ट्रैकिंग और टेस्टिंग फॉर्मूला से खत्म कर सकते हैं टीबी, एक्सपर्ट से जानिए TB के डायग्नोसिस के लिए कौन से टेस्ट हैं बेस्ट
Test for TB: टीबी एक गंभीर बीमारी है। टीबी की जांच के लिए डॉक्टर कई तरह के टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। आइए जानते हैं टीबी के टेस्ट के बारे में-
Tuberculosis Best Test in India: टीबी के लिए कौन सा टेस्ट सबसे अच्छा है? (Image: istockphoto)
Tuberculosis testing in India: वर्तमान समय मे दुनिया कोविड-19 जैसी संक्रामक और गैर-संक्रामक बीमारियों से लड़ रही है। इस दौरान पूरी दुनिया डायबिटीज से भी परेशान है। इन सब चीजों के अलावा भी एक ऐसी बीमारी है जो भारत को लगातार परेशान कर रही है, वह बीमारी तपेदिक (टीबी) है। ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 26 लाख टीबी के मरीज़ हैं। अनुमान यह भी लगाया जाता है कि लगभग 4 लाख लोग हर साल टीबी से मरते हैं।
भारत में दुनिया भर से सबसे ज्यादा टीबी के मरीज़ रहते हैं। साल 2021 में भारत में टीबी मरीजों की संख्या में 19% की वृद्धि हुई, और 19,33,381 मामले टीबी मरीजों (नए और रिलैप्स) के साथ रिपोर्ट हुए, जबकि 2020 में यह संख्या 16,28,161 थी। इस बीमारी से लड़ाई दशकों से जारी है लेकिन फिर भी यह बीमारी भारत मे बढ़ती जा रही है। हालांकि एक उम्मीद की किरण जगी है क्योंकि महामारी ने इनोवेटिव समाधानों, स्वास्थ्य-प्रणाली को मजबूत करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों की निरंतर बढ़ती पहुंच के लिए नए दरवाजे खोल दिए हैं। निरंतर टेस्ट और ट्रैकिंग के माध्यम से हम भारत में टीबी को हरा सकते हैं और इसके प्रभावों को कम कर सकते हैं।
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देश में टीबी से आर्थिक उत्पादक उम्र के लोग ज़्यादा प्रभावित होते है। टीबी से पीड़ित होने पर लोग काम पर नहीं जा पाते हैं। टीबी मरीजों को गरीबी के अंधकार में धकेल देती है। हालांकि भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के माध्यम से 2025 तक भारत में टीबी को समाप्त करने के लिए योजना बनाई गई है।
ट्रैकिंग और टेस्टिंग फ़ॉर्मूला टीबी को रोकने में क्यों मददगार है?
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन का अनुमान है कि 2019 में लगभग 10 मिलियन लोग टीबी से प्रभावित हुए थे और 1.4 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई। हालांकि, शुरुआती पहचान और समय पर इलाज़ उपलब्ध कराने से टीबी को फैलने और इससे होने वाली मौतों को रोकने मे मदद मिल सकती है। अगर किसी को टीबी के बारे में पता नहीं है, तो इसे जमीनी स्तर से खत्म करने की संभावना शून्य हो जाती है। इसलिए टीबी को फैलने से रोकने के लिए एक व्यवस्थित ट्रैकिंग दृष्टिकोण ज़रूरी है, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में जहां नियमित चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं, वहां पर ट्रैकिंग काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
