Glaucoma: इस बीमारी की वजह से चली जाती है आंखों से रोशनी, एक्सपर्ट से जानिए क्या है ग्लूकोमा और इससे निपटने के तरीके

Glaucoma Symptoms, causes, treatment and prevention: ग्लूकोमा आंखों में होने वाली गंभीर बीमारी है। इसे काला मोतियाबिंद भी कहा जाता है। एक्सपर्ट से जानिए बचाव के तरीके-

Glaucoma

अगर ग्लूकोमा की जल्दी पहचान कर ली जाये तो आंखों की रोशनी को अधिक नुकसान से बचाया जा सकता है।

Glaucoma - Symptoms and causes: ग्लूकोमा यानि काला मोतियाबिंद ऐसी स्थिति है, जो आंख के पिछले हिस्से में मौजूद ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचाती है, जिससे कम दिखाई देने लगता है। दुनियाभर में अंधेपन का दूसरा प्रमुख कारण होने के बावजूद अक्सर इसका सही तरह से इलाज नहीं किया जाता। इसे आमतौर पर 'silent thief of sight' कहा जाता है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में इसके लक्षण बीमारी बढ़ जाने तक सामने ही नहीं आते। इसके मरीजों में बगल के क्षेत्र का दिखाई नहीं देना यानी पेरिफेरल विजन लॉस और धीरे-धीरे दिखाई देना कम हो जाना यानी ग्रैजुअल विजन लॉस आम लक्षण हैं। इस कारण मरीजों को जब तक इसका आभास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनियाभर में 45 लाख लोग ग्लूकोमा के कारण आंखों की रोशनी गंवा देते हैं और भारत में ही 1.2 करोड़ लोग इसके शिकार हैं और कुल जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा इसके कारण नेत्रहीन है। नेशनल हेल्थ पोर्टल के हालिया आंकड़े बताते हैं कि भारत और चीन में इससे पीड़ित लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। भारत में लगभग 40 मिलियन लोग, या हर 8वें व्यक्ति को ग्लूकोमा है या इसके विकसित होने का खतरा है।

दुर्भाग्यवश, अनेक लोगों को ग्लूकोमा के कारण और लक्षणों की जानकारी नहीं है। जल्दी पहचान की संभावना बढ़ाने के लिए हर साल आंखों के डॉक्टर से आंखों की जांच करवाना जरूरी है। कई मरीजों में देर से इस बीमारी का पता चलने पर सामने आता है कि यह गंभीर स्थिति तक पहुंच गई है। आइये डॉ. शालिनी मोहन, एमबीबीएस, फैको, ग्लूकोमा और कॉर्निया विशेषज्ञ से जानते हैं ग्लूकोमा के लक्षण, प्रकार और इसके संभावित खतरे-

ग्लूकोमा होने के कुछ खतरे | Risks of Glaucoma

डॉ. शालिनी मोहन ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बातचीत में बताया कि कुछ स्थितियों में ग्लूकोमा होने का खतरा रहता है, जिनमें उम्र फैक्टर, पास का कम दिखाई देना, परिवार का इतिहास, आंख में चोट, आंख की सर्जरी और डायबिटीज और हाई ब्लड-प्रेशर जैसी चिकित्सकीय अवस्थाएं शामिल हैं।

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कैसे बढ़ती है यह बीमारी ? | How does this disease progress?

डॉ. शालिनी मोहन ने बताया कि ग्लूकोमा या ग्लूकोमा की स्थिति तब आती है, जब आंखों में बनने वाला द्रव कोरोना और आइरिस के बीच स्थित ट्रैबेक्युलर मेशवर्क के माध्यम से बाहर नहीं निकल पाता और इस चैनल में रुकावट पैदा हो जाती है। इस कारण द्रव इकट्ठा होता रहता है और इंट्राऑक्युलर प्रेशर (आईओपी) में वृद्धि होती है। इस कारण ऑप्टिक नर्व सिकुड़ सकती है, जिससे प्रकाश का नर्व सिग्नल में परिवर्तन बाधित होता है। यदि इसका इलाज नहीं किया जाए, तो इससे सामान्य दृष्टि में बदलाव या आंखों की रोशनी चले जाने का खतरा हो सकता है।

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ग्लूकोमा के प्रकार | Types of glaucoma

डॉ. शालिनी मोहन के मुताबिक ग्लूकोमा को दो मुख्य प्रकार में बांटा जा सकता है : ओपन-एंगल और क्लोज्ड-एंगल (या नैरो-एंगल) ग्लूकोमा। ओपन-एंगल ग्लूकोमा तब होता है, जब आंखों का लिक्विड एंटीरियर चैंबर से पूरी तरह सूख नहीं पाता, भले ही एंगल में कोई रुकावट न हो। इस प्रकार का ग्लूकोमा आमतौर पर बिना लक्षण वाला होता है और धीरे-धीरे आंखों की रोशनी कम करता है। इस कारण इसे 'आंखों की रोशनी का खामोश चोर' भी कहा जाता है।

