज़ करते है और 3 साल से ऊपर के बच्चों का ब्रेन डेवलपमेंट पूरा हो जाता है तो रेडिएशन और कीमो, प्रोटोकोल के अकॉर्डिंग यूज़ की जाती है तो अडल्ट्स के और बच्चों के ट्रीटमेंट में ये डिफरेन्स है।
बच्चों के ब्रेन ट्यूमर के इलाज में कोई डेवलपमेंट हुआ है ? - Have there been any developments in the treatment of brain tumors in children?
बच्चों के ब्रेन ट्यूमर के इलाज में नवीनतम जो डेवलपमेंट्स हुई है उनमें ये है कि मॉलिक्यूलर मार्कर्स पर बहुत काम हुआ हैं। जिनसे टार्गेटेड ड्रग्ज़ की एवल्यूशन हो रही है जो डेवलपमेंट फेस में है ताकि बच्चों को जो दवाई दी जाए वो टिपिकली उसी ट्यूमर को टारगेट करें और बाकी शरीर के अंगों के ऊपर उसका प्रभाव ना हो। इसके अलावा रेडिएशन में प्रोटॉन थेरपी एक बहुत ही अच्छा ट्रीटमेंट है जिससे बच्चों के शरीर की विकसित होने में कोई भी आंच नहीं आती है और बच्चे अपने सारे फंक्शन्स को बाद में भी मेनटेन कर सकते हैं। बच्चों के ट्यूमर में सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि अगर उन्हें इतनी कम उम्र में (मान लीजिए किसी को 5 या 10 साल की उम्र) ब्रेन ट्यूमर हो जाता है और उन्हें 75, 80, 90 साल तक जीना है तो न केवल उनके शारीरिक विकास में बल्कि उनके भावनात्मक, मानसिक विकास के सभी चरण उन बच्चों के समान नहीं होते है। यह डॉक्टरों के लिए एक चुनौती है। पिछले 30-40 वर्षों में बहुत अच्छे विकास हुए हैं।
बच्चों को अपने इलाज में कौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? - What challenges do children face in their treatment?
बच्चे खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं। उन्हें क्या हो रहा है, उन्हें क्या तकलीफ हो रही है। इसलिए, हमें शारीरिक और मानसिक रूप से बच्चे की तरह ही भावनात्मक रूप से देखभाल करनी होगी। क्योंकि माता-पिता उस समय बच्चे की बीमारी को लेकर काफी चिंतित रहते हैं। उन्हें अपनी आर्थिक और अन्य चीजों की देखभाल को छोड़कर बच्चे पर अधिक ध्यान देना होगा। इन बच्चों का लंबा इलाज चल रहा है। वे दीर्घकालिक फॉलो आप ट्रीटमेंट भी करते हैं। हम यह देखना चाहते हैं कि जो बच्चे छोटे हैं वे अपनी किशोरावस्था, कॉलेज और यहां तक कि अपनी नौकरी में कैसा महसूस करते हैं। बच्चों के ब्रेन ट्यूमर में ये चुनौतियां अनोखी होती हैं।
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