EMPE डायग्नोस्टिक के को-फाउंडर डॉ पवन असलापुरम ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बातचीत में बताया, "ट्रैकिंग में तेजी लाने के लिए सरकारी सहायता प्राप्त चिकित्सा सुविधाओं और प्राइवेट हेल्थकेयर सेक्टर के लिए विभिन्न सिस्टम के माध्यम से टीबी से पीड़ित लक्षणों वाले मरीजों को ट्रैक करना और उनकी पहचान करना जरूरी हो जाता है। टीबी के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशीलता वाले स्थानों और मरीजों की ट्रैकिंग और पहचान के बाद टेस्ट का आयोजन बड़े पैमाने पर करना चाहिए। ये टेस्ट टीबी के डायग्नोसिस के लिए उपलब्ध कई टेस्ट विधियों के माध्यम से किए जा सकते हैं।" आइए अब जानते हैं कि टीबी के डायग्नोसिस (TB testing & diagnosis in India) के लिए कौन कौन से टेस्ट उपलब्ध हैं:
मोलिक्युलर टेस्ट किट | Molecular Test Kit
WHO इस टेस्ट को टीबी के डायग्नोसिस में इस्तेमाल करने की लिए सलाह देता है। रैपिड मोलिकुलर टेस्ट किट जैसे mfloDx™ MDR-TB किट यूजर के अनुकूल डायग्नोस्टिक टेस्ट हैं जो तत्काल परिणाम प्रदान कर सकती हैं, जिससे टीबी के लिए प्रभावी इलाज शुरू करने मे समय कम लगता है। कुछ किट में 3 घंटे के अंदर ही टीबी का पता चल जाता है और इसका परिणाम जल्दी आता है| ये टीबी डायग्नोस्टिक किट सस्ती भी होती हैं और, इसमें मल्टीप्लेक्स मोलिकुलर टेस्ट करने के लिए किसी एडवांस टूल की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा इन टेस्ट से रिफैम्पिसिन और आइसोनियाज़िड ड्रग रजिस्टेंस के लिए एक त्वरित परिणाम मिलता हैं ताकि मरीज़ प्रभावी एंटीबायोटिक उपचार का लाभ उठा सकें और ड्रग रजिस्टेंस को कम कर सकें।
इंटरफेरॉन-गामा रिलीज़ एसेज़ (IGRAs) | Interferon-gamma release assays (IGRAs)
इंटरफेरॉन-गामा रिलीज एसेज़ (IGRAs) मे ब्लड टेस्ट होता है जो टीबी बैक्टीरिया के जवाब में इम्यून सिस्टम द्वारा उत्पादित विशिष्ट प्रोटीन की उपस्थिति का पता लगाते हैं। ये टेस्ट दो प्रकारों में उपलब्ध हैं: पहला क्वांटिफेरॉन-टीबी गोल्ड इन-ट्यूब टेस्ट (क्यूएफटी-जीआईटी) और दूसरा टी-स्पॉट.टीबी टेस्ट। दोनों टेस्ट में मरीज़ से खून लेकर और टीबी एंटीजेन के जवाब में इम्यून सिस्टम द्वारा जारी इंटरफेरॉन-गामा की मात्रा को मापा जाता है। IGRAs TST की तुलना में ज्यादा बेहतर होता हैं और इसका उपयोग उन व्यक्तियों में किया जा सकता है जिन्हें BCG का टीका लगाया गया है। हालांकि ये टेस्ट TST से ज्यादा महंगे होते हैं और इसमें विशेष लेबोरेटरी उपकरणों की ज़रूरत होती है।
चेस्ट एक्स-रे | chest X-ray
चेस्ट एक्स-रे एक इमेजिंग टेस्ट है। इस टेस्ट में फेफड़ों और इसके आसपास के ऊतकों सहित चेस्ट की तस्वीरें खींची जाती है। इससे फेफड़ों में होने वाली परेशानियों का पता चलता है। फेफड़े में होने वाली समस्याएं जैसे कि नॉड्यूल्स, कैविटीज, या इंफिल्ट्रेट्स, आदि होने पर टीबी की उपस्थिति का संकेत मिल सकता है। हालांकि चेस्ट का एक्स-रे एक्टिव और अव्यक्त टीबी संक्रमणों के बीच अंतर नहीं कर सकता है और बिना लक्षणों वाले टीबी मरीजों में टीबी के डायग्नोस्टिक के लिए यह टेस्ट उपयुक्त नहीं है।
स्प्यूटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी | Sputum Smear Microscopy