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पहचान और उपचार | Glaucoma - Diagnosis and treatment

डॉ. शालिनी के अनुसार ग्लूकोमा की जांच आमतौर पर दर्दरहित और छोटी होती है। जांच के दौरान, डॉक्टर आपकी देखने की क्षमता की जांच करेगा और आंखों की जांच के लिए आपकी पुतलियों को फैलाने के लिए ड्रॉप्स का प्रयोग करेगा। डॉक्टर ग्लूकोमा के किसी लक्षण के लिए आपकी ऑप्टिक नर्व की जांच करेंगे। इस दौरान वे फोटोग्राफ भी ले सकते हैं, जिससे बाद में इनमें होने वाले परिवर्तन पर नजर रखी जा सके। वे आपकी आंखों में दबाव नापने के लिए टोनोमेट्री टेस्ट भी करेंगे। आपकी आंखों में किसी प्रकार का पेरिफेरल विजन लॉस तो नहीं है, इसकी जांच के लिए विजुअल फील्ड टेस्ट भी किया जाएगा।

यदि आपके आंखों के डॉक्टर को आपकी आंखों में ग्लूकोमा का शक होता है, तो वह जांच में सहायता के लिए आपकी ऑप्टिक नर्व के लिए कुछ विशेष जांच भी करा सकते हैं। इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि आंख में सामान्य से अधिक दबाव होने का अर्थ हमेशा यह नहीं होता कि आपको ग्लूकोमा है। आंख के सामान्य दबाव वाले कुछ व्यक्तियों में भी यह बीमारी हो सकती है और ज्यादा दबाव वाले लोग इससे बचे रह सकते हैं। यदि ऑप्टिक नर्व में किसी नुकसान के बिना ज्यादा दबाव है, तो इसे ऑक्युलर हाइपरटेंशन कहा जाता है। यदि आपकी आंखों में यह पाया जाता है, तो आपका डॉक्टर आपकी स्थिति की निगरानी के लिए जल्दी-जल्दी आंखों की जांच कराने की सलाह देगा।

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दुर्भाग्यवश, ग्लूकोमा के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती। हालांकि, उचित इलाज और नियमित जांच से देखने की क्षमता कम होने की गति धीमी की जा सकती है या इसे और कम होने से रोका जा सकता है। विशेषकर तब, जब इस बीमारी का पता शुरुआत में ही चल जाए। ग्लूकोमा के इलाज का प्राथमिक तरीका इंट्राऑक्युलर प्रेशर को कम करना है। यह विभिन्न तरीकों से संभव है, जैसे डॉक्टर द्वारा बताई गई आई-ड्रॉप्स से, खाने वाली दवाइयां लेकर, लेजर से इलाज, सर्जरी या इन सभी विधियों को मिलाकर। आपका आंख का डॉक्टर आपके ग्लूकोमा की गंभीरता और उसकी बढ़ी हुई स्थिति को देखकर सबसे उचित उपचार तय करेगा। आपकी आंखों के दबाव की निगरानी और आपके इलाज को असरदार बनाए रखने के लिए नियमित रूप से जांच करना भी जरूरी होगा।

जागरूकता सबसे महत्वपूर्ण

डॉक्टर ने बताया कि भारत जैसे विकासशील देशों में ग्लूकोमा के प्रति जागरूकता विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। शुरुआत में ही पहचान और समय से उपचार इसे बढ़ने से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस स्थिति के बारे में लोगों को जागरूक करने से ग्लूकोमा के कारण होने वाली नेत्रहीनता की स्थिति को कुछ हद तक रोका जा सकता है। यह बीमारी बढ़ती महामारी की तरह है और दुनियाभर में रोकी जा सकने वाली नेत्रहीनता का प्रमुख कारण है। हालांकि यह संभव है कि इस बीमारी को ऐसा नुकसान पहुंचाने से रोका जाए, जो कभी ठीक ही न हो सकें। लोग जितना ज्यादा ग्लूकोमा और इसे पैदा करने वाले खतरों के बारे में जानेंगे, वे रोकथाम के तरीके अपनाने और इस बीमारी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए डॉक्टर की सहायता लेने में ज्यादा सक्षम बने रहेंगे।

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प्रणव मिश्र author

मीडिया में पिछले 5 वर्षों से कार्यरत हैं। इस दौरान इन्होंने मुख्य रूप से टीवी प्रोग्राम के लिए रिसर्च, रिपोर्टिंग और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए काम किया...और देखें

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