International Nystagmus Day:जानिए क्यों मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय निस्टागमस दिवस, 'डांसिंग आई' सिंड्रोम के बारे में जागरूकता क्यों है जरूरी

International Nystagmus Day: न्यूस्टैग्मस (अक्षिदोलन) जिसे आमतौर पर "डांसिंग आई" सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है, आंखों की एक ऐसी बीमारी है जिसमें आंखें अनैच्छिक रूप से और बार-बार गति करती हैं। यह विकार सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है और उनके जीवन की गुणवत्ता पर इसका काफी प्रभाव पड़ सकता है।

International Nystagmus Day

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International Nystagmus Day: न्यूस्टैग्मस (अक्षिदोलन) जिसे आमतौर पर "डांसिंग आई" सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है, आंखों की एक ऐसी बीमारी है जिसमें आंखें अनैच्छिक रूप से और बार-बार गति करती हैं। यह विकार सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है और उनके जीवन की गुणवत्ता पर इसका काफी प्रभाव पड़ सकता है। आज अंतर्राष्ट्रीय न्यूस्टैग्मस दिवस मनाया जा रहा है जिसका उद्देश्य इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इससे जुड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालना है। यह दुनिया भर के लोगों को प्रभावित करता है और भारत में भी बड़ी संख्या में लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। न्यूस्टैग्मस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के महत्व को समझकर हम इस बीमारी से प्रभावित लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर सकते हैं। जबकि वर्तमान में निस्टागमस का कोई इलाज नहीं है, इस बीमारी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें जल्द निदान, उचित चिकित्सा देखभाल और सबसे महत्वपूर्ण, जनता और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के मध्य जागरूकता बढ़ाना शामिल है। प्रत्येक 1,000 में से लगभग एक बच्चा निस्टागमस जैसी बीमारी के साथ पैदा होता है।

इन कारणों से निस्टागमस के प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाना महत्वपूर्ण है

निस्टागमस को समझना

निस्टागमस किसी को जन्म से ही हो सकता है या बाद में कई अंतर्निहित कारणों से विकसित हो सकता है जैसे कि न्यूरोलॉजिकल विकार, आनुवंशिक स्थिति या आघात। निस्टागमस में व्यक्ति की आंखें एक खास तरह से हिलती हैं जिससे दृश्य तीक्ष्णता, गहराई की धारणा और जीवन की समग्र गुणवत्ता पर गंभीर रूप से प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, स्वास्थ्य पेशेवरों सहित भारत में बहुत से लोगों को इस बीमारी के बारे में सीमित जानकारी और समझ है।

शीघ्र निदान का महत्व

निस्टागमस का शीघ्र निदान इसके प्रभावी प्रबंधन और हस्तक्षेप के लिए आवश्यक है। दुर्भाग्य से, जागरूकता की कमी के कारण, कई मामलों में निदान नहीं हो पाता है या गलत निदान हो जाता है, जिससे उचित उपचार प्रदान करने में देरी होती है। निस्टागमस के संकेतों और लक्षणों के बारे में माता-पिता, शिक्षकों को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है ताकि प्रभावित व्यक्तियों को समय पर और सटीक देखभाल प्राप्त हो सके।

स्वास्थ्य पेशेवरों को शिक्षित करना

निस्टागमस का सटीक निदान और उचित प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों को इस संबंध में जागरूक बनाना महत्वपूर्ण है। मेडिकल स्कूलों, व्यावसायिक सम्मेलनों और शिक्षा कार्यक्रमों को अपने पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में निस्टागमस पर जोर देना चाहिए ताकि डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को इस बीमारी से जूझते रोगियों की पहचान करने और उनकी सहायता करने के लिए आवश्यक जानकारी और कौशल मिल सके। विशेषज्ञों को इसपर अनुसंधान और सहयोग हेतु प्रोत्साहित कर निस्टागमस की बेहतर समझ और उपचार के विकल्प हासिल किए जा सकते हैं।

निस्टागमस के रोगियों की सहायता करना

निस्टागमस के साथ जीना, रोगी और उसके परिवार के समक्ष विभिन्न चुनौतियां खड़ी कर सकता है। एक सहायक वातावरण बनाना आवश्यक है जो समझ और समावेशिता को बढ़ावा देता हो। न्यूस्टैग्मस के बारे में जनता को शिक्षित करने से गलत धारणाओं को दूर किया जा सकता है और बीमारी से जुड़े कलंक को घटाया जा सकता है। सहायता समूह, ऑनलाइन समुदाय और आउटरीच कार्यक्रम न्यूस्टैग्मस से पीड़ित लोगों और उनके परिवारों को जुड़ने, अपना अनुभव साझा करने और बहुमूल्य संसाधनों तक पहुँचने का एक मंच प्रदान कर सकते हैं।

अभिगम्यता को बढ़ावा देना

जागरुकता बढ़ाने के अलावा, सुगम्यता उपायों की बात करना भी महत्वपूर्ण है जो निस्टागमस से पीड़ित लोगों की जीवन गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं। इनमें सहायक उपकरण, दृष्टि सहायता, और शैक्षिक साधन जैसे कि बड़े प्रिंट या विशेष कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर तक पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है। समावेशिता को बढ़ावा देकर और निस्टागमस से पीड़ित लोगों की खास जरूरतों को पूरा करके, समाज उन्हें चुनौतियों से उबरने और अपनी पूरी क्षमता हासिल करने में मदद कर सकता है।

निष्कर्ष

भारत में निस्टागमस के प्रबंधन में जागरूकता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आम जनता और स्वास्थ्य पेशेवरों के मध्य जागरूकता बढ़ाकर हम इस बीमारी से प्रभावित लोगों के लिए शीघ्र निदान, उचित हस्तक्षेप और सहायता सुनिश्चित कर सकते हैं। शिक्षा, अनुसंधान और चर्चाओं के माध्यम से हम निस्टागमस के साथ जी रहे लोगों की जीवन गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं और एक अधिक समावेशी तथा सुगम्य समाज बनाने की दिशा में काम कर सकते हैं। अब निस्टागमस पर प्रकाश डालने और लोगों को अपने सामने आने वाली चुनौतियों से उबरने के लिए सशक्त बनाने का समय आ गया है।

(इस लेख के लेखक डॉ पुनीत जौहरी हैं जो संकरा आई हॉस्पिटल, कानपुर के पेडियेट्रिक ऑप्थैलमोलॉजी एंड स्ट्रैबिस्मस विभाग के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और प्रमुख हैं। )

( डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता। किसी भी तरह का फिटनेस प्रोग्राम शुरू करने अथवा अपनी डाइट में किसी तरह का बदलाव करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।प्रस्तुत लेख में तथ्य लेखक के है जिसके लिए टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल उत्तरदायी नहीं है।)

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