COPD Facts: दिल्ली में वायु प्रदूषण ने बढ़ाई खतरनाक COPD की समस्या, डॉक्टर ने बताया कैसे पाएं छुटकारा

What is COPD: वायु प्रदूषण चाहे बाहर का हो या अंदर का, दोनों की वजह से सीओपीडी होने की सम्भावना बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है। यह एक लॉन्ग टर्म बीमारी है। हमने एक एक्सपर्ट के माध्यम से आप लोगों को बताने का प्रयास किया है कि क्यों ये बीमारी इतनी खतरनाक है और किन वजहों से इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। साथ ही जानें कि इससे कैसे बचा जा सकता है।

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COPD- जानें इस बढ़ती गंभीर बीमारी के बारे में

What is COPD: दिल्ली में हर साल की तरह इस साल भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक श्रेणी में बना रहा है। पिछले 4 महीने से प्रदूषण का लेवल खराब श्रेणी में है जिसके बाद लोगों को तरह-तरह की समस्याएं भी हो रही हैं। कुछ लोगों को सांस लेने में दिक्कत, ऑक्सीजन का कमी महसूस होना और भी तमाम दिक्कतें हो रही है लेकिन अब COPD नामक बीमारी का भी नाम सामने आ रहा है जिसके लोग शिकार हो रहे हैं यह केवल एयर पॉल्यूशन की वजह से नहीं अधिक सिगरेट पीने के वजह से प्रदूषित हवा में रहने की वजह से भी हो जाती है। डॉक्टर से समझते हैं कि आखिर इससे किस तरह से निपटा जा सकता है और इसके लक्षण किस तरह के होते हैं।
डॉ. विवेक नांगिया ( प्रधान निदेशक और प्रमुख, इंस्टीट्यूट ऑफ रेस्पिरेटरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन, मैक्स हॉस्पिटल, साकेत) ने बताया कि सीओपीडी का फुल फॉर्म होता है क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज। इसका मतलब होता है कि यह एक क्रोनिक यानी की लॉन्ग टर्म बीमारी है जो लंबी चलती है। इसकी वजह से सांस की नलियों पर इम्पैक्ट आता है और जो लंग्स के एयर सैक्स होते हैं जिनको हम Alveoli कहते हैं उनपे इम्पैक्ट आता है। तो किसी में एयर वेस भी होता है, किसी में Alveoli में होता है किसी में दोनों में होता हैं।

COPD मरीजों में Normal और इमरजेंसी signs क्या होते हैं

सीओपीडी के मरीजों के जो सबसे कॉमन सिम्पटम्स होते है, वो हैं खांसी, बलगम आना, सांस में दिक्कत आना और यह बार बार आता है और प्रोग्रेस्सिवेली बढ़ता है। इसी तरह की एक और बीमारी है - अस्थमा। अस्थमा एपिसोडिक होता है, कभी आया कभी चला गया, मौसम के बदलाव के टाइम पर आ गया या पोलन की वजह से या पल्यूशन की वजह से ट्रिगर हो गया। लेकिन सीओपीडी क्रोनिक बीमारी होती है जो साल दर साल बढ़ती जाती है, प्रोग्रेसिव रहती है। जो इसके सबसे सीरियस साइन होते हैं, उनमें सांस न ले पाना, ऑक्सीजन की गिरावट आना, सांस की रफ़्तार बढ़ जाना और कई बार लोगों का बेहोश हो जाना भी शामिल है। दरअसल, इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और फिर धीरे धीरे कार्बन डाइऑक्साइड का लेवल बढ़ना शुरू हो जाता है।

सीओपीडी के कारण क्या हैं? COPD का खतरा किसे ज्यादा होता है?

दूसरा सबसे कॉमन कारण जो हम देख रहे है वह है वायु प्रदूषण। वायु प्रदूषण चाहे बाहर का हो या अंदर का, दोनों की वजह से सीओपीडी होने की सम्भावना बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है।
तीसरा जो हमारे देश में है चूल्हा स्मोक जो आज भी हमारी गांव की या शहर के भी कुछ अर्बन रूरल एरिया में भी औरतें अभी तक चुलाह जला रही हैं। ऐसे में उनका डायरेक्ट एक्सपोज़र धुंए से हो रहा है या बायो मास्स एक्सपोज़र हो रहा है।यह तीन सबसे कॉमन कारण है सीओपोडी डेवेलोप होने के।

COPD का खतरा किसे ज्यादा होता है?

जिनको एक जेनेटिक प्रेडिस्पोसिशन होता है, उनको खतरा ज़्यादा होता है। जिनका एक्सपोज़र होता है इन सब धुंए से, ऑक्यूपेशन के कारण जैसे जो लोग कोल् के खानों में काम करते हैं या जिनका धूल, धुआं मिट्टी से एक्सपोजर रहता है उन सब में सीओपीडी डेवेलोप करने की संभावना ज़्यादा होती है

सीओपीडी का शीघ्र पता लगाना कितना महत्वपूर्ण है?