स्प्यूटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी एक सरल और सस्ता टेस्ट होता है जिसमें टीबी बैक्टीरिया की उपस्थिति का पता लगाने के लिए एक माइक्रोस्कोप के तहत थूक के नमूनों की जांच की जाती है। मरीज़ से थूक को खांसने के लिए कहकर नमूने एकत्र किए जाते हैं। थूक को बाद में एक विशेष डाई के साथ स्टेन किया जाता है और माइक्रोस्कोप से जांच की जाती है। स्प्यूटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी का व्यापक रूप से वहां उपयोग किया जाता है जहां पर कम संसाधन होते हैं। टीबी का पता लगाने के लिए इसकी कम संवेदनशीलता होती है, विशेष रूप से एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों में इस टेस्ट की संवेदनशीलता काफ़ी कम होती है।
कल्चर और सेंस्टीविटी टेस्टिंग | Culture and sensitivity testing
कल्चर और सेंस्टीविटी टेस्टिंग में एक लेबोरेटरी में थूक या शरीर के अन्य तरल पदार्थों से टीबी बैक्टीरिया को पहचाना जाता है और संक्रमण के इलाज में कौन सी दवाएं सबसे ज्यादा प्रभावी हैं, यह निर्धारित करने के लिए विभिन्न एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ उनका टेस्ट किया जाता है। टेस्टिंग की यह विधि टीबी का सही डायग्नोसिस कर सकती है और ड्रग रजिस्टेंस पैटर्न भी निर्धारित कर सकती है। हालांकि कल्चर और सेंस्टीविटी टेस्टिंग महंगी भी होती है और इसमें समय भी ज्यादा लगता है। इसके लिए विशेष लेबोरेटरी टूल्स और प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
ट्यूबरकुलिन स्किन टेस्ट (TST) | Tuberculin skin test (TST)
ट्यूबरकुलिन स्किन टेस्ट (TST) को मंटौक्स टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है। यह टीबी के डायग्नोसिस का सबसे पुराना और सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाला तरीका है। इस टेस्ट में त्वचा में प्यूरीफाइड प्रोटीन डेरिवेटिव (PPD) की एक छोटी मात्रा को इंजेक्ट करना और 48 से 72 घंटों के बाद प्रतिक्रिया को देखना होता है। अगर व्यक्ति टीबी से संक्रमित हो गया है, तो उनका इम्यून सिस्टम पीपीडी के प्रति प्रतिक्रिया करेगा, जिसके परिणामस्वरूप इंजेक्शन की जगह पर एक उठा हुआ, लाल और खुजलीदार उभार होगा। प्रतिक्रिया का आकार मिलीमीटर में मापा जाता है, और एक पॉजिटिव प्रतिक्रिया को 5 मिमी या उससे ज्यादा के रूप में देखा जाता है। हालाँकि TST की कुछ सीमाएं होती हैं क्योंकि यह वर्तमान या पिछले संक्रमणों के बीच अंतर नहीं कर पाता है और BCG टीकाकरण जैसे अन्य फैक्टर से भी इस टेस्ट का परिणाम प्रभावित हो सकता है।
डॉ पवन असलापुरम ने बताया कि टीबी का डायग्नोसिस लंबे समय से दुनिया भर के डॉक्टरों के लिए चुनौती वाला विषय रहा है। टीबी एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है और दुनिया भर में मौत के टॉप 10 कारणों में से एक टीबी को गिना जाता है। इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए वैज्ञानिक और हेल्थकेयर प्रोफेसनल टीबी के डायग्नोसिस और इलाज़ के लिए नए तरीकों का पता लगाना जारी रखे हुए हैं।
उन्होंने कहा, "भारत में टीबी के खिलाफ लड़ाई लंबी है, लेकिन टीबी मरीजों की निरंतर टेस्टिंग और ट्रैकिंग से टीबी के प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है। टीबी के केस का शीघ्र पता लगाने और शीघ्र इलाज शुरू करने के लिए उन लोगों तक पहुंच बनानी ज़रूरी हैं, जो स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रहते हैं या जो दूर दराज के क्षेत्रों मे रहते हैं।"
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