Colorectal Cancer: क्या आपके परिवार में कभी किसी को कोलोरेक्टल कैंसर रहा है? एक्सपर्ट से जानिए रिस्क फैक्टर
Colorectal Cancer Risk factors in Hindi: कोलोरेक्टल कैंसर का पारिवारिक इतिहास रोग विकसित होने का एक बड़ा जोखिम है, लेकिन साथ ही अन्य जोखिम भी हैं। बीमारी का बोझ प्रति वर्ष 3.2 मिलियन नए मामलों की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो 2020 में रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या से 63 प्रतिशत अधिक है।
Colorectal Cancer: कोलोरेक्टल कैंसर के बारे में पूरी जानकारी
Colorectal Cancer Risk factors: कोलोरेक्टल कैंसर पूरी दुनिया में पाया जाता है और यह तीसरा सबसे आम कैंसर है। कैंसर से होने वाली मौतों में यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है, जिसकी वजह से हर साल लगभग 1 मिलियन मौतें होती हैं। इस बीमारी का भार हर साल 3.2 मिलियन नए बीमारों की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो 2020 में दर्ज किए गए मामलों की तुलना में 63 प्रतिशत ज्यादा है। इसके अलावा, प्रतिवर्ष होने वाली मौतें 73 प्रतिशत की बढ़त के साथ हर साल 1.6 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है।
सीके बिड़ला अस्पताल (R), दिल्ली में एडवांस सर्जिकल साइंसेज और ओंको-सर्जरी विभाग के डायरेक्टर डॉ. अमित जावेद ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बातचीत में बताया कि कोलोरेक्टल कैंसर होने में अनुवांशिकता एक अहम भूमिका निभाती है। कोलोरेक्टल कैंसर के ज्यादातर मामले ऐसे परिवारों में होते हैं, जिनमें इस बीमारी का कोई इतिहास नहीं होता, लेकिन 5 से 10 प्रतिशत मामले विरासत में मिले अनुवांशिक म्यूटेशंस के कारण होते हैं। ऐसे अनेक अनुवांशिक सिन्ड्रोम हैं, जिनसे व्यक्ति में कोलोरेक्टल कैंसर होने का जोखिम बढ़ सकता है। इसलिए यदि किसी के परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर या इससे जुड़े किसी अन्य कैंसर का इतिहास रहा है, तो उसे अपने डॉक्टर से मिलकर इसके होने के जोखिम के विषय में बात करना चाहिए।
परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर का इतिहास इस बीमारी के होने में एक बड़ा जोखिम उत्पन्न करता है, लेकिन इसके अलावा भी कई अन्य जोखिम हो सकते हैं। कोलोरेक्टल कैंसर के अन्य जोखिमों में शामिल हैंः
उम्रः कोलोरेक्टल कैंसर होने का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता जाता है, ज्यादातर मामले 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में होते हैं।
कोलोरेक्टल कैंसर या पॉलिप्स का व्यक्तिगत इतिहासः यदि किसी को पहले कोलोरेक्टल कैंसर या विशेष तरह के पॉलिप्स रह चुके हैं, तो उन्हें दोबारा यह बीमारी होने का जोखिम बढ़ जाता है।
आंतों में सूजन का रोगः जिन लोगों को आंतों में सूजन का रोग, जैसे अल्सरेटिव कोलाईटिस या क्रोन डिज़ीज़ रही हो, उन्हें कोलोरेक्टल कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है।
अनुवांशिक सिंड्रोमः कुछ अनुवांशिक सिंड्रोम जैसे फैमिलियल एडेनोमेटस पॉलिपोसिस (फैप) या लिंच सिंड्रोम से कोलोरेक्टल कैंसर होने का जोखिम बढ़ सकता है।
कोलोरेक्टल कैंसर होने से रोकने के उपाय- Ways to Prevent Colorectal Cancer
स्वस्थ आहार लें: अपने भोजन में ताज़े फलों, और सब्ज़ियों के साथ साबुत अनाज लेना चाहिए। मछली और चिकन जैसे लीन प्रोटीन वाले आहार भी ले सकते हैं। यह सब कोलोरेक्टल कैंसर होने का जोखिम कम करते हैं। लाल और प्रोसेस्ड मीट, सैचुरेटेड फैट और शुगरयुक्त मीठे पेय का सेवन कम करें।
नियमित रूप से रोज़ व्यायाम करें: नियमित रूप से शारीरिक गतिविधि करना जैसे तेज चलना, दौड़ना या साइकिल चलाना, कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को कम करने में मदद कर सकता है। हफ़्ते में हर दिन कम से कम 30 मिनट का हल्का व्यायाम करना सेहत के लिए अच्छा है।
स्वस्थ वजन बनाए रखें: जरूरत से ज़्यादा वजन बढ़ने या मोटापा होने से कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम के द्वारा सही वजन बनाकर रखें।
धूम्रपान न करें: धूम्रपान कोलोरेक्टल कैंसर के साथ-साथ कई और तरह के कैंसर का जोखिम उत्पन्न करता है। धूम्रपान छोड़ने से कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा कम हो सकता है संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
शराब का सेवन कम से कम करें: ज्यादा शराब का सेवन कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम उत्पन्न करता है। शराब का सेवन सीमित करने से जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
रोकथाम ही है उपाय: कोलोरेक्टल कैंसर के लिए नियमित रूप से जांच कराने से बीमारी का जल्द पता लग सकता है, जिससे इसका इलाज करना आसान हो जाता है। कब और कितनी बार जाँच की जानी चाहिए, यह समझने के लिए डॉक्टर से सलाह लें।
अपने परिवार के इतिहास को जानेंः यदि किसी के परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर या इससे जुड़े अन्य कैंसर का इतिहास रहा है, तो डॉक्टर से जाँच जल्दी शुरू करने और अक्सर कराते रहने के बारे में परामर्श लें।
डॉ. अमित जावेद के मुताबिक कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव करने का सबसे अच्छा उपाय समय-समय पर जांच कराना है, ताकि इसका उस समय पता लग सके, जब इसका इलाज आसान होता है। अधिकांश लोगों को 45 साल की उम्र में जांच कराना शुरू कर देना चाहिए, हालांकि यदि किसी में जोखिम के कारण हों, तो उन्हें इससे पहले ही जाँच कराना शुरू कर देना चाहिए। कोलोरेक्टल कैंसर के लिए अनेक तरह की जांच उपलब्ध हैं, जिनमें कोलोनोस्कोपी, फेसल इम्युनोकैमिकल टेस्ट और स्टूल डीएनए टेस्ट शामिल हैं। नियमित तौर से जांच कराके प्रिकैंसरस पॉलिप्स या शुरुआती चरण के कोलोरेक्टल कैंसर को समय पर पहचाना जा सकता है और इसके बढ़ने से पहले ही इसका इलाज कराया जा सकता है।
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