Fatty Liver: युवाओं में बढ़ रहा है अल्कोहलिक फैटी लिवर का खतरा, एक्सपर्ट से जानिए बचाव के तरीके
NAFLD - Non-alcoholic Fatty Liver in Young People: बिगड़ी लाइफस्टाइल के कारण लोगों में फैटी लिवर की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह समस्या खासकर युवाओं में देखी जा रही है। शराबियों की तुलना में शराब न पीने वाले लोगों में फैटी लिवर के मामले ज्यादा बढ़ रहे हैं। डॉक्टर इसका कारण मोटापा, शुगर, बीपी आदि मान रहे हैं। ऐसे में लोगों को अपनी जीवनशैली में सुधार करने की बेहद जरूरत है।
Fatty Liver Disease: क्या 25 साल के व्यक्ति को लिवर की समस्या हो सकती है?
Non-alcoholic Fatty Liver in Young People: नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर (NAFLD) की समस्या आमतौर पर उम्र के तीसरे और चौथे दशक में ज्यादा देखी गई है जबकि पहले यह परेशानी 40+ आयुवर्ग के लोगों को ही अपना शिकार बनाती थी। भारत में, एनएएफएलडी का प्रसार 5 से 30% तक है और अध्ययनों से यह भी पता चला है कि यह समस्या ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी आबादी के बीच अधिक है।
नई दिल्ली, ओखला रोड स्थित फोर्टिस एस्कॉर्ट्स में गैस्टेरोलॉजी एंड हिपेटोलिलियरी साइंसेज़ विभाग में कंसल्टैंट, डॉ सुरक्षित टीके ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बातचीत में बताया कि शहरी जीवनशैली एनएएफएलडी के बढ़ते कारणों में अहम् भूमिका निभा रही है, जिसमें अधिक भोजन करना (खासतौर से कैलोरी युक्त फास्ट फूड), व्यायाम का अभाव और शारीरिक गतिविधियों का कम होना प्रमुख हैं। NAFLD के दो प्रमुख जोखिमों में मधुमेह और मोटापा शामिल हैं। नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर प्रत्येक दो मधुमेह रोगियों में से एक को प्रभावित करता है। युवाओं में एनएएफएलडी के मामले बढ़ रहे हैं क्योंकि देश में बाल्यावस्था में मोटापे और मधुमेह की समस्या लगातार बढ़ रही है।
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर कैंसर का कारण - Causes of Non-Alcoholic Fatty Liver Cancer
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर से ग्रस्त 20 से 25 फीसदी लोगों को सिरोसिस या लिवर कैंसर का खतरा रहता है और 15 से 20 वर्षों में उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट करवाने की जरूरत हो सकती है। आमतौर पर यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है और कोई खास लक्षण भी दिखायी नहीं देते, इसलिए प्राय: एनएएफएलडी को अधिक खतरनाक नहीं माना जाता। ऐसे में कुछ लोग और यहां तक कि कुछ चिकित्सक भी इसे लेकर लापरवाही बरतते हैं। लिवर के अलावा, एनएएफएलडी अन्य कई रोगों जैसे कि कार्डियोवास्क्युलर रोग, क्रोनिक किडनी रोग, ऑब्सट्रक्टेड स्लीप एप्निया तथा विभिन्न अंगों के कैंसर का कारण भी बन सकता है।
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर का निदान - Diagnosing Non-Alcoholic Fatty Liver
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर का निदान करना आमतौर से आसान होता है, इसके लिए कुछ ब्लड टैस्ट जैसे कि लीवर फंक्शन टैस्ट, अल्ट्रासाउंड और मुख्य रूप से लीवर इलास्ट्रोग्राफी या फाइब्रोस्कैन करना होता है। ट्रांज़िएंट इलास्ट्रोग्राफी या फाइब्रोस्कैन से लिवर में फैट की मात्रा का पता चलता है और लिवर में कितनी कसावट (इंफ्लेमेशन और फाइब्रोसिस से लिवर में कसावट बढ़ती है) है, इसकी जानकारी मिलती है।
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर से बचाव - Prevention of Non-Alcoholic Fatty Liver
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर से बचाव और इसके प्रबंधन में युवाओं को स्वस्थ जीवनशैली के बारे में जागरूक बनाने से काफी मदद मिल सकती है। नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर को पूरी तरह से से ठीक किया जा सकता है, इसके लिए जीवनशैली में बदलाव लाने होते हैं जैसे कि सेहतमंद और संतुलित खुराक (कार्बोहाइड्रेट, सैचुरेटेड फैट्स में कमी करना, प्रोटीन की मात्रा बढ़ाना) तथा नियमत रूप से व्यायाम की आवश्यकता होती है।
मोटापे के शिकार या ओवरवेट लोगों को कैलोरी का सेवन घटाने तथा अधिक कैलोरी खर्च करने की सलाह दी जाती है ताकि वज़न कम हो सके और ऐरोबिक या एनऐरोबिक गतिविधियों से वे ऐसा कर सकते हैं जिसके लिए सप्ताह में 5 दिन कम से कम 30 से 40 मिनट तक सामान्य से अधिक गहन शारीरिक गतिविधियां जरूरी हैं। वज़न में 5-10% कमी करने से लिवर की सेहत पर काफी असर पड़ता है।
जिन मरीज़ों में यह लिवर कैंसर, सिरोसिस या एनएएसएच (Non alcoholic steatohepatitis) बन जाता है उन्हें आगे इलाज की जरूरत पड़ती है जिसमें दवाओं, एंडोस्कोपी या जिनका लिवर बेकार हो चुका है उन्हें लिवर ट्रांसप्लांटेशन कराना होता है।
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प्रणव मिश्र author
मीडिया में पिछले 5 वर्षों से कार्यरत हैं। इस दौरान इन्होंने मुख्य रूप से टीवी प्रोग्राम के लिए रिसर्...और देखें
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