World TB Day: टीबी के इलाज में फेल होती दवाएं बनीं सबसे बड़ी चुनौती, क्यों मरीजों में बढ़ता जा रहा है ड्रग रेजिस्टेंस
World TB Day: विश्व टीबी दिवस एक बड़ी जानलेवा बीमारी से लड़ने के लिए मनाया जाता है। हजारों लोग इसकी चपेट में आकर पनी जान गंवा देते हैं। हालांकि इससे लड़ाई में अब एक बड़ी चुनौती सामने आई है। देखने में आया है कि कई दवाएं अब मरीजों पर बेअसर हो रही हैं। ड्रग रेजिस्टेंस की वजह से एक नया खतरा सामने आया है। जानें इसके बारे में।



World TB Day
नई दिल्ली: हर साल 24 मार्च को वर्ल्ड टीबी डे मनाया जाता है। इस दिन लोगों को इस गंभीर बीमारी के बारे में जागरूक किया जाता है। डॉक्टरों की तरफ से उन्हें यह बताया जाता है कि टीबी के शुरुआती लक्षण क्या हो सकते हैं? इस तरह के लक्षण देखे जाने पर मरीज को तुरंत क्या कदम उठाने चाहिए? टीबी आमतौर पर फेफड़ों में होने वाली एक बीमारी है, जिसकी जद में आकर अनेक लोग अपनी जान गंवाते हैं।
विश्व टीबी दिवस 1982 से हर साल 24 मार्च को मनाया जाता है। इसे मनाने की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन ने की थी। इस बार टीबी दिवस का थीम है: "हम टीबी को समाप्त कर सकते हैं: प्रतिबद्ध, निवेश और उद्धार। वहीं टीबी डेके मौके पर आईएएनएस ने मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड की माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. लक्ष्मीप्रिया से खास बातचीत की। उन्होंने इस बीमारी के बारे में विस्तार से बताया। इसके साथ ही उन्होंने हमें यह भी बताया कि इससे बचाव कैसे हो सकता है।
डॉक्टर लक्ष्मीप्रिया ने बताया कि तपेदिक (टीबी) माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से होने वाली एक गंभीर बीमारी है, जो हवा के जरिए एक व्यक्ति से दूसरे तक फैलती है। यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है लेकिन रीढ़, गुर्दे, मस्तिष्क और आंत जैसे शरीर के अन्य हिस्सों को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
डॉक्टर के मुताबिक, जीवाणु दवा से मुकाबला ढिठाई से कर रहे हैं। यानी ड्रग रेजिस्टेंस लगातार बढ़ता जा रहा है और यह इसके इलाज में एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। उन्होंने कहा कि टीबी का इलाज संभव है, मगर अब दवा प्रतिरोध (ड्रग रेजिस्टेंस) इसकी सबसे बड़ी समस्या बन गया है। जब टीबी के बैक्टीरिया दवाओं का असर झेलने लगते हैं, तो इसे दवा प्रतिरोधी टीबी कहते हैं। यह सामान्य टीबी की तरह ही फैलता है और अगर इसका सही समय पर इलाज न हो, तो यह पूरे समुदाय के लिए खतरा बन सकता है।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट के मुताबिक, ड्रग रेजिस्टेंस दो तरह का होता है। पहला, प्राइमरी रेजिस्टेंस, जिसमें इलाज शुरू होने से पहले ही बैक्टीरिया दवा के खिलाफ मजबूत होते हैं। दूसरा, एक्वायर्ड रेजिस्टेंस, जो इलाज के दौरान दवाओं का सही इस्तेमाल न होने से पैदा होता है। दवा प्रतिरोधी टीबी कई प्रकार की होती है, जैसे रिफैम्पिसिन प्रतिरोधी (आरआर टीबी), मोनो-प्रतिरोधी (एक दवा के खिलाफ), पॉली-प्रतिरोधी (दो या अधिक दवाओं के खिलाफ), मल्टीड्रग प्रतिरोधी (एमडीआर टीबी), प्री-एक्सटेंसिवली ड्रग-प्रतिरोधी (प्री-एक्सडीआर), और व्यापक रूप से दवा प्रतिरोधी (एक्सडीआर टीबी)। एमडीआर टीबी में बैक्टीरिया दो मुख्य दवाओं- आइसोनियाज़िड और रिफैम्पिसिन- के खिलाफ प्रतिरोधी हो जाते हैं, जबकि एक्सडीआर टीबी में कई दूसरी दवाएं भी बेअसर हो जाती हैं।
डॉ लक्ष्मीप्रिया ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, 2022 में दुनियाभर में करीब 4,10,000 लोगों को एमडीआर या रिफैम्पिसिन प्रतिरोधी टीबी हुई। सामान्य टीबी का इलाज छह महीने में हो जाता है, लेकिन एमडीआर टीबी के मरीजों को लंबे और जटिल इलाज से गुजरना पड़ता है। यह बीमारी न सिर्फ मरीजों के लिए खतरनाक है, बल्कि इलाज की ऊंची लागत और मृत्यु दर के कारण विश्व के लिए भी चुनौती है।
लक्ष्मीप्रिया के मुताबिक, भारत में टीबी का बोझ दुनिया में सबसे ज्यादा है और यह वैश्विक टीबी मामलों का 30 फीसद हिस्सा है। अच्छी बात यह है कि भारत के पास 7,767 रैपिड मॉलिक्यूलर लैब और 87 कल्चर टेस्टिंग लैब हैं, जो दवा प्रतिरोधी टीबी का जल्दी पता लगाने में मदद करती हैं। टीबी का पता लगाने के लिए जीन एक्सपर्ट टेस्ट जैसी तकनीकें इस्तेमाल होती हैं, जो दो घंटे में रिजल्ट देती हैं। इसके अलावा, कल्चर टेस्ट और नई पीढ़ी की सीक्वेंसिंग तकनीक से दवा प्रतिरोध की सटीक जानकारी मिलती है।
इनपुट : आईएएनएस
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