इसका शीघ्र पता लगाना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि उसके जो प्रेसिपीटेटिंग फैक्टर्स हैं जैसे धुंए से एक्सपोज़र, पलूशन से एक्सपोजर उनको हम अवॉयड कर सके। दूसरा, अगर हम रेगुलर दवाइयां लेते हैं तो जो सीओपीडी की वजह से लंग्स और बॉडी के अंदर इन्फ्लेमेटरी कैस्केड ट्रिगर हो गया होता है, उसको सप्रेस कर पाते हैं।

सीओपीडी के गंभीर मामलों में क्या होता है जब इसका जल्दी पता नहीं चलता है?

गंभीर मामलों में, जैसे कि लोग जब इमरजेंसी में हमारे अस्पताल में आते हैं और जिन्होंने पहले कभी ट्रीटमेंट ही नहीं लिया होता, तो उस स्थिति में लंग्स की कंडीशन काफी खराब हो चुकी होती है। अंदर से सांस की नलियां सिकुड़ चुकी होती हैं और एयर सैक्स डिस्ट्रॉय हो चुके होते हैं। लोगों को सिवियर एम्फीसेमा हो चुका होता है, साथ ही साथ लोगों को ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड लेवल बढ़ जाता है। तो जब यह सब होता है तो फिर उनको हमें दवाइयां, भारी भारी दवाइयां देनी पड़ती हैं, स्टेरॉइड्स देने पढ़ते हैं एंड नेबुलाइजर तो हम ऐसे मरीजों को जरूर देते हैं। ऐसी स्थिति में उनकी कंडीशन और ज्यादा खराब हो जाती है और फिर धीरे धीरे हार्ट पर इंपैक्ट आना शुरू होता है। साथ ही बॉडी पर भी इंपैक्ट होना शुरू हो जाता है।

सीओपीडी का निदान कैसे किया जाता है?

सीओपीडी का डायग्नोसिस जो है, क्लीनिकल कंडीशन के बेसिस पर होता है। यह हिस्ट्री एग्जामिनेशन के बेसिस पर होता है और साथ साथ एक टेस्ट होता है जिसको कहते हैं पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट (पीएफटी)। इसके अलावा हम कुछ मरीजों का एक्सरे और सीटी स्कैन भी कराते हैं ताकि यह जान सके कि सीओपीडी के अलावा कोई और बीमारी साथ में तो नहीं।

क्या सीओपीडी का इलाज संभव है? स्थिति को कैसे गंभीर होने से रोका जा सकता है?

सीओपीडी के इलाज के लिए आजकल बहुत अच्छी मॉडर्न मेडिसिन आ गई हैं, जिनसे बहुत अच्छा इलाज हो सकता है। जैसे कि ब्लड प्रेशर, शुगर, हार्ट इन सबके लिए लंबा ट्रीटमेंट चलता है, वैसे ही सीओपीडी के लिए भी लंबा ट्रीटमेंट चलने की जरूरत होती है। इसमें मरीज को लगातार अपना एक इन्हेलर लेते रहना चाहिए। इनहेलर बहुत ही सेफ दवाई होती है। जैसे कि आप टैबलेट लेते हैं, सिरप लेते हैं, इंजेक्शन लेते हैं, वैसे ही हम इनहेलर फॉर्म में दवाई को लेते हैं, जिसमें दवाई की डोज भी बहुत कम जाती है, साइड इफेक्ट्स भी बहुत कम होते हैं, एंड इफेक्ट भी बहुत ज्यादा होता है। अगर मरीज अपना इनहेलर रेगुलर लेते रहते हैं, तो हमने देखा है कि उनकी यूजफुल कंडिशन बहुत अच्छी रहती आती है।

हम इस बीमारी के बारे में जागरूकता कैसे बढ़ा सकते हैं?

सीओपीडी काफी साधारण बीमारी है जो हमें इंडिया में कॉमन ली देखने को मिलती है। इसका बर्डन हमारे देश के ऊपर बहुत ज्यादा है। तो इसके लिए सबको अवेयर रहना चाहिए कि जब भी 40 साल की उम्र के ऊपर प्रदूषण या सिगरेट स्मोकिंग होती है तो सीओपोडी का डेवेलोप होना बहुत बहुत संभव है।
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भावना किशोर author

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मूल की भावना ने देश के प्रतिष्ठित संस्थान IIMC से 2014 में पत्रकारिता की पढ़ाई की. 10 सालों से मीडिया में काम कर रही हैं. न्यू...और देखें

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