सिर्फ धूम्रपान ही नहीं बल्कि इन वजहों से भी हो सकता है फेफड़ों का कैंसर, रिसर्च में हुआ खुलासा, जानें इसके लक्षण
इन दिनों यंगस्टर्स में धूम्रपान का क्रेज काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस वजह से ज्यादातर लोग लंग कैंसर या फेफड़ों के कैंसर का शिकार हो रहे हैं। कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर हो जाती है। यह कैंसर से होने वाली मौत का प्रमुख कारण माना जाता है। भारत में लंग कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ते जा रही है। इस कैंसर को रोकने के लिए तमाम तरह के इलाज तो उपलब्ध ही हैं, साथ ही जागरुकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं।
इन दिनों यंगस्टर्स में धूम्रपान का क्रेज काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस वजह से ज्यादातर लोग लंग कैंसर या फेफड़ों के कैंसर का शिकार हो रहे हैं। कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर हो जाती है। यह कैंसर से होने वाली मौत का प्रमुख कारण माना जाता है। भारत में लंग कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ते जा रही है। इस कैंसर को रोकने के लिए तमाम तरह के इलाज तो उपलब्ध ही हैं, साथ ही जागरुकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं।
फेफड़े का कैंसर होने का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान है। इसके अलावा कई दूसर कारणों जैसे तंबाकू चबाना, धुएं के संपर्क में आना, घर या काम पर एस्बेस्टस या रेडॉन जैसे पदार्थों के संपर्क में आने की वजह से भी लंग कैंसर होने की संभावना रहती है। लेकिन हाल ही किए गए शोध में चौंकाने वाली बात सामने आई है। हाल ही में गिए गए रिसर्च में ये बात सामने आई है कि यह पारिवारिक इतिहास के कारण भी हो सकता है। ऐसे में जानिए शोध में क्या हुआ है खुलासा।
फेफड़ों के कैंसर के लक्षण
अधिक समय तक खांसी रहना
छाती में दर्द होना
सांस लेने में कठिनाई होना
खांसी में खून का आना
हर समय थकान महसूस होना
बिना किसी कारण वजन कम होना
भूख का ना लगना
आवाज का बैठ जाना
सिर में दर्द होना
हड्डियों में दर्द रहना
शोध में सामने आई ये बातें
तम्बाकू युक्त धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के प्रमुख कारणों में से एक है, वहीं एक नए शोध से पता चलता है कि इसके लिए जीन भी एक जोखिम फेक्टर हो सकता है।जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित शोध-निष्कर्ष में धूम्रपान न करने वाले व्यक्तियों में फेफड़ों के कैंसर के पारिवारिक इतिहास के प्रमाण दिखाए गए हैं।
शोध के क्रम में ताइवान के 12,011 लोगों के स्वास्थ्य का अध्ययन किया गया और फेफड़ों का कैंसर धूम्रपान न करने वालों में भी पाया गया। उनमें से लगभग 60 प्रतिशत में निदान (डायग्नोसिस) के समय रोग के पहले चरण का पता चला। ताइपे में नेशनल ताइवान यूनिवर्सिटी सहित शोधकर्ताओं ने कहा, जो व्यक्ति धूम्रपान नहीं करते हैं, हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि प्रथम डिग्री के रिश्तेदारों में फेफड़ों के कैंसर का पारिवारिक इतिहास फेफड़ों के कैंसर के खतरे के साथ-साथ बढ़ती उम्र के साथ आक्रामक फेफड़ों के कैंसर की दर को काफी बढ़ा देता है।
टीम का लक्ष्य धूम्रपान न करने वालों के बीच लो-डोज सीटी (एलडीसीटी) स्क्रीनिंग की प्रभावकारिता का आकलन करना था, जिनमें फेफड़ों के कैंसर के अन्य जोखिम फेक्टर थे। 2015 और 2019 के बीच उन्होंने 12,011 लोगों की जांच की, जिनमें से 6,009 लोगों का पारिवारिक इतिहास फेफड़ों के कैंसर का था। फेफड़ों के कैंसर के पारिवारिक इतिहास वाले प्रतिभागियों (6,009 प्रतिभागियों में से 161 यानी 2·7 प्रतिशत) की तुलना में आक्रामक फेफड़ों के कैंसर की व्यापकता उन प्रतिभागियों में अधिक थी, जिनके (6,002 प्रतिभागियों में से 96 यानी 1·6 प्रतिशत) परिवार में फेफड़ों का कैंसर नहीं था ।
जिन प्रतिभागियों में फेफड़ों के कैंसर का पारिवारिक इतिहास रहा है, उनमें प्रथम-डिग्री के रिश्तेदारों की संख्या जितनी अधिक होगी, फेफड़ों के कैंसर का खतरा उतना ही अधिक होगा। जिन प्रतिभागियों की मां या भाई-बहन को फेफड़ों का कैंसर था, उनमें भी जोखिम बढ़ गया। फेफड़ों के कैंसर के पारिवारिक इतिहास वाले प्रतिभागियों में आक्रामक फेफड़ों के कैंसर का पता लगाने की दर उम्र के साथ काफी बढ़ गई, जबकि एडेनोकार्सिनोमा का पता लगाने की दर स्थिर रही। एडेनोकार्सिनोमा ऐसे कैंसर हैं जो ग्रंथियों के ऊतकों में शुरू होते हैं जो फेफड़े, स्तन, प्रोस्टेट या बृहदान्त्र जैसे बलगम या तरल पदार्थ बनाते हैं।
बहुपरिवर्तनीय विश्लेषण में, महिला लिंग, फेफड़ों के कैंसर का पारिवारिक इतिहास और 60 वर्ष से अधिक उम्र फेफड़ों के कैंसर और आक्रामक फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़े थे। शोधकर्ताओं ने कहा, इस आबादी में फेफड़ों के कैंसर के जोखिम कारकों पर और शोध की जरूरत है, खासकर उन लोगों के लिए, जिनके परिवार में फेफड़ों के कैंसर के रोगियों का इतिहास नहीं है।
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