Virtual Autism: मोबाइल की लत से बच्चों में बढ़ रहा वर्चुअल ऑटिज्म का खतरा, एक्सपर्ट से जानिए बचाव के तरीके

Virtual Autism Side Effects: मोबाइल फोन, टीवी, टैबलेट, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की वजह से बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार हो रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन बच्चों में ऑटिज्म का चलन बढ़ रहा है। यह उनके सामाजिक संपर्क और व्यवहार कौशल को प्रभावित करता है। एक्सपर्ट से जानिए बचाव के तरीके-

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Virtual Autism: क्या ऑटिज्म 5 साल की उम्र से शुरू हो सकता है?

Side Effects of Mobile Addict:अगर बच्चा रो रहा है, तो माता-पिता अक्सर बच्चे को शांत करने के लिए टीवी चालू कर देते हैं या मोबाइल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण सौंप देते हैं। इससे बच्चा तो शांत हो जाता है लेकिन उसकी नजर मोबाइल पर टिकी रहती है। माता-पिता को यह एहसास नहीं होता है कि हम उन्हें शांत करने या उन्हें स्थिर रखने के नाम पर उनका स्क्रीन टाइम बढ़ा रहे हैं।

दुनिया भर में हुए कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि लगातार मोबाइल फोन को संभालने से बच्चों के मानसिक विकास पर असर पड़ता है। इतना ही नहीं, मोबाइल। गैजेट्स या टीवी देखने की लत से बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ जाता है। इससे बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म का खतरा बढ़ जाता है।

वर्चुअल ऑटिज्म क्या है? - What is virtual autism?

वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण खासकर चार से पांच साल के बच्चों में देखे जाते हैं। मोबाइल, टीवी, कंप्यूटर या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत इसका मूल कारण है। स्मार्टफोन, लैपटॉप और टीवी पर ज्यादा समय बिताने के कारण बच्चों को बोलने में दिक्कत होती है। साथ ही, वे अन्य लोगों के साथ आसानी से संवाद करने में बाधा बनते हैं।

नोएडा के नियो हॉस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सागरदीप सिंग बावा ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल को बताया कि "इस स्थिति को हम वर्चुअल ऑटिज़्म कहते हैं। इसका मतलब है कि बच्चों में ऑटिज़्म नहीं होता है, लेकिन उनमें लक्षण दिखाई देते हैं। 1 से 3 साल की उम्र के बच्चे सबसे ज़्यादा जोखिम में होते हैं। आज के युग में बच्चे चलना शुरू करने के तुरंत बाद मोबाइल फोन के संपर्क में आते हैं। यह प्रकार 1.5 वर्ष से 3 वर्ष तक के बच्चों में अधिक आम है। अक्सर, माता-पिता सोचते हैं कि वे बच्चों को ए, बी, सी, पढ़ा रहे हैं। लेकिन यह मोबाइल नशे की लत हैं"।

उन्होंने आगे कहा, "इसका नकारात्मक प्रभाव यह होता है कि वे अपनी वाणी में हकलाते हैं। उनकी वाणी पूर्ण विकसित नहीं होती। वे लगातार गैजेट्स में व्यस्त रहते हैं। उनके दैनिक व्यवहार में भी परिवर्तन देखने को मिलता है। वे कई बातों पर चिड़चिड़े और आक्रामक हो जाते है। अक्सर माता-पिता बच्चों को रात में मोबाइल देते हैं, इससे उनकी नींद भी प्रभावित होती है। उनके सोने का समय बदलता रहता है। इसलिए माता-पिता को भी रात में मोबाइल, टीवी देखना बंद कर देना चाहिए। टीवी देखने के बाद बच्चे भी जिद्दी हो जाते हैं और अपनी एकाग्रता खो बैठते हैं।"

वर्चुअल ऑटिज्म का समाधान क्या है? - What is the solution to virtual autism?

यह पूछे जाने पर कि इसका समाधान क्या है, डॉ. सागरदीप कहते हैं, "सबसे पहले बच्चों को मोबाइल और टीवी से दूर करें। उनका स्क्रीन टाइम कम करें और नींद के पैटर्न में सुधार करें।" कोरोना के कारण बच्चों का आउटडोर गेम्स कम हो गया है और वे मोबाइल फोन के आदी हो गए हैं। लेकिन इससे पहले कि बच्चे इस लत के बुरी तरह से शिकार हों, माता-पिता को भी अपने व्यवहार में बदलाव लाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा है कि बच्चे अक्सर अपने माता-पिता को देखकर बहुत कुछ सीखते हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में बिहार और देश भर में वर्चुअल ऑटिज्म के मामलों की संख्या में 3 से 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसके पीछे अनुवांशिक कारण भी है। लेकिन बच्चों में मोबाइल फोन का बढ़ता इस्तेमाल भी एक वजह बन रहा है।

वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण क्या हैं? - What are the symptoms of virtual autism?

वर्चुअल ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे दूसरे बच्चों से बात करते समय हकलाते हैं, वे आंखों से आंख मिलाकर बात करने से डरते हैं और संचार के विकास में देरी होती है। साथ ही वे लोगों से घुलना-मिलना भी नहीं चाहते। इसके अलावा उनका आईक्यू भी कम हो जाता है।

अगर आपके बच्चों में ये लक्षण दिख रहे हैं तो घबराने की जरूरत नहीं है। बच्चों में इन समस्याओं को स्वीकार करें और उनकी अतिरिक्त देखभाल और उपचार करें। चिकित्सा के माध्यम से, माता-पिता बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और बच्चों को ठीक होने में मदद कर सकते हैं।

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प्रणव मिश्र author

मीडिया में पिछले 5 वर्षों से कार्यरत हैं। इस दौरान इन्होंने मुख्य रूप से टीवी प्रोग्राम के लिए रिसर्च, रिपोर्टिंग और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए काम किया...और देखें

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