मरीजों के सीने में धड़केगा 'बनावटी' दिल, IIT कानपुर ने बनाया आर्टिफिशियल हार्ट

Artificial Heart: आईआईटी कानपुर और देशभर के हृदय रोग विशेषज्ञों ने इस आर्टिफिशियल हार्ट को बनाया है। जानवरों पर परीक्षण फरवरी या मार्च से शुरू होगा। परीक्षण में सफलता के बाद दो वर्षों में मनुष्यों में प्रत्यारोपण किया जा सकता है।

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मरीजों के सीने में धड़केगा 'बनावटी' दिल।

तस्वीर साभार : IANS

Artificial Heart: आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) के विशेषज्ञों ने एक आर्टिफिशियल हार्ट (Artificial Heart) तैयार किया है, जो हृदय रोग संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए मददगार साबित होगा। आईआईटी कानपुर के निदेशक अभय करंदीकर ने कहा कि आर्टिफिशियल हार्ट का जानवरों पर परीक्षण अगले साल शुरू होगा। उन्होंने कहा कि अब हार्ट ट्रांसप्लांट (Heart Transplant) आसान होगा और गंभीर रोगियों में आर्टिफिशियल हार्ट ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं। आईआईटी कानपुर और देशभर के हृदय रोग विशेषज्ञों ने इस आर्टिफिशियल हार्ट को बनाया है। जानवरों पर परीक्षण फरवरी या मार्च से शुरू होगा। परीक्षण में सफलता के बाद दो वर्षों में मनुष्यों में प्रत्यारोपण किया जा सकता है।

करंदीकर ने कहा कि हृदय रोग तेजी से बढ़ रहा है और बड़ी संख्या में मरीजों को हार्ट ट्रांसप्लांट की सलाह दी जा रही है। उन्होंने कहा कि मरीजों की परेशानी कम करने के लिए आर्टिफिशियल हार्ट बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 10 वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की एक टीम ने दो साल में इस आर्टिफिशियल हार्ट को तैयार किया है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को मिलकर उपकरण और इम्प्लांट तैयार करने चाहिए।

अब हार्ट के मरीजों के सीने में धड़केगा 'बनावटी' दिल

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उन्होंने कहा कि भारत 80 प्रतिशत उपकरण और इम्प्लांट विदेशों से आयात करता है। केवल 20 प्रतिशत उपकरण और इम्प्लांट भारत में निर्मित किए जा रहे हैं। हार्ट मरीजों के लिए अधिकांश इम्प्लांट और स्टेंट आयात किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोविड-19 ने हमें कुछ कड़ा सबक सिखाया। कोविड से पहले भारत में वेंटिलेटर नहीं बनते थे। कोरोना संक्रमितों की जान बचाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने सिर्फ 90 दिनों में वेंटिलेटर तैयार किया।

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भारत में दो कंपनियां वेंटिलेटर बना रही हैं। भारत में विदेशी वेंटिलेटर की कीमत 10 से 12 लाख रुपए है जबकि भारतीय वेंटिलेटर सिर्फ 2.5 लाख रुपए में बन रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी है। प्रति 1000 की आबादी पर केवल 8 डॉक्टर हैं। इस कमी को एक बार में पूरा नहीं किया जा सकता है। हालांकि सरकार तेजी से अस्पताल और मेडिकल कॉलेज खोल रही है, लेकिन आबादी और भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से डॉक्टर-स्टाफ का संकट बना रहेगा। ऐसे में जरूरत है कि चिकित्सा व्यवस्था को तकनीक से जोड़ा जाए।

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